शुक्रवार, 17 नवंबर 2023

रुबाई नहीं होगी


 





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समस्या हमारी  है पराई नहीं होगी।
बिना फतह  के  रिहाई  नहीं  होगी।
रखना होगा शब्दों को सही सतर में,
बिना अल्फाज़ों के रुबाई नहीं होगी।
गंदगी जमा है  ये कहना काफी नहीं,
बिना सड़क पे उतरे सफाई नहीं होगी।
रिश्ते  बने रहेंगे कई पीढ़ियों तक वीर
आये मेहमान की क्यों विदाई नहीं होगी।
रास्ते  कभी  बंद न होंगे अमनो चैन के,
कैसे मसीहों की आवाजाही नहीं होगी।
वक्त ने न दिया इससे उदास क्यों होना
बदल देंगे वक्त कोई ढिलाइ नहीं होगी।
उदय वीर सिंह।

बुधवार, 15 नवंबर 2023

उदास नहीं होता...








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मूर्ख को निज मूर्खता का अहसास नहीं होता।

विद्वता पर कदाचित उसे विस्वास नहीं होता।

ढूंढता है चटख उजालों में गहन अंधेरा अक्सर

किये निज पापों का कभी पश्चाताप नहीं होता

काटता है उसी  डाल को जिसपर बैठा होता है

जलाकर अपना घर  किंचित उदास नहीं होता।

काग़जी  नाव से किनारा पाने का खूब कौतुक

खड़ा हो जमीन पर कहता आकाश नहीं होता।

उदय वीर सिंह।

मंगलवार, 14 नवंबर 2023

सत्य को सत्य कहा हूँ मैँ...







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सत्ता और सिंहासन के वृत

पथ  से   दूर   रहा  हूँ  मैं।

अभय रहा निशिवासर मन

सत्य  को  सत्य कहा हूँ मैं।

षडयंत्रों, घातों  की  विधि 

विजय कदाचित मिल जाती,

प्रवाह पाप की विष धारा के

सदा  प्रतिकूल  बहा  हूँ  मै।

किंचित दुख  न व्याप  सका 

कभी हार -जीत  के होने पर

चलने  की अटल प्रत्याशा में 

भू कितनी  बार  गिरा  हूँ  मैं।

अवसर न मिला रोने हंसने का

निज राह  कहे  चलते  रहना,

बिसर  गया अपना उर  वेदन

घावों को कितनी बार सिला हूँ मैं।

उदय वीर सिंह।

13।11।23

रविवार, 12 नवंबर 2023

दाता बंदी छोड़ दिवस(मुक्ति दिवस)


 
🌹" दाता बंदी छोड़ दिवस " 🌹
की समस्त सिक्ख पंजाबी व मनुष्य जाति को लख लख बधाई जी 🌹🌹
   सिक्ख धर्म के छठवें गुरु , गुरु हरिगोबिन्द साहिब जी महाराज के रूहानी व दुनियावी बुलंद रुतबे से भयभीत तत्कालीन मुगल बादशाह जहाँगीर ( शासन काल 1605 -1627) ने गुरु महाराज को मुगलिया सल्तनत के प्रति गंभीर खतरा व विद्रोही तत्व मान अपने सिपहसालारों के मशविरे पर उन्हें ग्वालियर (मध्य प्रदेश) के किले में बंदी बना सख्त पहरे में रखा ।
     उसी किले में मुग़ल सल्तनत के दुश्मन 52 अन्य हिन्दू राजाओं को भी बंदी बना कर दो वर्ष से रखा गया था। ये मुगल सल्तनत व बादशाह के प्रति विद्रोह के कारक थे। इसीलिए इनको राज्य निर्वासन व कद की सजा दी गयी थी।
  बादशाह की धार्मिक आर्थिक व अन्यायपूर्ण आततायी नीतियों से आवाम बहुत पीड़ित थी ,विद्रोह की आशंका निरंतर बढ़ती जा रही थी।
गुरु महाराज को कैद करने के कारण  सिक्खों ही नहीं आम जन मानस में घृणा व असीम रोष व्याप्त था।
    बादशाह नापाक व अदूरदर्शिता भरी नीतियों के कारण जहांगीर की शासकीय सामाजिक आर्थिक स्थिति शिथिलता को प्राप्त हो रही थी।नियंत्रण निष्प्रभावी हो रहा था । चिंता व मानसिक परेशानियां बढ़ती जा रहीं थीं। बादशाह की शारिरीक हालत व शासकीय पकड़ लगातार  खराब होती जा रही थी ।तमाम कोशिशों के बाद भी मुश्किलें खत्म होने का नाम नहीं ले रही थीं।
    स्वभाव से धार्मिक बादशाह को उसके ख्वाबों में बार-बार गुरु साहिब को रिहा करने का इल्हामी हुक्म मिल रहा था । जिसको  वह अनसुना  कर देता । परन्तु निरंतर इलाही  पैग़मों से आजिज आकर उसने इस समस्या के निदान हेतु अपने आध्यत्मिक पीर फकीरों सिपहसालारों से विचार विमर्श किया। जिससे इस समस्या से निजात पाया जा सके।
   आखिर बड़े सोच विचार के बाद उसने अपनी मरकजी हुकूमती कैबिनेट मेम्बर्स व फकीरों की सलाह पर गुरु हरि गोबिन्द साहिब जी महाराज को अपनी कैद से रिहा करने का फैसला अक्तूबर 1621  (ई स) में कर लिया ।
    जब इस फैसले से गुरु महाराज को अवगत कराया गया वो इसे मानने से इनकार कर दिए। गुरु साहिब इस कैद से स्वयं अकेले रिहा होने को तैयार नहीं हुए। उन्होंने बादशाह को अवगत कराया  कि वे तुम्हारी कैद में रखे गए 52 बंदी हिन्दू राजाओं की रिहाई के बिना ग्वालियर किले की कैद से वे अकेले रिहा नहीं होंगे।
अब नई समस्या अत्यंत विकट थी सल्तनत की नजर में इन 52 राजाओं को छोड़ना आत्मघाती कदम था। परंतु वे गुरु साहिब के फैसले के आगे विवश थे । सशर्त पुनः 52 हिन्दू राजाओं की  रिहाई का फरमान जारी हुआ। परंतु शर्त यह रखी गयी कि गुरु महाराराज को एक साथ स्पर्श करते हुए ( पकड़े हुए) अगर ये बाहर निकल जाएं तो  ये हिन्दू राजा कैद से मुक्त हो सकेंगे।
गुरु महाराज ये शर्त मनाने को तैयार हो गए।
  इसी शर्त के अनुपालन में गुरु महाराज  ने 52 कलियों (पताकों )का एक चोला (लबादा) बनवाया जिसे पकड़ कर समस्त 52 हिंदू कैदी भूप किले से बाहर निकल कैद से मुक्त हुए।
  गुरु महाराज बंदी मुक्त हो दीपावली के दिन ही अमृतसर साहिब (पंजाब) पहुंचे। यह शुभ दिन ज्योति पर्व  दीपावली का था। समस्त  सिक्ख व हिन्दू पंजाबी जनमानस द्वारा दीप प्रज्वलित कर हृदय से स्वागत व वन्दन किया गया।
  इसी दिन से इस दिवस को " दाता बंदी छोड़ दिवस" के रूप में देश दुनियां में खुशी के साथ मनाया जाने लगा ।यह सिक्ख व दिन्दू जन-मानस के लिए अमूल्य व मान का दिन था।
   जिस ग्वालियर के किले में गुरु साहिब व राजा कैद थे उस किले की जगह 1968 में  संत अमर सिंह जी द्वारा एक भव्य गुरुद्वारा बनवाया गया। आज जिसे ' दाता बंदी छोड़ गुरुद्वारा ' के नाम से आज जाना जाता है। विद्यमान हैं।
उदय वीर सिंह।
12।11।23


झूठ पैगाम का हिस्सा बन जायेगा







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झूठ  पैगाम  का  हिस्सा बन जाएगा।

लुटेरा किताबों में फरिश्ता बन जाएगा।

खुले जख़्मों पर नमक छिड़कने वाला 

एक दाग़दार कैसे  बिरसा बन जायेगा।

वाकिफ़ न था अपना घर रौशन करके,

अंधेरों से दुश्मनी का रिश्ता बन जायेगा

दब  कर रह जाएगा गहराईयों में इतनी,

सत्य समाज का एक किस्सा बन जायेगा।

गूंगा  बहरा  हो जाएगा अपने हिसाब से

फरेब पत्थर  कभी  शीशा बन जायेगा।

उदय वीर सिंह।

शुक्रवार, 10 नवंबर 2023

....जिंदगी सामान तो न थी.✍️


 






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जिंदगी अपनी थी मेहमान तो न थी।

दुआ थी अपनों की सामान तो न थी।

भरी थी गमों खुशियों की तकरीर से,

ज़मीं पर थी खालीआसमान तो न थी।

सजी थी  ईमानो इश्क के बेल बूटों से,

दौलत से भरा खाली मकान तो न थी।

जुनूनी रफ्तगी  है  दौड़ में हमीं-हम के, 

मोहब्बत के सफ़र में परेशान तो न थी।

दस्तक  दहलीजों पर तौहीद की आयी,

कभी जबान हिन्दू मुसलमान तो न थी।

उदय वीर सिंह।