शनिवार, 29 फ़रवरी 2020

घायल इंसान सडकों पर .....


हमने देखा वही जो दिखाया गया
पीछे परदे के क्या क्या छिपाया गया -
मंदिर भी था ,और मस्जिद भी थी ,
घायल इंसान सडकों पर पाया गया -
हिन्दसागर भी था व् हिमालय भी था
जोत खसरे में महलों के पाया गया -
वेदना,प्रीत के वर्क खाली मिले
पैरहन किसका महंगा बताया गया -
भूख थी प्यास थी बिलबिलाते रहे
कहीं उत्सव में अरबों लुटाया गया -
उदय वीर सिंह



बुधवार, 26 फ़रवरी 2020

कण कण वतन का तीरथ ...


वतन के खेत सुन्दर हैं ,वतन के गाँव सुन्दर हैं ,
वतन की राह सुन्दर है वतन के पाँव सुन्दर हैं -
वतन की रीत सुन्दर है,वतन की प्रीत सुन्दर है
कण कण वतन का तीरथ उसके धाम सुन्दर हैं-
वतन की साख़ सुन्दर है,वतन के फूल सुन्दर हैं
वतन के बृक्ष सुन्दर हैं ,वतन की छाँव सुन्दर है-
हिन्दू मोमिन सिक्ख इसाई पहचान सुन्दर है
कायम गंगा जमुनी धारा में हिंद्स्तान सुन्दर है -
उदय वीर सिंह


रविवार, 23 फ़रवरी 2020

देख आया हूँ ...


उंजालों से लिपटा अंधकार देख आया हूँ
डूबती नाव की टूटती पतवार देख आया हूँ
कैसे जिंदगी एक जिंदगी को निगल जाती है
मजबूरीयों से भरा बाजार देख आया हूँ
किताबों मे पढ़ा था देवों की अप्सराओं को
अप्सराओं का रोता हुआ संसार देख आया हूँ --
वेदना से मुक्ति का सन्मार्ग बताने वालों की
षड़यंत्री सहयोग रक्ताई तलवार देख आया हूँ
खुशियाँ छिन लेता है जमाना जहालत देकर
देकर शीतल छांव घातक प्रहार देख आया हूँ -
उदय वीर सिंह

बुधवार, 19 फ़रवरी 2020

जिंदगी को अँधेरा नहीं माँगते -


जो जरूरत पड़े जिंदगी मांग लो
जिंदगी को अँधेरा नहीं माँगते -
मेरे हिस्से का सूरज तुम्हारे लिए ,
हम अपना सवेरा नहीं माँगते -
छाँव की ही दरख्तों से उम्मीद हो
पंछियों का बसेरा नहीं माँगते -
लिख सको तो लिखो खून से ही सही ,
प्रेम का वरक कोरा नहीं माँगते -
उदय वीर सिंह

रविवार, 16 फ़रवरी 2020

शिगाफ़ कायम रहे ...


डूबती गयी किश्ती शिगाफ़ कायम रहे,
लाज लुटती रही ,चिराग कायम रहे -
बिकती रही जुबान उसके हर्फो अंदाज
दे लाशों के ऊपर पांव ताज कायम रहे -
भूखा बजाता रहा नगाड़े जश्नों महफ़िल में,
शोषण के राग कायम, साज कायम रहे -
उदय वीर सिंह






शनिवार, 8 फ़रवरी 2020

कागज के उपवन देखे ....


कागज के फूल कागजी नाव
कागज के उपवन देखे-
दम तोड़ते कागज पर ,
जीवन के निति-नियम देखे-
कहने को आतुर अधर बहुत ,
स्वर ,शब्द ढूंढते देखा है ,
घावों पर भाव संवेदन ले
रोते कागज के निर्धन देखे -
कृषक श्रमिक व्यापारी को
कर्ज भूख में मरते देखा
सूना चूल्हा पेट अंगारे
स्वानों को व्यंजन देखे -
उदय वीर सिंह


रविवार, 2 फ़रवरी 2020

सावन सरोवर सूखा ....


सावन सरोवर सूखा ज्येष्ठ
देखना रह गया है ,
फरेब के बाजार में अब श्रेष्ठ
देखना रह गया है -
कुछ बेच दिया है वीर ,
कुछ बेचना रह गया है
आगे बेचने को क्या रह गया,
सोचना रह गया है -
गुदड़ी में ही सही लाल
समेटा था वतन के जानिब,
दाल निकल गयी बजने को
थोथा चना रह गया है -
कमजोर आँखों को दूरबीन भी
दिखाई नहीं देती,
प्रेम को छोड़ ,अब विरह ही
बांचना रह गया है -
जब सूरज ही कहे कि
अंधरों की आदत डालो ,
विस्वास कहता है कि
सूरज का डूबना रह गया है -
उदय वीर सिंह