मंगलवार, 29 नवंबर 2016
शनिवार, 26 नवंबर 2016
संविधान the life-line

संविधान ! है तो-
संप्रभुता है ,अखंडता है
संपन्नता है सम्मान है
समानता, शिक्षा, सुरक्षा है
आशा है, विस्वास है
अवसर, आलोचना, अभिव्यक्ति की
स्वतन्त्रता पराकाष्ठा है
आदर्शों की ।
मेरुदंड है जीवन की
जीवन रेखा है
भारतीय जनमानस की
नमन !शत -शत नमन !
अक्षुण रहे युगों तक ....
उदय वीर सिंह
शुक्रवार, 25 नवंबर 2016
सिर्फ पैसा चल रहा है ...
कल ऐसा न हो जैसा कल रहा है ....
थम गई है रफ्तार ए जिंदगी
सिर्फ अब पैसा चल रहा है -
किसी का सूरज निकल रहा
किसी का सूरज ढल रहा है -
कोई पेन्सन कोई दिहाड़ी तो
कोई लूट की रकम बदल रहा है -
कोई देश की चिंता में विकल
कोई छाती पर मूंग दल रहा है -
सरगोशियाँ हैं बदल जाएगी सूरत
अपने पैरों पर देश संभल रहा है -
दम निकल जाए कि कुएं के पास
कल ऐसा न हो जैसा कल रहा है -
किसी का सूरज निकल रहा
किसी का सूरज ढल रहा है -
कोई पेन्सन कोई दिहाड़ी तो
कोई लूट की रकम बदल रहा है -
कोई देश की चिंता में विकल
कोई छाती पर मूंग दल रहा है -
सरगोशियाँ हैं बदल जाएगी सूरत
अपने पैरों पर देश संभल रहा है -
दम निकल जाए कि कुएं के पास
कल ऐसा न हो जैसा कल रहा है -
उदय वीर सिंह
गुरुवार, 24 नवंबर 2016
अछूत .... नोट
वह बृद्धा पेन्सन के
पाई थी बैंक से पाँच सौ के तीन नोट
गई थी पंसारी की दुकान
लेने नमक आटा आदि
समान रख पोटली में
बढ़ाया दाम में
एक पाँच सौ का नोट
उछल गया दुकानदार देख
मानो किसी विषधर को देख लिया
छिन लिया हाथों से
समान की पोटली
दूर हट माई
ये नोट लेकर क्यों आई ?
जा काही और
कहीं और ये लेकर अछूत शापित नोट !
मैं ही मिला हूँ था तुझे ठगने को .,...।
उदास, हतास ,
लिए आँखों में नीर ... खाली पोटली का कपड़ा ।
किसी ने कहा ये रंगीन कागज अब
बैंक में कर दो जमा
ये अछूत हो गए हैं .....
थक हार जमा कर दिये माई ने
अछूत हुए नोटों को बैंक में
अब ,
दो दिन सुबह शाम की बाद हाजिरी के
भी मयस्सर नहीं है मुद्रा
पेन्सन के हुये धन काले हैं
नमक ,रोटी
के लाले हैं ..... ।
उदय वीर सिंह
पाई थी बैंक से पाँच सौ के तीन नोट
गई थी पंसारी की दुकान
लेने नमक आटा आदि
समान रख पोटली में
बढ़ाया दाम में
एक पाँच सौ का नोट
उछल गया दुकानदार देख
मानो किसी विषधर को देख लिया
छिन लिया हाथों से
समान की पोटली
दूर हट माई
ये नोट लेकर क्यों आई ?
जा काही और
कहीं और ये लेकर अछूत शापित नोट !
मैं ही मिला हूँ था तुझे ठगने को .,...।
उदास, हतास ,
लिए आँखों में नीर ... खाली पोटली का कपड़ा ।
किसी ने कहा ये रंगीन कागज अब
बैंक में कर दो जमा
ये अछूत हो गए हैं .....
थक हार जमा कर दिये माई ने
अछूत हुए नोटों को बैंक में
अब ,
दो दिन सुबह शाम की बाद हाजिरी के
भी मयस्सर नहीं है मुद्रा
पेन्सन के हुये धन काले हैं
नमक ,रोटी
के लाले हैं ..... ।
उदय वीर सिंह
बुधवार, 23 नवंबर 2016
सफर आशिक़ी के ......
सवालों की रातें हैं ,जवाबों के दिन हैं
सफर आशिक़ी के कितने कठिन है -
कहता है चाँद भी ये आसमा हमारा है
सितारों के गाँव भी तुम्हारे नहीं हैं -
आंसुओं की सेज पर फूल लगते कांटे हैं
निगाहें जमाने की कितनी मलिन हैं -
गलियाँ चौबारे घर हँसती हैं वादियाँ
हुआ बावला है कोई आया दुर्दिन है -
सफर आशिक़ी के कितने कठिन है -
कहता है चाँद भी ये आसमा हमारा है
सितारों के गाँव भी तुम्हारे नहीं हैं -
आंसुओं की सेज पर फूल लगते कांटे हैं
निगाहें जमाने की कितनी मलिन हैं -
गलियाँ चौबारे घर हँसती हैं वादियाँ
हुआ बावला है कोई आया दुर्दिन है -
रविवार, 20 नवंबर 2016
हमने किए सवाल तो
हमने किए सवाल तो
सिरफिरे हो गए -
मैं अब भी कोयला हूँ
वो हीरे हो गए -
जिसने किए हलाल वो
तेरे हो गए -
किश्ती मेरी छिन कर
वो तीरे हो गए -
हम उनकी महफिलों के ढ़ोल
मंजीरे हो गए -
उदय वीर सिंह
सिरफिरे हो गए -
मैं अब भी कोयला हूँ
वो हीरे हो गए -
जिसने किए हलाल वो
तेरे हो गए -
किश्ती मेरी छिन कर
वो तीरे हो गए -
हम उनकी महफिलों के ढ़ोल
मंजीरे हो गए -
उदय वीर सिंह
शुक्रवार, 18 नवंबर 2016
राष्ट्र वादी खून
डॉ चाक चौबन्द सिंह अपने नर्सिंग होम " सेवा सदन ,आनंद नगर " में बैठे देश में हो रही खून की कमीं पर चिंतातुर मुद्रा में खिड़की से बाहर देखते जा रहे थे । बीमारों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है ,पैंसठ फीसद लोग खून की कमीं के शिकार हैं रक्त- दान करने वालों की संख्या बहुत कम है । कोई सकारात्मक ठोस पहल होनी चाहिए ,वरना देश की सेहत को ठीक रखाना मुश्किल हो जाएगा । शाम का समय वे अपनी व्यस्ततम दिनचर्या से थोड़ा समय आराम के लिए निकाल एकांत प चाय की प्रतीक्षा में थे पर मानवीय संवेदना थी की समस्याओं को विचारों के साथ सँजोये हुये थी । तभी श्री चंपतराम हीराचंद मलकानी अपनी ऊँची आवाज में बड़बड़ाते डॉ चाक चौबन्द सिंह के कमरे में बेधड़क प्रवेश कर गए । और अपने गुस्से का इजहार करने लगे ।
डॉ साहब ! मैं तुम्हें छोडुगा नहीं ,कोर्ट तक घसीटुंगा तुमने डाक्टरी पेशे का मज़ाक उड़ाया है । तुम्हें कौन डाक्टर बनाया है ? मैं मुकदमा करुगा ,नुकसान की भरपाई के लिए हरजाना वसूल करूंगा ,क्या समझे ? तुमने मुझे ऐरा-गेरा समझ लिया है ,मैंने तुम्हें ऊँची फीस दी है और तूने मेरे बच्चे के जीवन के साथ खिलवाड़ किया है मेरे परिवार मेरी उन्नति मेरे विकास पर कुठारा घात किया है मैं लूट गया जी ,हे राम !श्री चंपतराम हीराचंद मलकानी को क्रोध से उतर कर अब गमगीन रुआंसे हो निढाल से हो गए थे ।
डॉ साहब ने उन्हे सामने बैठने का इशारा किया ।
श्री मलकानी जी अपनी नाम आंखे पोछते हुये सामने बैठ गए ।
क्या हुआ है आपके बच्चे के साथ मलकानी जी ! मुझे विस्तार से बताइये । डॉ चौबन्द सिंह ने प्यार जताते
पूछा ।
थोड़ी देर बाद संयत हो सम्हल कर बोले ।
डॉ साहब मेरा बेटा अब अनाप सनाप बोल रहा है । मैं क्या करूँ आपके इलाज के बाद जब से घर गया है उसकी आदत व्यवहार खान- पान रहन सहन सब बदल गया है ।अब लगता ही नहीं की मेरे घर- परिवार का सदस्य है
कैसा व्यवहार कर रहा है कैसी तबदीली हो गई है ?और अगर बदलाव आया है तो अच्छी बात है ।
अरे डाक्टर खाक अच्छी बात है ? असहज हो फिर ऊँची आवाज में मलकानी जी उखड़ पड़े ।
हमारा परिवार लक्ष्मी चरणो का दास है हम दिन- रात उसकी महिमा का गान करते हैं ।रूखा -सूखा नमक -रोटी खा कर सात्विक जीवन जी लेते हैं । जेवर, जमीन ,जायदाद व्याज पर रकम देकर जरूरत मंदों कीजहां तक हो सके पुरजोर मदद करते हैं । यही हमारा कर्म धर्म है ।
और हमारा बेटा जय हिन्द ! जय हिन्द ! जय भारत माता ! जय भारत माता बोल रहा है ।न जाने ये कौन देवता कौन देवी है ! न जाने उसे क्या हो गया है । मलाई रबड़ी घी के बगैर खाता नहीं ,हम इतना व्यंजन तीज त्योहारों में भी नहीं खाते और मुआ ये ...... सब आपकी इलाज का असर है । बचाओ मुझे ! वरना डॉ साहब मैं कानूनी कार्यवाही के लिए मजबूर हो जाऊंगा .... कुछ करो ... मलकानी जी बोले ।
हॅलो डॉ महिमा ! जरा मेरे पास श्री रुपचन्द चपतराम मलकानी की फाइल लेकर आइये । डॉ चाक चौबन्द सिंह ने इंटरकाम पर बोला ।
थोड़ी देर में डॉ महिमा श्री चंपतराम जी के पुत्र की फाइल के साथ डॉ चौबन्द के पास हाजिर हुईं ।
केश हिस्ट्री को पढ़ने के बाद डॉ चाक चौबंद बड़ी गंभीर मुद्रा में बोले ।
भाई चंपतराम जी आप के पुत्र की जान बचाने के लिए जो खून उपलव्ध था उसको चढ़ाया गया महत्वपूर्ण था उसकी जान बचना, इस लिए ये गलती हो गई है । गंभीर बात ये है की वह खून एक राष्ट्र भक्त का था । अगर आप कहें तो उसका खून निचोड़ लिया जाय और किसी अन्य का जिसे आप कहे खून चढ़ा दिया जाय । डॉ चौबन्द सिंह बोले ।
क्या किसी और का खून नहीं मिला आपको, वही मिला ? डॉ फौरन हमारा खून चढ़ाओ वह हमारा बेटा है ,उसे हमारी आदतों में ढलना होगा .... आगे हम कुछ नहीं सुनना चाहते । वरना कानूनी कार्यवाही करूंगा ही करूंगा ...... श्री चंपतराम हीराचंद मलकानी का अटल निर्णय था ।
उदय वीर सिंह
डॉ साहब ! मैं तुम्हें छोडुगा नहीं ,कोर्ट तक घसीटुंगा तुमने डाक्टरी पेशे का मज़ाक उड़ाया है । तुम्हें कौन डाक्टर बनाया है ? मैं मुकदमा करुगा ,नुकसान की भरपाई के लिए हरजाना वसूल करूंगा ,क्या समझे ? तुमने मुझे ऐरा-गेरा समझ लिया है ,मैंने तुम्हें ऊँची फीस दी है और तूने मेरे बच्चे के जीवन के साथ खिलवाड़ किया है मेरे परिवार मेरी उन्नति मेरे विकास पर कुठारा घात किया है मैं लूट गया जी ,हे राम !श्री चंपतराम हीराचंद मलकानी को क्रोध से उतर कर अब गमगीन रुआंसे हो निढाल से हो गए थे ।
डॉ साहब ने उन्हे सामने बैठने का इशारा किया ।
श्री मलकानी जी अपनी नाम आंखे पोछते हुये सामने बैठ गए ।
क्या हुआ है आपके बच्चे के साथ मलकानी जी ! मुझे विस्तार से बताइये । डॉ चौबन्द सिंह ने प्यार जताते
पूछा ।
थोड़ी देर बाद संयत हो सम्हल कर बोले ।
डॉ साहब मेरा बेटा अब अनाप सनाप बोल रहा है । मैं क्या करूँ आपके इलाज के बाद जब से घर गया है उसकी आदत व्यवहार खान- पान रहन सहन सब बदल गया है ।अब लगता ही नहीं की मेरे घर- परिवार का सदस्य है
कैसा व्यवहार कर रहा है कैसी तबदीली हो गई है ?और अगर बदलाव आया है तो अच्छी बात है ।
अरे डाक्टर खाक अच्छी बात है ? असहज हो फिर ऊँची आवाज में मलकानी जी उखड़ पड़े ।
हमारा परिवार लक्ष्मी चरणो का दास है हम दिन- रात उसकी महिमा का गान करते हैं ।रूखा -सूखा नमक -रोटी खा कर सात्विक जीवन जी लेते हैं । जेवर, जमीन ,जायदाद व्याज पर रकम देकर जरूरत मंदों कीजहां तक हो सके पुरजोर मदद करते हैं । यही हमारा कर्म धर्म है ।
और हमारा बेटा जय हिन्द ! जय हिन्द ! जय भारत माता ! जय भारत माता बोल रहा है ।न जाने ये कौन देवता कौन देवी है ! न जाने उसे क्या हो गया है । मलाई रबड़ी घी के बगैर खाता नहीं ,हम इतना व्यंजन तीज त्योहारों में भी नहीं खाते और मुआ ये ...... सब आपकी इलाज का असर है । बचाओ मुझे ! वरना डॉ साहब मैं कानूनी कार्यवाही के लिए मजबूर हो जाऊंगा .... कुछ करो ... मलकानी जी बोले ।
हॅलो डॉ महिमा ! जरा मेरे पास श्री रुपचन्द चपतराम मलकानी की फाइल लेकर आइये । डॉ चाक चौबन्द सिंह ने इंटरकाम पर बोला ।
थोड़ी देर में डॉ महिमा श्री चंपतराम जी के पुत्र की फाइल के साथ डॉ चौबन्द के पास हाजिर हुईं ।
केश हिस्ट्री को पढ़ने के बाद डॉ चाक चौबंद बड़ी गंभीर मुद्रा में बोले ।
भाई चंपतराम जी आप के पुत्र की जान बचाने के लिए जो खून उपलव्ध था उसको चढ़ाया गया महत्वपूर्ण था उसकी जान बचना, इस लिए ये गलती हो गई है । गंभीर बात ये है की वह खून एक राष्ट्र भक्त का था । अगर आप कहें तो उसका खून निचोड़ लिया जाय और किसी अन्य का जिसे आप कहे खून चढ़ा दिया जाय । डॉ चौबन्द सिंह बोले ।
क्या किसी और का खून नहीं मिला आपको, वही मिला ? डॉ फौरन हमारा खून चढ़ाओ वह हमारा बेटा है ,उसे हमारी आदतों में ढलना होगा .... आगे हम कुछ नहीं सुनना चाहते । वरना कानूनी कार्यवाही करूंगा ही करूंगा ...... श्री चंपतराम हीराचंद मलकानी का अटल निर्णय था ।
उदय वीर सिंह
मंगलवार, 15 नवंबर 2016
बाल दिवस [चार सहबजादे]

बाल दिवस अर्थतः संस्कृति- संस्कार के वाहकों,वारिसों का दिवस जिनमें संचित है देश ,समाज का सुनहरा भविष्य आवश्यकता है उन्हें भेद- भाव मुक्त ,पीत, न्याय युक्त, पारदर्शी स्नेहिल प्रेम से सराबोर वातवरण देने की ,उनके अप्रतिम अद्वितीय अतीत को नवल परिवेश परिदृश्य में मंडित करने की । ईमानदारी से उनके गौरवमयी शौर्य व आदर्श गाथा को आद्यतन नवल कोपलों में अंतरित करने की । यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी उन अमर प्रतापी वीर शहीद बालकों को ।
उदय वीर सिंह ।
सोमवार, 14 नवंबर 2016
नानक नाम चढ़दी कला.....

गुरु पावन पग की राह चला
ईश्वर का नेह मिला जग को -
अंधेर विकार अनीति भरी थी
रब ज्ञान प्रकाश मिला जग को -
मजहब जाति उंच नीच तज
विश्वास का संग मिला जग को -
मिटी धुन्ध जग चानड़ होया
गुरु नानक रूप मिला जग को -
उदय वीर सिंह
रविवार, 13 नवंबर 2016
शनिवार, 12 नवंबर 2016
तैयार फसल ओले पड़ गए -
काले धन की फसल का किसान
कितना आवाक ! कितना हैरान !
तैयार फसल ओले पड़े -
***
द्रोह की मिट्टी, विष बेल का बिरवा
रक्त से सिंचन, हथियारों का हल
विध्वंस का नियोजन फीके पड़े -
उदय वीर सिंह
कितना आवाक ! कितना हैरान !
तैयार फसल ओले पड़े -
***
द्रोह की मिट्टी, विष बेल का बिरवा
रक्त से सिंचन, हथियारों का हल
विध्वंस का नियोजन फीके पड़े -
उदय वीर सिंह
शुक्रवार, 11 नवंबर 2016
काला मन -काला धन
काले मन का कितना काला धन-
ढ़ो रहे सिर पर सूरज उजाले का
सजा स्वेत पुष्पों का धवल उपवन
हो अनाथ करता नाथ से विनती
मेरी छाया भी कर दो कंचन -
महा श्वेत वसन उच्च व्याख्यान
च्युत न्याय नैतिक आदर्श चिंतन
सौम्य शांत श्रद्धा विश्वास के आवरण
ओढ़ छल करता समाज से कलुष मन -
उदय वीर सिंह
ढ़ो रहे सिर पर सूरज उजाले का
सजा स्वेत पुष्पों का धवल उपवन
हो अनाथ करता नाथ से विनती
मेरी छाया भी कर दो कंचन -
महा श्वेत वसन उच्च व्याख्यान
च्युत न्याय नैतिक आदर्श चिंतन
सौम्य शांत श्रद्धा विश्वास के आवरण
ओढ़ छल करता समाज से कलुष मन -
उदय वीर सिंह
गुरुवार, 10 नवंबर 2016
काला धन निकले

काला धन निकले -
चलाओ खंजर जर्राही में
खून निकले चाहे जिगर निकले -
राष्ट्र के निर्माण में वीर
हर शख्स नजर बदले -
सफलताओं संग विफलताए भी मिलती हैं
निराश हताश क्यों होना
संगमरमरी दरो दीवारों से ,
श्रद्धा आस्था ,कांतिवन, शांतिवन
सेवक ,वजीर मसीहा मीरों ,पीरों से
रेशमी ही नहीं खादी, गेरुए ,पैरहनों से
बेखौफ निकले
निकले तो हर हाल में
काला -धन निकले -
चलाओ खंजर जर्राही में
खून निकले चाहे जिगर निकले -
राष्ट्र के निर्माण में वीर
हर शख्स नजर बदले -
सफलताओं संग विफलताए भी मिलती हैं
निराश हताश क्यों होना
संगमरमरी दरो दीवारों से ,
श्रद्धा आस्था ,कांतिवन, शांतिवन
सेवक ,वजीर मसीहा मीरों ,पीरों से
रेशमी ही नहीं खादी, गेरुए ,पैरहनों से
बेखौफ निकले
निकले तो हर हाल में
काला -धन निकले -
उदय वीर सिंह
मंगलवार, 8 नवंबर 2016
सोमवार, 7 नवंबर 2016
छोड़ आए हैं संस्कृति संस्कारों को .....
घरों में आज भी देखो ताले लगाने होते हैं
नजरबट्टू मुंडेरों पर शैतान बिठाने होते हैं -
दर पे जरूरतमंद कोई, इंसान न आए
खबरदार कुत्तों से फरमान लिखाने होते हैं -
मसर्रत देने वाले भी कैद तालों में होते हैं
देव, देवालय दोनों पर पहरे लगाने होते हैं -
कहीं हम छोड़ आए हैं संस्कृति संस्कारों को
पहले राष्ट्र होता था अब धर्म बताने होते हैं -
उदय वीर सिंह
नजरबट्टू मुंडेरों पर शैतान बिठाने होते हैं -
दर पे जरूरतमंद कोई, इंसान न आए
खबरदार कुत्तों से फरमान लिखाने होते हैं -
मसर्रत देने वाले भी कैद तालों में होते हैं
देव, देवालय दोनों पर पहरे लगाने होते हैं -
कहीं हम छोड़ आए हैं संस्कृति संस्कारों को
पहले राष्ट्र होता था अब धर्म बताने होते हैं -
उदय वीर सिंह
रविवार, 6 नवंबर 2016
शनिवार, 5 नवंबर 2016
रिश्ते बदल गए -
दामन में मिले अंगारे
हर ख्वाब जल गए
हर चेहरे हुये बेगाने
रिश्ते बदल गए -
कहीं सुननी पड़े न आरजू
पीछे से निकल गये -
अभी रात बहुत थी बाकी
तारे चाँद ढल गए -
उदय वीर सिंह
हर ख्वाब जल गए
हर चेहरे हुये बेगाने
रिश्ते बदल गए -
कहीं सुननी पड़े न आरजू
पीछे से निकल गये -
हाथों के रहे गुलाब कल
पैरों से मसल गए - अभी रात बहुत थी बाकी
तारे चाँद ढल गए -
उदय वीर सिंह
शुक्रवार, 4 नवंबर 2016
सदस्यता लें
संदेश (Atom)