शुक्रवार, 30 दिसंबर 2022

गुरु पर्व की लख लख बधाई..

 






🙏शाहे शहंशाह दशम पातशाह,साहिबे क़माल सरवंश दानी गुरु गोबिंद सिंह साहिब जी महाराज, के पावन प्रकाश पर्व की समस्त मानव जाति को लख- लख बधाई व शुभकामनाएं।

" जो तो प्रेम खेडन का चावो।

सिर धर तली गली मेरे आओ।

जेह  मारग  पैर  धरीजै ,

शीश दीजै कान्ह न कीजै।"

             - दशम पातशाह जी

देह सिवा वर मोहि इहै 

सुभ करमन ते कबहूं न टरौं 

न डरौं अरि सों जब जाइ लरौं 

निश्चय कर अपनी जीत करौं।

            (चंडी छस्तीत्तर से)

भारतीय  संवत्सर के अनुसार गुरु गोबिंद सिंह साहिब का लोक अवतरण प्राकट्य काल मिती पौष माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी, संवत 1723 में व ग्रेगेरियन कैलेंडर के अनुसार 22 डिसम्बर 1666  ई. को पटना ( बिहार राज्य ) में है।

उनका पारगमन काल मिती 17।10।1708  नांदेड़ (महाराष्ट्र) है।

जमिया वीर अगम्मणा वरियाम अकेला

वाहो! वाहो! गोबिंद सिंहआपे गुरु चेला।

पिता नवम पातशाह अमर वलिदानी श्री गुरु तेगबहादुर जी महाराज।

माता- अमर वलिदानी माता गुजर कौर जी

पुत्र-  

1-अमर वलिदानी साहिबजादा अजीत सिंह जी।

2 - अमर वलिदानी साहिबजादा जुझार सिंह जी।

3 -अमर वलिदानी साहिबजादा जोरावर सिंहजी

4- अमर वलिदानी साहिबजादा फतेह सिंह जी

पुत्री- 1- अमर वलिदानी  बीबी शरण कौर (हरि शरण कौर जी)

   निखिल विश्व के महानतम चिंतकों दार्शनिकों राजनेताओं कूटनीतिज्ञों राष्ट्राध्यक्षों सेनापतियों आचार्यों रणनीतिकों इतिहासकारों ने गुरु गोबिंद सिंह जी महाराज के विषय में अपने अनमोल विचार व्यक्त किये हैं। 

संदर्भ-The exillance of Guru Gobind Singh .- (सरूप सिंह अलघ)

संक्षिप्त में सार यही कि श्री गुरु महराज के त्याग वलिदान प्रेम सेवा पौरुष साहस शौर्य पराक्रम ...का इस दुनियां में कोई सानी नहीं।

   अल्ला याद खां जोगी जी के शब्दों में-

मैं तेरा हूं, बच्चे भी मेरे तेरे हैं मौला !

थे तेरे ही, हैं तेरे, रहेंगे तेरे दाता !

जिस हाल में रक्खे तू, वही हाल है अच्छा !

जुज़ शुक्र के आने का ज़बां पर नहीं शिकवा !

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करतार की सौगन्द है, नानक की कसम है ।

जितनी भी हो गोबिन्द की तार्रीफ़ वुह कम है ।

पीर बुल्ले शाह के शब्दों में-

" न कहूँ अबकी ना कहूँ तबकी

न होते गुरु होबिन्द सिंह सुन्नत होती सबकी।" 


   जिनकी बदौलत आज भारत की संस्कृति, संस्कार,आचार, गौरव भारत ही नहीं पूरी दुनियां में उच्च मानदंडों को स्थापित किया है जिसका युग युग ऋणी रहेगा ।

  हमें गर्व है हम उनके वारिस उनके पथ के सेवादार हैं।

उदय वीर सिंह।

सोमवार, 26 दिसंबर 2022

माहे शहादत ( पौष)


 




🙏🙏🙏

माह-ए-शहादत (पौष ) 

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(20  दिसंबर 1705 से 27 दिसंबर 1705)

  साहिबे कमाल दशम पातशाह गुरु गोबिन्द सिंह जी महाराज के चार साहिबजादे बाबा अजित सिंह जी उम्र 18 वर्ष ,बाबा जुझार सिंह जी उम्र 14 वर्ष (चमकौर के युद्ध में ) बाबा जोरावर सिंह जी उम्र 9 वर्ष  बाबा फतेह सिंह जी उम्र 6 वर्ष सरहिंद में ,जालिम सल्तनत द्वारा जिंदा दीवार में चुनवा दिए  गए ,एक मात्र गुरु पुत्री बीबी शरण कौर जी (उम्र 15 वर्ष ) शहीद साहिबजादों व गुरूसिक्खों के  अंतिम संस्कार करते समय शहीद हुईं । माता गुजर कौर जी ने अपने  मासूम पोतों (साहिबजादा जोरावर सिंह जी ,फतेह सिंह जी ) के दीवार में चुने जाने के बाद अपने प्राण त्याग दिए। और हजारों गुरु- सिक्खों को कौम, देश ,संस्कृति व मूल्यों की रक्षा में शहादत प्राप्त हुई  इनके अप्रतिम अकल्पनीय अविस्वसनिय शौर्य, अमर वलिदान ने सनातनी दीपशिखा को सदा के लिए बुझने से बचा लिया। हमे गर्व है हम उनके वारिस हैं।

  लासानी अमर वलिदानियों कोअश्रुपूरित विनम्र श्रद्धांजलि व कोटि कोटि प्रणाम।

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दुनियां बदलने वाले देखे हैं हालात 

कैसे कैसे।

पूछा जालिमों ने फरिश्तों से सवालात

कैसे कैसे।

सच और इंसाफ के रहबरी की 

बात थी,

उठाये हैं अपने बज़्म में मामलात 

कैसे कैसे।

इंसानियत जुल्म जालिमों के हाथ 

मर रही थी,

वहशियों के कारनामे कागजात

कैसे कैसे।

गुरु,गुरुवाणी गुरूसिक्खी कि 

दुनियां लासानी

जमाने को ये दिए हैं हीरे हयात

कैसे कैसे।

उदय वीर सिंह।

शुक्रवार, 23 दिसंबर 2022

पुस्तक विमोचन( बंजर होती संस्कृति)

 सुधि मित्रों मेरी नवीन कृति बानजीर होती संस्कृति का विमोचन 20।12।22 को  सम्पन्न हुआ । हृदय की गहराईयों से आप सभी गुरु शिक्षकों परिजनों संबंधियों मित्रों सुधि पाठकों व स्नेहियों का आदर व आभार। नीचे इंगित लिंक पर चित्र व विवरण संप्रेषित हैं।

उदय वीर सिंह




https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=pfbid03qKfDLQC8DGbM4Esd15sgP4Kouy5YLs2nXpDy8KcohFurrAcPMqcq6Kn1bJLW19ql&id=100001745814776

गुरुवार, 15 दिसंबर 2022

बंजर होती संस्कृति ( कहानी संग्रह)



 



🙏 प्रिय सुधी मित्रों नमस्कार ! 

एक सुखद सूचना आपसे साझा कर रहा हूँ,मेरी नवीन कृति " बंजर होती संस्कृति" (कहानी संग्रह ) हंस प्रकाशन दिल्ली के द्वारा प्रकाशित के विमोचन का सौभाग्य दिनांक 20।12।22 मंगलवार स्थान ग्रेटर कैलाश- 2 दिल्ली में ख्यातिलब्ध शिक्षाविदों व मूर्धन्य हिंदी भाषा सेवियों के सानिध्य व कर कमलों द्वारा मुझे प्राप्त हो रहा है,हृदय से अपने मानयोग अतिथि, हिदी पुरोधाओं सेवियों व साधकों आयोजनकर्ताओं  का आभार व स्नेहिल कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ। 

 सर्वप्रिय डॉ हरीश नवल सर ( यह नाम ही काफी है हिंदी साहित्य की आकाशगंगा में) का ऋणी हूँ जिन्होंने इस पुस्तक को अपने अनमोल शब्द भाव रूपी आशीष दे हमें मान दिया।

  आप सभी गुणीजनों का स्नेह व आशीष पूर्व की तरह मुझे मिलता रहेगा यह मेरा विस्वास है।

बंध-सूत्र.....

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पुस्तक :  "बंजर होती संस्कृति"

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यह कृति किसी एक विधा तक सीमित नहीं है, यह एक विशेष तथ्य है। कहानी, संस्मरण, लघुकथा, टिप्पणी, समीक्षा आदि का एक सम्मिलित समूह है।

ऐसे प्रयोग साहित्य की बेहतरी के सोपान माने जाते हैं। यह पुस्तक सोदेश्यता का प्रतीक बन सकी है। सम्मिलित रचनाएं रंजन हेतु नहीं हैं अपितु कोई ना कोई लक्ष्य या उद्देश्य लेकर चली हैं। अंतःधारा संस्कृति की बिगाड़ की चिंता लिए हुए है, जिसे प्रत्यक्ष न कहकर लेखक ने अपने शब्दों में परोक्ष कहा है।

- इसी पुस्तक से

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रचनाकार : उदयवीर सिंह  (  साहित्यकार)

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विशिष्ट अतिथि: त्रिलोक दीप ( वरिष्ठ पत्रकार)

मुख्य अतिथि: आशीष कंधवे ( साहित्यकार)

सानिध्य: इंद्रजीत शर्मा ( साहित्यकार)

अध्यक्षता: हरीश अरोड़ा ( शिक्षाविद)

विशिष्ट वक्ता:

विभा ठाकुर (समीक्षक) 

रुद्रेश नारायण मिश्र ( शिक्षाविद)

सूत्रधार: कीर्ति बैद ( साहित्य अध्येता) 


20.12.2022,  3 PM

कुंजुम

एम 60, प्रथम तल, एम ब्लॉक मार्केट, ग्रेटर कैलाश - 2 

नई दिल्ली - 110048

नज़दीकी मेट्रो:  ग्रेटर कैलाश

#कस्तूरी

उदय वीर सिंह।

रविवार, 11 दिसंबर 2022

जो दिल में है....


 





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जो  दिल  में  है सबके मयस्सर  हो जाये।

वास्ते सदाकत दुआओं में असर  हो जाये।

अंतहीन न हो रास्ता किसी भी मंजिल का

गम किसी का भी हो वीर मुख़्तसर हो जाये।

काबा किसी के दिल काशी किसी के दिल 

दिल  में  किसी  के बाबे अमृतसर हो जाये।

नफ़रत की छैनियों  ने  तोड़े  हैं तमाम रस्ते

मोहब्बत  हर किसी की हमसफ़र हो जाये।

उदय वीर सिंह।

मसर्रत का पता पूछते रह गए...


 





.....✍️


मसर्रत का पता हम पूछते रह गए।

इतना घना जंगल रास्ता ढूंढते रह गए।

काफ़िले निकल गए उड़ाते हुए गुब्बार,

किसको पड़ी पीछे रास्ते टूटते रह गए।

पूंजी किसी की सामान किसी और का,

बाजार को समझदार  लूटते रह गए।

आग और घर किसी के लगाई किसी ने,

बस्ती के लोग आपस में जूझते रह गए।

उदय वीर सिंह।

बुधवार, 7 दिसंबर 2022

आप जैसी हैं...






 ...........✍️

सुनाऊंगा वही दिल में सदायें आप जैसी हैं।

किया वापस वही हमने वफ़ाएँ आप जैसी हैं।

क्या हासिल हुआ उनको हमें मालूम नहीं भाई,

उनकी  शान  में  मांगी दुआएं  आप जैसी हैं।

जो हमको मिला उनको दिया वो फर्ज था मेरा,

बिना तरमीम के सौंपा फ़िजाएँ आप जैसी हैं।

बहुत तकसीम से हमने चुना हैआपका तोहफा,

पोशीदा है नहीं कुछ भी सजाएं आप जैसी हैं।

उदय वीर सिंह।

6।12।22