कच्चे घर के सामने दरवाजे की सहन में कमजोर से खूँटे से बंधी मुनियाँ नाम की बकरी सुबह से मिमिया रही है अब उसका गला भी बैठ गया है । मालकिन बूधा देवी से कई बार डंडे भी खा चुकी है इस मिमियाने वाली दर्दनाक चीख के लिए फिर भी उसकी चीख बंद नहीं हो रही है। मालकिन द्वारा दिए गए घास को मेमने से बिछुड़ने के बाद से नहीं खाया है ।
आज फिर उसका दस माह का तगड़ा मेमना वलि के लिए आए ख़रीददारों को बेच दिया गया । फिर भी वह उसके
आने की आश में है ।शायद उसकी आवाज सुन कर वह आ जाए या कोई उसके मातृत्व की अंतर्मन
की वेदना को सुन दया कर मेमने को वापस कर जाए ।
बहुत में..में..मे कर रही है तूँ ....बहुत ममता जाग गई है तेरी ... अभी ममता का भूत
उतारती हूँ ...एक पतले सोटे से मारते हुए घसियारिन मालकिन
ने बड़ी बेरुखी से कहा ।
मुनिया की तेज चीख निकल गई खूँटे से भागने की कोशिश करने लगी पर खूँटे से मजबूत रस्सी से बंधी कहाँ जाती । हाँफते हुए गिर पड़ी पैर ऊपर थे आँखों में याचना थी ।
कमीनी सुबह से एसे आसमान उठा रखा है । जैसे इनका राज-पाट चला गया । खजाना लूट गया । वो मेमना नहीं जैसे बेटा था कमाँकर इनको रोटी खिलाता .....चुप रह ! फिर नौ महीने बाद दूसरा मेमना आ जाएगा ,जी भर चूमना चाटना ....बदमाश ! हिकारत से मुनियाँ को मालकिन कोसते हुएअपने हाथ का डांडा दूसरीओर गुस्सेसे फेंकते हुए कहा ।
मुनिया ने सहमी अपनी भींगी आँखों से मालकिन को जाते देखा ।
शायद उसके मन में प्रश्न उठ रहे थे । बहुत कुछ कहना चाहती थी ....
मालकिन तेरा बेटा तो गबरू जवान था हट्टा कट्ठा तुम्हें कमाँकर खिलाने वाला ,छोड़ कर चला गया
परदेश .... कभी नहीं लौटा ,तेरी सुध भी नहीं लेता अब। फिर भी आज तक...याद करती है
मेरा मेमना ...तो...अभी मेरा दूध पीता था तुमने तो उसे उसे काट खाने के लिए बेच दिया । दूसरे की मांस पर तेरा जीवन चल रहा है ..... । हमको नसीहत देती है दूसरा मेमना पैदा हो जाएगा ....... कितना फर्क है जानवर और इंसान में ।
पिछले महीने रामदेव महाजन के बेटे को पचीस लाख रुपए का ठेका मिल गया । मन्नत पूरी हुई । वलि चढाने का संकल्प था ।वलि के लिए काले रंग का बिना बधिया किया बकरा आज मिल गया था । खोज पूरी हुई ।
मेमना वलि का बकरा होगा । महाजन के घर बंधु बांधव जुटेंगे मिल कर उत्सव होगा ।
उदय वीर सिंह