रविवार, 24 सितंबर 2023

जिसके सिर ऊपर तुम स्वामी ...


जिसके सिर ऊपर तुम स्वामी 
सो दुख कैसा पावे.🙏🏻    (गुरुवाणी)
   नमस्कार सुधि मित्रों!आपकी पाक दुआओं का दिल से सिजदा और शुक्रिया ।🙏🏻
   कल 22।9।23 को  ख्यातिलब्ध अस्पताल  अपोलोमेडिक्स सुपर स्पेसियालिटीज लखनऊ से स्वनाम धन्य चिकित्सकों डॉ. जी स्वरूप (मुख्य सर्जन),डॉ. आदेश सिंह, डॉ.मोहित सिंह जी व उनकी कुशल अनुशाषित टीम तथा श्रीमती यन सिंह जी (प्रबंध निदेशिका )व अन्य कार्मिकों की तरफ से शुभकामनाएं पाकर पुलकित था,अस्पताल से पूर्ण परीक्षण के उपरांत मैं मुक्त हुआ। 
   उनके दिये स्नेह सत्कार उच्च मानवीय मूल्यों व सेवा के लिए मेरी रब से अरदास उन्हें अपने जीवन का उच्च शिखर  प्राप्त हो।
  मेरा व मेरे पाल्यों,परिजनों का दोनों कर जोड़ सबको सादर प्रणाम व वंदन स्वीकार हो।
   सानन्द अब मैं अपने गोरखपुर आवास पर स्वास्थ्य लाभ कर रहा हूँ। और आप सभी सहृदयों का सानिध्य आशीष शुभकामनाएं मुझे मयस्सर जो रही हैं।हृदय से कृतज्ञता ज्ञापित करता हूँ।जिसका कोई मोल नहीं चुका सकता सिवा आपके समक्ष सिजदे के। वाहेगुरू पुनः मुझे हिम्मत मजबूती और हौसला बख्शे मेरी याचना है।
उदय वीर सिंह।
# डॉ गौतम स्वरूप।MDअपोलो अस्पताल लखनऊ,

 

रविवार, 17 सितंबर 2023

शुकराना दाते 🙏🏻




 🌹....तेरा शुकराना दाते🙏🏻

तेरी दया से जीवन स्वस्थ व पुनः सृजन में सक्रिय हुआ। 🌹

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दर्द भी मुफ़ीद हो जाता है तेरा प्यार पाकर।

गिरने की वजह न होती तेरा आधार पाकर।

ये मौसम ये मंजर बदलते हैं एक दूजे के संग

मेरा भरोषा कायम रहा दाते तेरा दरबार पाकर।

उजाला  भी  कितना  अंधेरा था मायूसियों में,

हम  प्रदीप्त हुए तेरा लासानी  इलहाम पाकर।

उदय वीर सिंह।

शनिवार, 2 सितंबर 2023

मिटाना चाहता है।







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चाँद परतोअपनी बस्ती बसाना चाहता है।
आदमी ही आदमी को मिटाना चाहताहै।
बेपनाह मोहब्बत हो गयी नफरत से उसे
हर गांव ,हर शहर इसे लगाना चाहता है।
इल्म   से  गूंगा  शराफत  से  बहरा हुआ
दर  दीये  रोशनी   के  बुझाना  चाहता है।
मशरूफ़  मंदिर  मस्जिद  की  तामीर  में,
इंसानियत की कायनात गिराना चाहता है।
कहीं मुठ्ठी भरअनाज को मोहताजआदमी
कोई दुनियां  की दौलत खजाना चाहता है।
उदय वीर सिंह।

रविवार, 27 अगस्त 2023

विज्ञान को दूर रखो पाखंड से....✍️


 






विज्ञान को दूर रखो पाखंड से!...✍️

सुना  है चाँद पर  मज़हब इंतजार में है।

ज्ञान हासिये पर हुआ सौदाई प्रचार में है।

सुना  है  रोवर से पहले पहुंच गया फरेब,

एलियन, भगवानों  की चर्चा बाजार में है।

शरगोशियाँ  हैं अब अपनी मुट्ठी में है चाँद,

चाँद कहकशाँ में नहीं अपने अखबार में है।

हम  कहाँ  निकले जहालत के हिजाब से,

चंद्रयान की सफलता पाखंड के दरबार में है।

हम यूं ही नहीं हुए बेगाने अपनी जमीन पर

साडी हिलती हुई छत झूठ की दीवार पर है।

उदय वीर सिंह।

सोमवार, 21 अगस्त 2023

संभाल के बोलिये






 

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बोलिए जनाब हिसाब से  बोलिये।

तथ्यों  से और किताब  से बोलिये।

न जा पाएंगे कुछ भी बोल कर वीर

अपनी जबान  संभाल कर बोलिये।

जमाना सुनता हैऔर सोचता भी है,

मंच से बोलिये या ख़्वाब से बोलिये।

जानने लगे लोग सच-झूठ का फर्क

नेक रहमदिल  हो  वहाब से बोलिये।

गूंगा भी समझता है प्यार  की भाषा

बेनकाब बोलिये या नकाब से बोलिये।

उदय वीर सिंह।

गुरुवार, 17 अगस्त 2023

कौन देखता है।


 





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रूप  देखता  है  हिजाब कौन  देखता है।

ख़्वाब सामने होतो ख़्वाब कौन देखता है।

जब उम्र  निकल गयी ब्याज भरते - भरते

कर्ज़ माफ़ हो जाए हिसाब कौन देखता है।

सरगोशियां हैं  कैद  हो गयी खिजाओं को,

मौसम  गुलाबी  हो गुलाब  कौन देखता है।

मंजूर हो जाएं तन पर लगे सारे काले दाग

कागज कोरा ही सही जवाब कौन देखता है।

उदय वीर सिंह।

रविवार, 13 अगस्त 2023

मुकाम आ गया है...








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रहजनों की बस्तियां तूफ़ान आ  गया है।

लुटेरों के आगेअब हिंदुस्तान आ गया है।

आग की जद में कभी समंदर नहीं आता

दहशत  है  बज्मे-दर्द  इंसान आ गया है।

सिंहासन के नीचे आखिर जमीन रहती है,

उसे खाली  कराने मालिकान आगया है।

कभी समय ठहरा नहीं न ही ठहरेगा कहीं

उतरना होगा मुसाफिर मुकाम आ गया है।

उदय वीर सिंह।

शनिवार, 12 अगस्त 2023

आंसू मौत दहशत...








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 आंसू मौत दहशत मद पहचान हो गयी है।

देख राजा की रियासत बदनाम हो गयी है।
नीलाम  आबरु  है अपनी ही सरजमीं पर,
सुंदर शहर  की धरती शमशान हो गयी है।
घावों को रोज सीते,नित रोज नए मिलते हैं,
कंदुक  सी खेलों में अब आवाम हो गयी है।
सत्य  तडफता  होठों  पर बंदूकों का पहरा,
संवेदन प्रीत समीर कहीं गुमनाम हो गयी है।
उदय वीर सिंह।

मंगलवार, 8 अगस्त 2023

बुझे हुए चिरागों..








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बुझे हुए चिरागों से उजालों की उम्मीद कैसी।

बिकी हुई जुबान से सवालों की उम्मीद कैसी।

मर-मर कर रोज जीने का जिन्हें सलीका आया,

उनसे सरफरोशी के खयालों की उम्मीद कैसी।

हौसलों  की छत सिर उपर न रख पाए अपने

बुझे  हुए चूल्हों  से , निवालों  की उम्मीद कैसी।

एक हवा का हल्का झोंका क्या आया गिर पड़े,

भुरभुरी रेत की अबल दीवालों से उम्मीद कैसी।

उदय वीर सिंह।

शनिवार, 5 अगस्त 2023

सच कह गया होता..


 






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जो सच था वो सच कह गया होता ।

आदमी सिर्फ आदमी रह गया होता।
टूटने  का  डर न होता शीशों  को वीर,
पत्थरों  में  थोड़ा दर्द  रह  गया होता।
लौटना होता  है परवाज़ से परिंदों को
आसमान ऊंचाई देता है घर नहीं देता।
मुल्तवी होतीं अदालतें,मंसूख तारीखें,
इंसाफ नहीं मिलता जो डर गया होता।
उदय वीर सिंह।