रविवार, 24 अक्तूबर 2021

भरोषा टूटता चला गया,....









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भरोषा था अपनों पर,

टूटता चला गया।

आयी गर्दिशी तो हाथ,

छूटता चला गया।

मुखबिरी अपनों ने क़ी,

गैर लूटता चला गया।

कच्चा घड़ा था वो नेह,

बूंद पड़ी गलता चला गया।

न बहा गर्दिशी के दौर,

आज बहता चला गया।

पीर में कोई बुलबुला था वीर,

फूटता चला गया।

उदय वीर सिंह।

सोमवार, 18 अक्तूबर 2021

मसीहाई जुबान का शहजादा...


 






मसीहाई जुबान का शहजादा...

बहुत गुरुर था सल्तनत का उसे जमाना  निगल गया।

ली थी शराफत की जिम्मेदारी दीवाना निकल गया।

मालूम है कैफ़ियत जहां वालों को फिर भी दाद देते हैं,

सच मान लिया था जिसको वो फ़साना निकल गया।

सिजदे में रहा ता-उम्र भरोषा था उसकी दरो दीवार का,

गया था इंसाफ-घर समझ वो मयख़ाना निकल गया।

मसीहाई जुबान का शहजादा दे सपनों की सल्तनत,

फिर लौट कर नहीं आया, जमाना निकल गया

उदय वीर सिंह।

गुरुवार, 14 अक्तूबर 2021

दिल की कही ,आदमी की कही...













मैंने दिल की कही,जिंदगी की कही।

सादगी की कही ,आदमी की कही।

आशियाना सितारों में  मांगा नहीं,

मैं जमीं का रहा हूँ जमीं की कही।

वास्ता जिनको था वो महल के हुए,

हमने मजलूम की बेकसी की कही।

मेरी आँखों ने चश्मों से देखा नहीं,

हमने देखा कमीं तो कमीं की कही।

दर्द क्या है शराफ़त का कैसे कहें,

अबआंखों से गायब नमीं की कही।

अंगारों में फूलों को देखा जले 

उठी जो कलम दरिंदगी की कही।

उदय वीर सिंह।

बुधवार, 13 अक्तूबर 2021

हमने लिखे तुमने लिखे....









 

हमने लिखे,तुमने लिखे, 

पढ़ने का जमाना चला गया।

हमने कहे,तुमने कहे,

सुनने का जमाना चला गया।

रिश्ते अजनवी हो गए,

मिलने का जमाना चला गया।

दर्द सहके मुस्कराकर,

मिलने का जमाना चला गया।

दिल हुये अब पत्थरों से,

पिघलने का जमाना चला गया।

दर बेकसों के दीप एक,

रखने का जमाना चला गया।

दो बोल मीठे सिर अदब में,

झुकने का जमाना चला गया।

उदय वीर सिंह।

मंगलवार, 12 अक्तूबर 2021

पुरस्कारों में रह गए...









......पुरस्कारों में रह गए✍️

गुल और गुलसितां के किरदारों में रह गए।

शायर ईश्क और मुश्क के दयारों में रह गए।

रोती रही इंसानियत दर-बदर कूँचे दर कूँचे

बने थे चमन के माली दरबारों में रह गए।

मंदिरो मस्जिद की आग आशियाने जल गए,

पैरोकारी थीआवाम की पुरस्कारों में रह गए।

आबाद गुलशन ही परजीवियों को भाता है,

गद्दार तख़्तों पर फरजंद दीवारों में रह गये।

पाकीज़ा शहर में नापाक मंडियों के मजरे,

दे खून पसीना श्रमवीर कर्ज़दारों में रह गए।

उदय वीर सिंह।

रविवार, 10 अक्तूबर 2021

निवाले की सोचिए


 







सूरज ढलने से पहले घर में उजाले की सोचिए।

मंदिर और मस्जिद से पहले निवाले की सोचिए।

आंधियों,तूफान से किसी का रिश्ता नहीं होता,

मकान में जिंदगी है पुख्ता रखवाले की सोचिए।

मरहम देकर इश्तिहार नहीं देता कोई हमदर्द

दिए ज़हर से भरे लबालब पियाले की सोचिए।

उदय वीर सिंह।

शनिवार, 2 अक्तूबर 2021

शांति के पर्याय बापू...


 







..शांति के पर्याय बापू✍️

दुनियां पढ़ती है दर्शन को सत्कार करती है।

दुनियां गोड्से नहीं गांधी को प्यार करती है।

असमानता व खाईं का निषेध स्वीकृत हो,

दुनियां उन्माद नहीं शांति पर ऐतबार करती है।

गुलामी कहीं भी किसी की स्वीकार्य नहीं,

अब दफ़्न हो जाए ये रीत शर्मसार करती है।

उदय वीर सिंह।