मंगलवार, 30 अगस्त 2022

कंचन, कंचन रहता है






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अर्श रहे या फर्श रहे
कंचन, कंचन रहता है।
अवसरवाद के आंगन में
परिवर्तन रहता है।
जितना टूटा जितना बिखरा
उतने अक्स दिखाता,
न बदला अपनी सीरत
दर्पन, दर्पन रहता है।
बंद मिला करती है चौखट
देखा परवाजों के ख्वाब,
स्वार्थ सिद्धि के द्वारों तक
अभिनंदन रहता है।
मर्यादा यश अभिमान वरण
कर कटार ले लेता।
आभूषण की छांव बैठ
कंगन,कंगन रहता है।
उदय वीर सिंह।
29।08।22

शनिवार, 27 अगस्त 2022

तपता सूरज ढल जाता है...






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तिनके तिनके जल उठते हैं

सारा जंगल जल जाता है।

नंगे पदचांपों की आहट से 

प्रस्तर श्रृंग भी हिल जाता है।

न मिटा सका है ताप अखंड

जन जीवनअविरल जाग्रत है,

एक बिरवे की छांव ही काफी

तपता सूरज भी ढल जाता है।

यदि धन-धार हृदय में संचित है

सम्मान सहित मर जाने की,

क्रूर नियति के गल,गाल बसे

अवरोध द्वार भी खुल जाता है।

उदय वीर सिंह।

बुधवार, 24 अगस्त 2022

रब छोड़ जाऊंगा...





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मैं अपनी गीतों का सबब छोड़ जाऊँगा।

जिये मेरा भारत तो मैं रब छोड़ जाऊंगा।

अजमत वतन की मेरे दिल में सिर्फ इतनी है,

अपने वतन को छोड़ सब छोड़ जाऊँगा।

चाहूंगा रखना  मैँ  प्रीत  की  दीवारों को

साँझी विरासत का मैँ दर छोड़ जाऊँगा।

देखी दिखाई अपनी गलियां रकीबों की,

अमन की हिफाजत में अदब छोड़ जाऊंगा।

दर्द  के दयारों  में सवालों की दुनियां है,

जवाबों के जानिब अपनी हद छोड़ जाऊंगा।

उदय वीर सिंह।

सोमवार, 22 अगस्त 2022

अमरबेल सी तेरी छांव...






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बरबस आते स्मृतियों में स्नेह सुरभि के

सुंदर गांव।

तपती किरणों से कवच हमारी अमरबेल

सी तेरी छांव।

ले लेती परछाईंअज्ञातवास जब निशा 

कर्कशा  आती,

पाया हमने कालरात्रि में आगे चलते

तेरे संवेदन के पांव।

समृद्ध  अधर  मुस्कान  सरस रच जाते 

राह विषम वन में,

बतलाता  कौन  पथिक को पथ, सबके 

अपने अपने दांव।

उदय वीर सिंह।

शनिवार, 13 अगस्त 2022

सहारा मिलता.......




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काश! सच को जरा सहारा मिलता।

मुल्जिम को जीवन दुबारा मिलता।

न बेचते हम अपना जमीरो ईमान,

तुमको तुम्हारा हमको हमारा मिलता।

न देते हम नफरत के पैगामों को हवा,

तूफान में किश्ति को किनारा मिलता।

झूठ के पांवों को गर पंख नहीं मिलते,

जमाने को पसंदीदा शोख शरारा मिलता।

इंसान को इंसानियत की आंखें मिलतीं,

न होती ऊंच नींच की खाई न बंटवारा होता।

उदय वीर सिंह।

मंगलवार, 9 अगस्त 2022

खरांस चली गई....

जब से छोड़ा उनके गीत गले की

खरी खरांस चली गयी।

जब से छोड़ा उनकी लीक 

जीवन की लगी फांस चली गयी।

बन समिधा दे आहुति कुंडों में 

अनुवंधों की, 

भय संशय दुविधा की छाई रात

अमावस ख़ास चली गयी।

कब तक धोते आंसू से मुख, 

कब तक प्यास बुझाते,

तोड़े पत्थर के झुरमुट पा मीठे 

सोते सरित तालाश चली गयी।

पाखंडों के जेवर से जीवन

कितना भारी था,

मैने छोड़ा दरबारी गर्दभ राग,

वो गीत उदास चली गयी।

उदय वीर सिंह ।

9।8।22

बुधवार, 3 अगस्त 2022

अमृत पीकर क्या करेंगे...


 





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अर्थ मर जायेंगे तो शब्द जीकर क्या करेंगे।

न रहेगी दुनियां तो अमृत पीकर क्या करेंगे।

जब बारिश  तेजाबी , हवा में मिर्च घुली हो,

दर्द  के  शहर  में जख्म सीकर  क्या करेंगे।

ईश्वर होजाने का यकीन हो जाये आदमी को

उसे आदमियत की नजीर देकर क्या करेंगे।

उदय वीर सिंह।