सोमवार, 28 सितंबर 2015
रविवार, 27 सितंबर 2015
तुम निवाला क्या करोगे ....
गहन अँधेरों के वासी हो
तुम उजाला क्या करोगे -
भूखा रहने की पड़ी है आदत
तुम निवाला क्या करोगे -
भक्ति भगवंत का ज्ञान नहीं
कर लेकर माला क्या करोगे -
दिख जाएगा जग जो उठी नजर
काले को काला क्या करोगे -
तुम उजाला क्या करोगे -
भूखा रहने की पड़ी है आदत
तुम निवाला क्या करोगे -
भक्ति भगवंत का ज्ञान नहीं
कर लेकर माला क्या करोगे -
दिख जाएगा जग जो उठी नजर
काले को काला क्या करोगे -
गुरुवार, 24 सितंबर 2015
वो कल्पना से तुम कर्म से हो
ऊंचा हिमालय तुम्हारी तरह है
वो पत्थरों से तुम प्रेम से हो -
बहती है सरिता तुम्हारी तरह ही
वो नीर से है तुम नेह से हो -
जीता सिकंदर शमशीर लेकर
वो बैर से है तुम स्नेह से हो -
लेता अंगूठा कोई द्रोण बनकर
वो ज्वाल सा है तुम दीप से हो -
प्रारव्ध ऊंचा तुम सा नहीं है
वो कल्पना से तुम कर्म से हो -
उदय वीर सिंह
वो पत्थरों से तुम प्रेम से हो -

वो नीर से है तुम नेह से हो -
जीता सिकंदर शमशीर लेकर
वो बैर से है तुम स्नेह से हो -
लेता अंगूठा कोई द्रोण बनकर
वो ज्वाल सा है तुम दीप से हो -
प्रारव्ध ऊंचा तुम सा नहीं है
वो कल्पना से तुम कर्म से हो -
उदय वीर सिंह
मंगलवार, 22 सितंबर 2015
माई के गाँव में
माई के गाँव में पीपल की छांव में
गोरी के पाँव में ,झांझर के बोल अब
सुनाई न देते हैं -
मक्के दियाँ रोटियाँ ,मख्खन चे मलाइयाँ,
लस्सी भरी कोलियाँ ,सरसों के साग अब
दिखाई न देते हैं -
गीतों में बोलियाँ ,हथ गन्ने की पोरियाँ
गिद्दे की टोलियाँ बापू के गाँव अब
दिखाई न देते हैं -
गुत से परान्दे,सिर पल्लू का बिछोड़ा है
शब्द सुहेले भावें, नितनेम आँगन में
सुनाई न देते हैं -
सताई गई है प्रीत ,रुलाई गई है प्रीत
मिटाई गई है प्रीत, कोख आई बेटी को
बधाई न देते हैं -
उदय वीर सिंह

सुनाई न देते हैं -
मक्के दियाँ रोटियाँ ,मख्खन चे मलाइयाँ,
लस्सी भरी कोलियाँ ,सरसों के साग अब
दिखाई न देते हैं -
गीतों में बोलियाँ ,हथ गन्ने की पोरियाँ
गिद्दे की टोलियाँ बापू के गाँव अब
दिखाई न देते हैं -
गुत से परान्दे,सिर पल्लू का बिछोड़ा है
शब्द सुहेले भावें, नितनेम आँगन में
सुनाई न देते हैं -
सताई गई है प्रीत ,रुलाई गई है प्रीत
मिटाई गई है प्रीत, कोख आई बेटी को
बधाई न देते हैं -
उदय वीर सिंह
दीपक बिना घर, दिवाली न होती है
दीपक बिना घर, दिवाली न होती है
बिना दर्द के अंख सवाली न होती है -
उलफत की डोरियाँ जीवन को बांधो
मानुख की जाति गोरी काली न होती है -
ग्रन्थों में देवी,क्यों पर्दे की नुमाइश
सृजना कभी काम-वाली न होती है -
बेबसी भूख में रोटियों का निवाला
अंजुरी से बड़ी कोई थाली न होती है -
अधिकार को जब दया वृत्ती माना
याचना से बड़ी कोई गाली न होती है -
उदय वीर सिंह
बिना दर्द के अंख सवाली न होती है -

मानुख की जाति गोरी काली न होती है -
ग्रन्थों में देवी,क्यों पर्दे की नुमाइश
सृजना कभी काम-वाली न होती है -
बेबसी भूख में रोटियों का निवाला
अंजुरी से बड़ी कोई थाली न होती है -
अधिकार को जब दया वृत्ती माना
याचना से बड़ी कोई गाली न होती है -
उदय वीर सिंह
रविवार, 20 सितंबर 2015
क्या ठिकाना
क्या ठिकाना-
जाने कब हो जाएगा हैवान आदमी
क्या ठिकाना -
तपती देग में रिस्तों को भून रहा
लेन-देन के भाव तराजू तोल रहा -
कब देगा बदल ईमान आदमी
क्या ठिकाना -
एक हाथ से देकर,एक हाथ से ले
अर्थशास्त्र की भाषा को बोल रहा -
जाना हो जाएगा अनजान आदमी
क्या ठिकाना -
टूटे पाँव बैसाखी टूटी छोड़ चले अपने
विदीर्ण हुए हृदय के पाल रखे थे सपने
मालिक कब बन जाए मेहमान आदमी
क्या ठिकाना-
उदय वीर सिंह
शनिवार, 19 सितंबर 2015
जगने के संवत्सर बीते
जगने के संवत्सर बीते
सोने वाले चले गए -
पीड़ा स्तम्भ बन जमीं रही
रोने वाले चले गए-
लगी मैल तो लगी रही
धोने वाले चले गए -
जागेगा सूरज सो करके
प्रतीक्षारत जन चले गए-
रह गई गांठ
माई के आँचल
दिन गिनने वाले चले गए-
पिये दर्द अब आश्रित हैं
संग चलने वाले चले गए -
काला टीका बांध करधनी
सुध लेने वाले चले गए -
दूध भात से भरे कटोरे
देने वाले चले गए -
उदय वीर सिंह
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