शनिवार, 27 जुलाई 2024

....स्नेहिल प्रणाम✍️


 




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  आज हमारी वैवाहिक वर्षगांठ ( 27 जुलाई )। हमारे दाम्पत्य जीवन के आरंभन का शुभ-दिवस करीब तीन दशक पूर्ण करने को।

   परमात्मा व आप सब सहृदयों परिजनों पाल्यों शुभचिंतकों ने सुख-दुःख,पावस शीत, बसंत झंझावातों को समदर्श बनाते अपनी धुन में अग्रे गमन का अप्रतिम अनवरत संबल दिया। सदा कृतज्ञ हैं हम दोनों आपकी आशीष व निश्छल स्नेह के 🙏

प्रीत हमारे गीत सदा अभिनंदन करते आये

सबके खुशियों कीअरदास वंदन करतेआये।

पवनआशीष की बहती आई मेरेआंगन तेरी

मान सम्मान के भाल रोली चंदन करते आये

उदय वीर सिंह।

गोरखपुर।

27।7।24

शनिवार, 20 जुलाई 2024

.....कुछ और मिलेंगे


 





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सच को झूठा कहने वाले कुछ और मिलेंगे।
भूखे सोने वालोंको वादोंके कुछ कौर मिलेंगे
वहशी और कमीनों केहक गीत लिखे जाएंगे,
कागज केपेड़ों पर कागजके कुछ बौर मिलेंगे
महलों  का सूना हो जाना देखा  है हम सबने
रब इतना बेदर्द नहीं बेघर कोभी ठौर मिलेंगे।
पाकर मत हारो कुछ ठोकर,कांटोंकी घातों से
इससेभी ज्यादा रूखे,कच्चे कुछ दौर मिलेंगे।
उदय वीर सिंह।

बुधवार, 17 जुलाई 2024

अव्यक्त.....






 

अव्यक्त ...

कहाँ वक्त है कि बुराईयां लिखूं....

अच्छाईयां लिखने में वक्त निकल जाता है..

झूठ को झूठ के ऊपर छोड़ देता हूँ...

सच्चाईयां लिखने में वक्त निकल जाता है...

नागफनी बबूलों की चुभन 

तकलीफ देती है,

अमराईयाँ लिखने में वक्त निकल जाता है..

गालियां अपमान को स्वर,शब्द देना 

रुचिकर नहीं लगता,

रुबाईयाँ लिखने में वक्त निकल जाता है....

दिल के पास पहुंचने में धर्म नहीं मर्म की जरूररत है,

संवेदना की साधक दवाईयाँ लिखने में 

वक्त निकल जाता है.....

काशी और काबे को तो लिखा बहुत गया...

जरूरतमंद की चौपाइयां लिखने में 

वक्त निकल जाता है....

ज़हर को दूर रखा है अपनों व गैरों से भी,

प्रीत की मिठाईयां लिखने में मेरा 

वक्त निकल जाता है.....

उदय वीर सिंह।

सोमवार, 15 जुलाई 2024

प्यार समझा....


 





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अश्लील जश्न का  भौंडा आधार समझा।

महल का झोपड़ी से रंगीला प्यार समझा।

बुझाये गए दीये तो महल में रोशनी आयी,

बंद हुई टूंटीयां फौवारों की फुहार समझा।

मज़बूरी दहशत ने मजबूर किया सिजदे को

दौलतखाने पर हुई आईनों की हार समझा।

भूखी आंतें सूखी नसों का खून कहाँ गया,

खून  से  सींचे गए बागों  की बहार समझा।

बंद हुईं पगडंडिया राजपथों की शान आयी

काटे गए  पेड़ तो हाईवे की रफ्तार समझा

उदय वीर सिंह ।

मंगलवार, 9 जुलाई 2024

रैन भई चहुँ ओर...

 

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...रैन भई चहुं ओर...✍️

बदलेगी सूरत थोड़ा उपकार कर दो।

गहरे जख्मों का नाम यार कर दो। 

भ्र्ष्टाचार का नाम सदाचार रखना

सवाल का नाम अत्याचार कर दो।

विकलांगता को पूर्ण आत्मनिर्भरता 

मजबूर का नाम असरदार कर दो।

सुलझ जाएंगी सारी उलझी पहेलियां

फरियादी का नाम सरकार कर दो।

हर  किसी कर से मुक्ति हो जाएगी

दौलतमंद का नाम कर्जदार कर दो।

तरक्की दिखने लगेगी ऊंची सर्वोपरि

विनाश का नाम चमत्कार कर दो।

धंसती  सड़क  गिरते पुल  प्राकृतिक

लूट रहजनी का नाम परोपकार  कर दो

जो हादसा हुआ उसको कर दो दफ़न

जो  नहीं  हुआ  उसे अखबार कर दो।

उदय वीर सिंह।

रविवार, 7 जुलाई 2024

मालिक से मेहमान


 






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मालिक था दहलीज का मेहमान हो गया है
अपनों के बीच अपना गुमनाम हो गया है।
नफ़रत भुला के ख़ैर मांगा था रब से सबकी
रिश्ता  निभा  के सबसे बदनाम  हो गया है।
सच की इबारतों को पढ़ने लगा था दिल से
नफ़रत के हाकिमों का मुल्जिमान हो गया है
एक आंगन में रहने वाले इतने हुए बेगैरत
एक कमरा भारत एक पाकिस्तान हो गया है।
उदय वीर सिंह।

शुक्रवार, 5 जुलाई 2024

कागजात कोई....


 





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वक्त के ऊपर छोड़ मतअपने कागजात कोई।

बेवक्त मत छेड़ अपने  दिल के जज्बात कोई।

किसी मन्नतों  का  सिला तेरे  हाथ में तो नहीं,

अपने हसरतों की नहीं मिलती कायनात कोई।

हटाना तो  तुम्हें  ही  पड़ेगा गमों व गर्दीशी को

नहीं धो पाती गमों को बादल की बरसात कोई।

उदय वीर सिंह।

बुधवार, 19 जून 2024

कह रहा वक्त ...


 






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कितना कंपित है झूठ का पहाड़ लेकर।

कोशिश पेड़ होने की हाथों में झाड़ लेकर।

उड़ रहा हवाओं से बादलों का रंगमहल

परेशान  है  फरेब, झूठ की आड़ लेकर।

अमन  की  तलाश  में मशालें निकली हैं,

राजा  दहशत  में  है  कोरी दहाड़ लेकर।

मोहब्बत  मुसाफिरों की बरगद मांगती है,

करेंगे  क्या ऊंचा छायाहीन  ताड़ लेकर।

वक्त कह रहा किनारों किश्तियाँ संभालो

डूब जाएंगी बस्तियां नफ़रत कीबाढ़ लेकर

उदय वीर सिंह।

सोमवार, 17 जून 2024

उलझाया मत करो...








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सुलझी  हुई  पहेली  उलझाया  मत  करो।

देखने दो सपने आंखों को रुलाया मतकरो।

पढ़ता  रहेगा  जमाना  पन्ने माजी के श्लोक,

शिलाओं की इबारतों को मिटाया मत करो।

तेरे झूठ से हजारों सच दफ़न हो जाएँगे वीर

बेच कर  जमीर झूठी कसमें खाया मत करो।

बहुत  रोया  है  जमाना तुम्हारे झूठो फरेब से

शराफती शिगाफ़ का फायदा उठाया मतकरो।

बोलो  की  वतन को नाज हो तालिब होने का

चारो तरफ  आईना है कुछ छुपाया मत करो।

उदय वीर सिंह।

गुरुवार, 13 जून 2024

इश्तिहारों ने...


 







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इश्तिहारों  ने सुर सिकंदर बना  दिया।

छोटी सी बावली थी समंदर बना दिया।

अफवाहों  ने  सच  को  झूठ का सदर,

बारीक सी सुई  को  खंजर बना दिया।

दीन की झोपड़ साजिश की नजर लगी

मालिक माफिया जमीं बंजर बना दिया।

भूख  को  तमाशा  शरीर  को  नुमाइश

जरूरत को मस्जिद- मंदिर  बना दिया।

उदय वीर सिंह।

गुरुवार, 23 मई 2024

अप्प दीपो भव...♨️


 





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अप्प दीपो भव ♨️

बुद्ध पूर्णिमा की आत्मिक बधाई मित्रों!

कल  भी  असर  था असरदार है।

बीच  मझधार  में एक पतवार है।

सत्य को रोशनी की जरूरत नहीं।

चाँद,सूरज से ज्यादा चमकदार है।

अहिंसा की लहरों का सिजदा सदा,

प्रेम, इंसानियत  का  तरफ़दार है।

राग  करुणा दिलों में खनकती रहे,

हर दिलों में दया की  ही  दरकार है।

उदय वीर सिंह।

शनिवार, 18 मई 2024

फिर आएगा मधुमास


 





...फिर वही मधुमास ..✍️

गिर  जाने का  डर लेकर 

चलने  की  प्रत्याशा छोड़।

अपने  पग  का  मान रहे 

औरों  की सबआशा छोड़।

चाहे जितना बांधो अपनी

मुट्ठी  से  रेत  फिसलनी है,

दुःख  आये  या सुख बेला

नयनों  से  बूंद निकलनी है।

बैसाखी का नत अवलंबन 

जीवन  को भार बनाता है,

बीज   दफ़न   हो  मिट्टी में

फल का आधार बनाता है।

आंखों  में  सूनापन  क्यों 

हास परिहास भर जाने दो।

जीवन  के  अनुदार  तत्व 

मानस  से  मर  जाने  दो।

पतझड़ का आना पाप नहीं 

वो  आया  है  फिर जाएगा।

फिर  कुसुम  की  डार  वही

वैभव मधुमास का आएगा।

उदय वीर सिंह।

मंगलवार, 14 मई 2024

उंगलियों में....







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हमारी  उंगलियों  में तलवार देखने लगे।

नंगी  शमशीरों  में  पतवार  देखने  लगे।

दलदली जमीन  पोली  उर्वर  कही  गई,

मीठे नीर की बावली मझधार देखने लगे।

विश्वास का संकट इतना गहरा होता गया

चोर उचक्कों में अपना सरदार देखने लगे।

तिजारती  गलियां  हयात सी दिखने लगीं,

पाक आंगन  में  मेला  बाजार देखने लगे।

उदय वीर सिंह।

रविवार, 12 मई 2024

अलविदा डॉ सुरजीत पातर साहब 🙏🏼

 






अलविदा अनमोल रत्न सरदार " डॉ सुरजीत पातर " साहब 🙏🏼पंजाबियत व पंजाबी बोली के एक  देदीप्यमान नक्षत्र का यूं अस्त हो जाना ! बहुत ही दुःखद। आप प्रखर अभिव्यक्ति के बुलंद सालार रहे। आम जनमानस की आवाज के अप्रतिम साहित्य मनीषी।

🌹 विनम्र श्रद्धांजलि सर🌹

जी आप  जैसे  कम  मिलते हैं।

बाद जाने के सिर्फ गम मिलते हैं।

सालारों के तख़्त तो भर जाएंगे

मगर सालारों के नैन नम मिलते हैं।

उदय वीर सिंह।

11।5।24

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मंगलवार, 7 मई 2024

जरूरत मसले मुद्दे...✍️


 






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जरूरत, मसले ,मुद्दे गायब हैं अखबारों से।

धर्म पंथ उन्माद भेद मुफ्त मिले बाजारों से।

शिक्षा ,तर्क, ज्ञान विज्ञान हुए व्यर्थ के गीत,

रोटी कपड़ा मकान सब चीने गए दीवारों से।

शिक्षा स्वास्थ्य सुरक्षा हुए गए दिनों की बातें,

हुआ उपेक्षित जनजीवन मूलभूतअधिकारों से।

भय भूख गरीबी का चिंतन मनन विलोप कहीं,

टोपी माला रंग वसन के अलख जगे दरबारों से।

धर्म ,जाति ,कुनबों ,फिरकों की रक्षा सर्वोपरि,

नित जीवन घिरता जाताअंध पाखंड के तारों से।

उदय वीर सिंह।

शुक्रवार, 3 मई 2024

सलामत रहो...✍️


 





.....✍️

आंधियों  को इजाजत  दिए जा रहे,

चिरागों  को   कहते  सलामत  रहो।

आग  में घी की आमद बढ़ी जा रही,

कह  रहे  बस्तियों  को सलामत रहो।

दे  रहे  हो  ज़हर  जाम  दर जाम भर,

कह  रहे  जिंदगी  को  सलामत  रहो।

भर रहे  वैर  नफ़रत दिल दहलीज में,

कह  रहे  आदमी  को  सलामत  रहो

उदय वीर सिंह।

मंगलवार, 9 अप्रैल 2024

मकबूल कहना पड़ेगा.....✍️






 


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पत्थरों  को  फूल  कहना  पड़ेगा।

कमतरों को माकूल कहना पड़ेगा।

जहरीली  हवाओं की रफ्तगी देख,

नाकारों को मकबूल कहना पड़ेगा।

छीन तोड़ दिए जाएंगे दस्तो कलम 

औजारों को  फ़िजूल कहना पड़ेगा।

दरकती जमीं का हिस्सा कहाँ जाएगा,

पुस्तैनी जमीन को नजूल कहना पड़ेगा।

सोचा न था होंगे साजिशों की महफ़िल

किसी नापसंद को कबूल कहना पड़ेगा।

उदय वीर सिंह।

बुधवार, 3 अप्रैल 2024

सच तन्हा होगा....✍️


 






सच तन्हा होगा....✍️

पराजित  भी  होगा  परेशान  भी होगा।

कभी सोचा न था सच नीलाम भी होगा।

होगा  खौफ़जदा , रहेगा  सहमा-सहमा,

हो जाएगा तन्हा बहुत बदनाम भी होगा।

इल्हामी  अजीज गवाही  देंगे ख़िलाफ़ती

सच  की  हार  पर  बड़ा  इनाम भी होगा।

साजिशी शिकंजों में घिर जाएगा इसकदर

लानतों  में  ये जमाना  मेहरबान भी होगा।

सच की नुमाईश का कोई फर्क नहीं पड़ता

तमाशबीनों में हिन्दू होगा मुसलमान भी होगा।

उदय वीर सिंह।

गुरुवार, 28 मार्च 2024

बहार लेके जाएगा...✍️






 घर -बार लेके जाएगा......✍️

लगता  तूफ़ान  घर बार लेके जाएगा।

खेत खलिहान व व्यापार लेके जाएगा।

आयी  दरार  एक  आंगन की भीत में,

ईद व दिवाली का त्योहार लेके जाएगा।

टूटे  न  टूटा  कभी  मौसम की मार से,

दिल में संजोया  ऐतबार  लेके लाएगा।

रंगे- बिरंगे,  गुल, गुलशन  में  आये थे, 

नोच-नोच शाखों से बहार लेके जाएगा।

रूठते  मनाते  भाई दुःख सुख सहते थे,

देके आघात दिल से प्यार लेके जाएगा।

रूखी- सुखी दाल- रोटी खाते पकाते थे,

देके बेबस लाचारी रोजगार लेके जाएगा।

उदय वीर सिंह।

रविवार, 24 मार्च 2024

मुश्कें मरोड़ देगा....✍️


 





मुश्कें मरोड़ देगा...✍️

हथकड़ी  बेड़ी  कुदरती  नहीं तोड़ देगा।

आजादी  का परवाना गुलामी छोड़ देगा।

कोई दरिया भी बेलगाम नहीं हो सकती,

इंसाफपसंद  बांध बना रास्ता मोड़ देगा।

भंवर  मुसाफ़िर को  इतना  भी न डराना

पुल बनाकर दोनों साहिलों को जोड़ देगा।

कितना भी मजबूत हों टिकते  नहीं  वीर,

ईमान  झूठो फरेब  का  भांडा  फोड़ देगा।

खामोशी व सब्र के औजार निष्क्रिय नहीं,

वक्त आने पर जबर की मुश्कें मरोड़ देगा।

उदय वीर सिंह।