गुरुवार, 23 मार्च 2023

सहादत दिवस शहीदे आजम सरदार भगत सिंह ...


 




🙏कोटिशः प्रणाम ! विनम्र भावभीनी श्रद्धांजलि ,🌹

शहादत दिवस ( 23 मार्च 1931 सेंट्रल जेल लाहौर ) पर ' शहीदे आजम ' सरदार भगत सिंह,अमर शहीद राजगुरु जी,अमर शहीद सुखदेव जी को ..🌹🌹

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मेरे जज्बातों से वाकिफ़ है इस कदर कलम मेरी,

इश्क लिखना चाहूँ इंकलाब लिखा जाता है।

- शहीदे आजम भगत सिंह।

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शहीदे आजम तुम्हें खोकर

बहुत रोया है चमन,

तेरे दीये की रोशनी आफ़ताब हो रही है।

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बर्बाद न कर सकी हिन्द को 

हुकूमत-ए-नामर्द,

चले मर्द ,मसीहा-ए-इंकलाब चमन आबाद करके।

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तेरी शहादत ने सियासत नहीं मुकाम दिया है।

नस्लों को इंकलाब खोया हिन्दुस्तान दिया है।

रखा  दिल  में वतन कदमों में तख्तो  ताज 

तेरी सरफरोशी ने वतन को पहचान दिया है।

उदय वीर सिंह।

मंगलवार, 21 मार्च 2023

गुलाम से प्यार ..


 





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ये कान  फ़रेब पर ऐतबार जियादा करते हैं।

ये मालिक गुलाम से पियार जियादा करते हैं।

पगार तो मुई खलिस दूज का चांद लगती है,

दरबारी  इनाम  से  पियार जियादा  करते हैं।

जमाना मशगूल रहता है तलाश में हीरे  की,

जमाल से कमतर इश्तिहार जियादा करते हैं।

कांटों की वसीयत में फूलों की चाशनी रखते,

मक्कार भरोषे का कारोबार जियादा करते हैं

उदय वीर सिंह।

रविवार, 12 मार्च 2023

हर आंख सवाली नहीं होती...


 






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माना कि यहां सवाल बहुत  हैं जी,

मगर हर आँख  सवाली नहीं होती।

माना कि बहुत कमीं है मसर्रत की,

मगर  हर  झोली  खाली नहीं होती।

माना  बाजार नफ़ा- नुकसान का है, 

मगर हर सौदों  में दलाली नहीं होती।

हसरतों को जमीन मिले सब चाहते हैं,

होली तो किसी की दिवाली नहीं होती।

तन का लाल खून बहता जिस नस से

वह गोरी  किसी की काली नहीं होती।

उदय वीर सिंह।

शनिवार, 11 मार्च 2023

जमाने लगे.....


 






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जमाने  लगे  सच का सत्कार करने में।

पल  न  लगा झूठ का व्यापार करने में।
जलता रहा दौर  साजिशो  फ़रेबी आग,
लश्कर लगे रहे सच को लाचार करने में।
झूठ  की परत अनवरत मोटी होती गयी,
झूठ  लगा रहा सच को तार तार करने में।
झूठ की  सोहबत शौक, शान  बनने लगी,
मौत नसीब हुई सच को स्वीकार करने में।
ये सच है कि सच कोई फूलों की सेज नहीं
बहुत  मुश्किल  है सच पे एतबार करने में।
उदय वीर सिंह।
10।3।23

बुधवार, 8 मार्च 2023

अंतराष्ट्रीय महिला दिवस


 


.विश्व महिला दिवस  (8 मार्च)की

बधाई मित्रों !..✍️


संस्कार की बात करें तो कलम
संस्कारी हो जाये।
पूर्वाग्रहों  को तोड़ मुख्य-धारा में
नारी हो जाये।
ताड़ना की अभिव्यक्ति को  मोक्ष
दे पाएं,
नारी समतल धरातल की निर्विवाद
अधिकारी हो जाये।
उदय वीर सिंह।

रविवार, 5 मार्च 2023

इश्तिहारों से मिलते हैं...







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चलो हम इश्तिहारों से मिलते हैं।

खूबसूरत रंगो बहारों से मिलते हैं।

ठहरा खाली पेट  कोई बात नहीं,

भरे हुए कागज़ी नारों से मिलते हैं।

ये जमीन तो कदमों के नीचे है जी,

चलो सूरज चांद तारों से मिलते हैं।

आमो-खास के हैं ये दयार खुले हुए,

चलो  ऊंची  दीवारों  से  मिलते हैं।

अमन तो आग से है कोई बचा नहीं,

चलो हारे हुए किरदारों से मिलते हैं।

मिठास पकवानों के ख़्वाब में रह गई,

हैं  खाली हाथ त्योहारों से मिलते है

उदय वीर सिंह।

शनिवार, 25 फ़रवरी 2023

" बंजर होती संस्कृति"


 




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नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेले के आयोजन (25।2।23 से5।3।23) को हमारी हार्दिक बधाई व नेह भरी शुभकामनाएं। इस अनुपम मेले का अपना विशिष्ट अतीत स्थान व गौरव है।

 हमें आत्मिक खुशी है कि इस पुस्तक मेले में, हाल संख्या-2 स्टाल न. 387 पर " हंस प्रकाशन " द्वारा प्रकाशित मेरी पुस्तक * बंजर होती संस्कृति * की भी उपस्थिति होगी।

    आप सबकी आशीष व स्नेह मिलेगा मेरा दृढ़ विस्वास है।

उदय वीर सिंह।

अपना मायिना है...


 






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कोई दक्ष, बाम किसी का दाहिना है।

पांव की रफ़्तगी मंजिल को नापना है

यह बात अलग  है हम  पढ़ नहीं पाए,

हर  तख़लीक़  का अपना  मायिना है।

रखना  मजबूरी नहीं  एक  जरूरत  है,

हर  एक शख़्श का अपना आयिना है।

पत्थर  को कभी फूल नहीं कहा शीशा

यह  जानकर  भी  कि उसको टूटना है।

उदय वीर सिंह।

शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2023

जफ़र किस काम का होगा..

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हम ख़ुशहाल हुए जी, दूसरों को दर्द देकर।

सोए खूब दूसरों को जागने का फर्ज़ देकर।

विपदा  में अवसर तलाशा मोटी कमाई का, 

मालामाल  हुए  मोटे व्याज का कर्ज़ देकर।

खून-पसीने का मोल अदा किया  इस तरह,

हमने वापस किया जी लाइलाज़ मर्ज़ देकर।

फिज़ाओं का बे-सरहद होना बे-अदब माना,

नंगा  किया शज़र को  हमने पत्ते  ज़र्द देकर।

उदय वीर सिंह।

शनिवार, 18 फ़रवरी 2023

खोया खोया मिलता है....

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पाखंड  की   प्रचीर  में सत्य 

कहीं खोया-खोया मिलता  है।

पाखंड रत जगराते में है सत्य 

कहीं  सोया- सोया  मिलता है।

अहंकार  मद  की  पूंजी  का 

गगनचुम्बी होना आश्चर्यजनक

सत्य ,सरलता की भूमि में कांटा 

तमाम  बोया -बोया मिलता है।

टूट गया तर्कों का धागा,साहस 

सीने  में  रोया - रोया मिलता है

हमने अपनी हार को भी जीत

कहना  सीख  लिया   जबसे,

विजय अनुसंधान का परिमल

कहींअनाम  लकोया मिलता है।

उदय वीर सिंह।