
अमर वलिदानी
बाबा जोरावर सिंह [28 Nov 1695 आंदपुर साहिब -26 Dec 1705 सरहिंद ]
बाबा फतेह सिंह [ 22Dec 1699 आंदपुर साहिब - 26 Dec 1705 सरहिंद ]
शहादत दिवस पर अश्रुपूरित नयनों से इन अद्द्भुत अकल्पनीय अमर वालिदानियों को अपनी विनम्र श्रद्धांजलि देते हैं ।
" हैरानगी है मौत को कि हमें मौत क्यों नहीं आती "
माँ का नाम -
गुरुमता सुंदरी जी
पिता -
गुरु गोबिन्द सिंह
नाम -
बाबा जोरावर सिंह
जन्म स्थान - आनंदपुर साहिब 28 nov 1695
वलिदान दिवस -
26 Dec 1705 सरहिंद
नाम -
बाबा फतेह सिंह
जन्म स्थान - आनंद पुर साहिब 22 Dec 1699
वालिदान दिवस -
26 Dec 1705 सरहिंद
गुनाह - देशभक्ति , कौम का वफादार सिपाही होना,अपने संस्कारों पर अडिग रहना , इस्लाम स्वीकार नहीं करना । मांता पिता के संस्कारों [सिक्खी] की अंतिम स्वांस तक रक्षा करना ।
सजा - मौत जिंदा दीवार में चुनवा कर ।
संकल्प -धर्म की जीत
संदेश - वाहेगुरु जी दा खालसा वाहे गुरु जी दी फतेह
आदर्श - गुरु गोबिन्द सिंह जी
पहचान -पंच ककार
सूत्र वाक्य - देहि शिवा वर मोहे है शुभ कर्मन ते कबहुँ न डरो ....
कर्म - ज़ोर जुल्म का विरोध
विश्व के सबसे कम उम्र के वलिदानी जिनका अदालत में मुकदमा चला ,जिसमें अपनी वकालत वे स्वयं कर रहे थे । दादी माँ [ गूजर कौर ] के पावन सानिध्य में रह अपने संस्कारों दायित्वों और खाई कसमों को सहर्ष जीवन देकर निभाया । जो नहीं मिलता कहीं और दुनियाँ के इतिहास में । जब गुरु परिवार खेरू खेरू हो गया , माँ से, पिता से ,घर से भाइयों से आतातयियों के चौतरफा हमले के कारण पारिवारिक सदस्यों का बिछोड़ा हो गया । दो बड़े भाई अजित सिंह ,जुझार सिंह चमकौर की जंग में शहीद हो गए । एक पिता शांत अविचलित हो धर्म की अग्नि कुंड में अपने लालों की आहुती दे रहा था । स्तब्ध थे दौर ,जुल्म ही नहीं सितमगर भी ।
मात्र छह साल और नौ साल से कम के इन अद्द्भुत अप्रतिम वलिदानियों की पावन शहीदी स्थली पर गुरुद्वारा फतेहगढ़ साहिब आज साक्ष्य स्वरूप हैं ।
न झुका सके जालिम औरंगजेब का फरमान, न ही सरहिंद का सूबेदार नवाब वजीर खान की अदालत , न गद्दार गंगू पंडित की शिनाख्त ,न ही सुच्चा नन्द की मौत की सिफारिस, न ही काजी का फतवा ,न ही सुख एश्वर्य, जीवन का लोभ ही ।
गर्व है हम उनके वारिस हैं ।
उदय वीर सिंह