शनिवार, 27 अक्तूबर 2018

कफ़न नोच रहे हो ..

अपने विवादों में भूल गए कि
कफ़न नोच रहे हो -
लाज सिसकती हासिए पर
आवंटन की सोच रहे हो -
दीवार खड़ा करके आँगन में 
अपना ही रास्ता रोक रहे हो -
घर जला किसी का चैन से
अपनी रोटी सेंक रहे हो -
पहन कर सफ़ेद कपडे सामने
कीचड़ फेक रहे हो -
जल रही बस्ती में तेरा भी घर है
तुम तमाशा देख रहे हो -
उदय वीर सिंह

रविवार, 21 अक्तूबर 2018

मत मारो मन के राम...


मत मारो मन के राम को ,
रावण जिन्दा हो जाता है ,
पंछी दरख़्त तो नहीं होते
बृक्ष ,परिंदा हो जाता है -

आश टूटती है प्रेम की
अपने ही पराये होते जाते
घोर तमस में आँगन होता
मानस दरिंदा हो जाता है -

पाठशाला,क्रंदन शाला होती
नैतिकता विलुप्त हो जाती है
रोती दया करुणा किसी गह्वर
क्षमा प्रेम शर्मिंदा हो जाता है -

हाथ आशीष के ज्वाल बरसते
विश्वास आश दुर्लभ होते
घात प्रतिघात की प्रत्यासा में
गौरव गन्दा हो जाता है -

अनाचार कदाचार ,प्रश्रय पाते
व्रत संकल्प कुमार्ग में ढल जाते
ममता के हाथ पड़ते छाले
औषधि ,सौदा, मंदा हो जाता है -

उदय वीर सिंह






गुरुवार, 18 अक्तूबर 2018

अभी फैसलों की एक लम्बी सतर है ...


नहीं चाहते हम कलम तोड़ देना
अभी फैसलों की एक लम्बी सतर है -
अभी पाँव में न लगेगी महावर
काँटों भरी एक लम्बी डगर है -
अभी शस्त्र तरकस में वापस होंगे
अभी पापियों की देख लम्बी उमर है -
आँखों को आंसू से तर करेंगे
काफिला हौसलों का अभी मुन्तजिर है -
आशियानों के पत्थर तराशो उदय
तूफानों के आने की आई खबर है -
उदय वीर सिंह



रविवार, 14 अक्तूबर 2018

गाए हमने गीत बहुत ....


गाए हमने गीत बहुत
प्रेम कभी वेदन के
सुनने वाले भूल गए
राग सभी संवेदन के -
राह वही राही बदले
साख वही साथी बदले
धरती वही गगन भी वही
घन बदले पंछी बदले -
उत्सव की रंग हवेली में
बदले नाम आमंत्रण के -
सन्दर्भ वही संवाद वही
सुर बदले स्वर बदले
पीड़ा के वाचनहारों के
भाषा बदली अक्षर बदले -
मंदिर भी वही मूर्ति भी वही
बदले पात्र आवेदन के -
उदय वीर सिंह






शनिवार, 13 अक्तूबर 2018

एक आम आदमी का ....


एक आम आदमी -
का दर्द परिहास का किस्सा बन जाता है
प्रेम राजनीति का हिस्सा बन जाता है
कोई लगा कर आग उसके घर में कातिल
हमदर्द ही नहीं फ़रिश्ता बन जाता है -

रोटी भावनाओं की आग पर सेंकी जाती है
भूख का दाना योजनाओं में पीसा जाता है
स्वच्छ पानी को तरसता रहा जीवन भर
रुखसती के समय गंगा जल दिया जाता है -

मकान का सपना संजोए सोता है खुले नभ
सपनों के गुल बोते बोते गुलिश्ता बन जाता है
कितना सुरक्षित है आम आदमी कि पकड़ो
निचोड़ो जब चाहो खून कितना सस्ता हो जाता है -

उदय वीर सिंह