रविवार, 30 सितंबर 2018

अपराध लिखा देखा है

सियासती पन्नों पर अपराध लिखा देखा है
न्याय,प्रेम हंताओं के सिर ताज लिखा देखा है -
मर्यादा,वेदन की परिभाषा नित अर्थ बदलते हैं
मानवता के आँचल में संत्राश लिखा देखा है -
षडयंत्रों की शाला का निर्माण तर्क संग देख रहे
दशा दिशा जो शूर बदलते सन्यास लिखा देखा है -
ताप अनुकूलन कक्षों में मधु व्यंजन का विश्लेषण है
श्रम-साधक,श्रमजीवी को उपवास लिखा देखा है -
उदय वीर सिंह

सोमवार, 24 सितंबर 2018

त्याग दरबारी गायन को

त्याग विलास की अभिलाषा
त्याग दरबारी गायन को
त्याग सुमन के सेज स्वप्न
पी अमरतत्व रसायन को -
घायल घाव अनेक भरे तन
यद्पि तन कृशकाय अबल
आज मृत्यु कल द्वार मुक्ति के
प्राणित कर शापित मन को-
उन्माद नहीं संवाद सृजन के
समतल क्षितिज मर्यादा वांछित
तज वैर रार संहार के शंसय
जनहीत प्रस्तर कर अन्तर्मन को -
तिमिर घोर घन क्षार गगन
चपला षडयंत्री अविरल है
चलना होगा ले दीप भीष्म बन
पीना होगा विष आयन को -
पढ़ कालखंड के साक्ष्य, रचो
तज लोभ मोह पक्ष के दंश दूर
गिरी पयोधि नद जाग्रत हैं
रच नव समीर वातायन को -
उन्माद नहीं संवाद सृजन के
समतल क्षितिज मर्यादा वांछित
तज वैर रार संहार के शंसय
जनहीत प्रस्तर कर अन्तर्मन को -
उदय वीर सिंह

रविवार, 23 सितंबर 2018

लौट, गुजरी बिसरी शताब्दियों को देखता हूँ

लौट, गुजरी बिसरी शताब्दियों को देखता हूँ 
पिछले पायदानों पर ही मौजूदगी है आज तक
इस आजाद भारत की उपलब्धियों को देखता हूँ - 
दरबारी,दलाल कल भी आनंद में थे आज भी हैं 
कालाहांडी भूखी नंगी आवाम व बस्तियों को देखता हूँ -
परिवर्तन हुआ है बेशक दिखता भी है उदय
सत्ता गोरों से कालों की गतिविधियों को देखता हूँ -
शिक्षा सुरक्षा समानता के ग्रंथालय ,ग्रंथी बहुत हुए
आज भी आदिमता की पैरोकारी कुरीतियों को देखता हूँ
उदय वीर सिंह

रविवार, 9 सितंबर 2018

कुदरत एक जैसी है -

मुख्तलिफ रंगों का शहर 
नफ़रत एक जैसी है -
सजा और इनाम के वक्त, 
हुक्मरानों की फितरत एक जैसी है -
छुपा लो बख्तरबंद या तहखानों में 
कुदरत एक जैसी है -
अंधेरो या उजालों की मोहताज नहीं
रब दी रहमत एक जैसी है -
उदय वीर सिंह
[मारीशश सम्मेलन के दौरान मारीशश देश की शिक्षा ,न्याय व समाजिक मंत्री श्रीमती लीला देवी दुखन के साथ कुछ सरोकारी पल ]

रविवार, 2 सितंबर 2018

एक ज्वाला मुखी ही काफी है ...


किसी को देव किसी को
दानव बना दिया है
किसी ने नहीं कहा अपने को
मानव बना लिया है-

अनेकों सोते कम पड़ते है
प्यास बुझाने को
एक ज्वालामुखी ही काफी है
जीवन की रीत मिटाने को -

भरा है आँखों में नीर
हृदयमें ज्वालामुखी क्यों है
नंगी लाश से पूछते हो
क्या अवशेष बताने को -

शोक गीतों में रंग ढूंढने
चले रस अलंकार के गायक
संवेदन के पंख कटे जब
क्या गति मिली उड़ानों को -

नंगे तन में ढूंढ रहा है
कलुषित कर ले कपड़ों को
चित्कारो में विजय प्रमाद
संस्कृति रक्षा रखवारों को -

उदय वीर सिंह