सोमवार, 25 फ़रवरी 2019

या लिखूं झाँसी रानी को ....



झरती वतन की पीर लिखूं या
गमलों की बागवानी को ,
रानी केतकी के गीत लिखूं या
लिखूं झाँसी रानी को -
आँखों में सत्ता की चाहत
हर कदम मात और शह का है
सेवा को शमशान सुलाते
उद्देश्य लाभ निवेश का है -
जो गए लौट आने को
उनकी लिखूं अमर कहानी को -
जो दूरबीनों से देख रहे
जाते वतन के रखवालों को
बैठे वातानुकूलित महलों में
मुस्काते छद्म गद्दारों को -
देते सहानुभूति की मैली चादर
या लिखूं देसी चुनर धानी को -
उदय वीर सिंह




रविवार, 24 फ़रवरी 2019

आंच तिनके की ढल गए -


क्या होना था तुमको क्या होकर के रह गए
पथ कर्त्तव्य के जाना था भावनाओं में बह गए
घावों को मर्यादा देते,वेदन सहते रहने की
धर्म आँखों का बता रहे आंसू बहते रहने की -
देकर दीक्षा लौह बनो,आंच तिनके की ढल गए -
सुख की पीर और दुःख की पीर का अंतर गढ़ते
मौन प्रलाप की कुंजी है कैसी हास परिभाषा कहते
ह्रदय मर्म को सुनना था परिहास बताकर निकल गए -
उदय वीर सिंह



शनिवार, 16 फ़रवरी 2019

दिल में वतन रखना -


अमर सपूतों को अश्रुपूरित पीर भरी विनम्र श्रद्धांजलि ...
देखे हैं अपनी आँखों में तेरे ख्वाब
मैं अपना ख्वाब नहीं मांगूंगा
तेरी होली तेरी दिवाली में देखी है
अपनी होली दीवाली और बैसाखी
अपने दर्दों का हिसाब नहीं मांगूंगा-
कुछ अधूरी छोड़ आया था माँ बापू
वोटी,नन्हीं परी की दरख्वास्त ,
मेरे पीछे मेरेअपनों के झरते नीर
वेदनाओं का जवाब नहीं मांगूंगा -
तुम खुश रहना मेरे वतन वालों !
एक अरदास मेरी है - 'वतन दिल में रखना '
तुमसे तख्तो -ताज नहीं मांगूंगा -
उदय वीर सिंह



शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2019

गमले के फूल [आहुति ]


गमले के फूल [आहुति ]
{ यह कथा अमर सपूतों सैन्यवलों को समर्पित है ]
***
बेटा - माँ शहीदों के पार्थिव शरीर हमारी इस सड़क से थोड़ी देर बाद गुजरेंगे ,कुछ घरेलु काम करती हुई माँ से उसके बड़े होते पुत्र ने कुतूहल वस् बताया
माँ - तो क्या हुआ सड़क है गुजरेंगे ही ...
बेटा - माँ क्या मैं भी अपने गमलों से कुछ फूल तोड़ कर उनको चढ़ा सकता हूँ ?
माँ - गमलों से क्यों बाजार से माँगा ले अगर शौक है तो ..
बेटा - अपने गमलों से क्यों नहीं माँ ?
माँ - ये भगवान जी को अर्पित किये जाते हैं
बेटा - शहीदों को क्यूँ नहीं ?
माँ - क्या शहीद -शहीद लगा रखा है .. शहीद आते जाते रहते हैं .भगवान नहीं बंद करो अपनी बक...बक ! आक्न्हे तरेरते हुए कहा
बेटा - अगर मैं शहीद हो जाऊँ तो भी नहीं चढायेंगी इन फूलों को ?
माँ -तूं ! तूं ! क्यों शहीद होने लगा भला ? क्या इसी दिन के लिए तुझे ऊँची से ऊँची शिक्षा का ख्वाब देख रखा है । इतनी महँगी शिक्षा का खर्च ....इतना बोझ .सारा सुखा भूल ,दर्द हम उठाते हैं ,क्या इसी लिए ?... फिर ये शब्द नहीं सुनना पसंद मुझे ..!
बेटा- माँ मुझे ये शब्द और शहीदी पसंद है
माँ - या तो तुम कायर हो या अक्षम जिसे अनुशासन और बड़ों का मान करना नहीं पता , अफसोस है कि मैं तुम्हारे जैसे बेटे की माँ हूँ
शर्म आती है मुझे तुमको अपना ...
बेटा - माफ़ी चाहता हूँ माँ ! आपका बेटा होना मेरे बस में नहीं था,पर शहीद होना मेरे बस में है ... मैं आपके कलुषित विचारों के कलंक को अवसरवादी होकर नहीं धो सकता,पर एक शहीद होकर जरुर धो सकूँगा ..आप सरदार शहीद भगत सिंह की माँ भले बन पायीं मैं सरदार शहीद भगत सिंह की माँ का बेटा जरुर बनूँगा
आज अभी खंडित करता हूँ समस्त वंधों को जिनका मुझे निर्वहन नहीं करना
माँ - ये क्या बचपना है ?
बेटा - अंतिम अकाट्य अटल निर्णय !... आपको आपके गमले के फूल
मुबारक ! मुझे शहीद अब किसी जन्म में आप से मेरी मुलाकात हो ...रब से अरदास करूँगा
उदय वीर सिंह





बुधवार, 13 फ़रवरी 2019

कैसे तरुवर बदल गया


छोड़ गए पत्ते सूखे तो
कैसे तरुवर बदल गया
टूट गया शीशा मनमोहक
कैसे कह दूँ पत्थर बदल गया -

शिलाखंड कुछ खिसक गए
तो कैसे गिरिवर बदल गया ,
तट कुछ विष बूंदों ने आकार लिया ,
कैसे कह दूँ निर्झर बदल गया -

प्रेम के तीरथ प्रेम प्रवासी
अंचन मंचन नित्य नहाते
प्रेम की गाथा भाषा बेबस
कह दूँ कैसे अक्षर बदल गया -

अम्बर कितना गहरा है या ऊँचा
बादल क्या बतलायेंगे
किंचित रश्मि रथि पथ विचंलन से
कैसे दिनकर बदल गया -
उदय वीर सिंह




रविवार, 10 फ़रवरी 2019

बोलो अपना देश बसंत


बसंत पंचमी की प्रीतमय बधाई मित्रों !
कहाँ तुम्हारा घर बसंत
बोलो अपना देश बसंत
होकर मौन जगा देते हो
जग जाता है जड़ चेतन
हम भूले तुम भूल पाते ,बसंत ह्रदय से अभिनन्दन -
बिना भेद के स्पर्श तुम्हारा
कंटक और अमराई को
प्राण प्रतिष्ठा कर देते हो
सोये सुर शहनाई को -
माटी मद-रस भींग रही ,भींग रहे कासा कंचन -
जीवन राग षट-राग अनेकों
एक राग चले मधु-राग सुघर
कोमल किसलय कचनार कली
सृष्टि पुलके पा धानी चुनर -
तन झंकृत मन हर्षित है ,गात यौवन मन संवेदन -
आँचल पीत पुष्प अलबेले
सब पथ सुगंध समीर बही
अनंग के संग सानंद रति
रस प्रीत सनेह के घोल रही -
रंगमहल छाजन में ,कथा बसंत की वन कानन -
उदय वीर सिंह






शनिवार, 9 फ़रवरी 2019

सीढियाँ देखीं हैं तो शिखर भी देखिये -

आपने साख़ देखी है,शज़र भी देखिये 
सीढ़ियां देखीं हैं तो शिखर भी देखिये-
जो गए हैं जलते शहर के दरमियाँ 
हिजाब से ही सही मंजर भी देखिये -
जिन हाथों में देखा है लाल गुलाब 
उन हाथों के आप खंजर भी देखिये -
पनाही के अजायबघर का हाल सुना है 
हाथों में लिए खंजर जिगर भी देखिये -
उकेरा है रंग ह्रदय की गहराईयों में डूब 
उस मुसव्विर की नजर भी देखीये -
उदय वीर सिंह