शनिवार, 25 फ़रवरी 2023

" बंजर होती संस्कृति"


 




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नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेले के आयोजन (25।2।23 से5।3।23) को हमारी हार्दिक बधाई व नेह भरी शुभकामनाएं। इस अनुपम मेले का अपना विशिष्ट अतीत स्थान व गौरव है।

 हमें आत्मिक खुशी है कि इस पुस्तक मेले में, हाल संख्या-2 स्टाल न. 387 पर " हंस प्रकाशन " द्वारा प्रकाशित मेरी पुस्तक * बंजर होती संस्कृति * की भी उपस्थिति होगी।

    आप सबकी आशीष व स्नेह मिलेगा मेरा दृढ़ विस्वास है।

उदय वीर सिंह।

अपना मायिना है...


 






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कोई दक्ष, बाम किसी का दाहिना है।

पांव की रफ़्तगी मंजिल को नापना है

यह बात अलग  है हम  पढ़ नहीं पाए,

हर  तख़लीक़  का अपना  मायिना है।

रखना  मजबूरी नहीं  एक  जरूरत  है,

हर  एक शख़्श का अपना आयिना है।

पत्थर  को कभी फूल नहीं कहा शीशा

यह  जानकर  भी  कि उसको टूटना है।

उदय वीर सिंह।

शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2023

जफ़र किस काम का होगा..

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हम ख़ुशहाल हुए जी, दूसरों को दर्द देकर।

सोए खूब दूसरों को जागने का फर्ज़ देकर।

विपदा  में अवसर तलाशा मोटी कमाई का, 

मालामाल  हुए  मोटे व्याज का कर्ज़ देकर।

खून-पसीने का मोल अदा किया  इस तरह,

हमने वापस किया जी लाइलाज़ मर्ज़ देकर।

फिज़ाओं का बे-सरहद होना बे-अदब माना,

नंगा  किया शज़र को  हमने पत्ते  ज़र्द देकर।

उदय वीर सिंह।

शनिवार, 18 फ़रवरी 2023

खोया खोया मिलता है....

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पाखंड  की   प्रचीर  में सत्य 

कहीं खोया-खोया मिलता  है।

पाखंड रत जगराते में है सत्य 

कहीं  सोया- सोया  मिलता है।

अहंकार  मद  की  पूंजी  का 

गगनचुम्बी होना आश्चर्यजनक

सत्य ,सरलता की भूमि में कांटा 

तमाम  बोया -बोया मिलता है।

टूट गया तर्कों का धागा,साहस 

सीने  में  रोया - रोया मिलता है

हमने अपनी हार को भी जीत

कहना  सीख  लिया   जबसे,

विजय अनुसंधान का परिमल

कहींअनाम  लकोया मिलता है।

उदय वीर सिंह।


फ़रेब की छत गिरी है,....

 🙏🏼नमस्कार सुधि मित्रों!

बुलंदियों पर रही नफ़रत तो प्यार भी मुमकिन।

फ़रेब की छत गिरी है,  तो दीवार भी मुमकिन।

दर्द का बुत  हो  जाना  दहशत की पेशबंदी है, 

कागज  है कलम है , तो अख़बार भी मुमकिन।

रंग कोसने लगे अपनी मुख़्तलिफ़ पैदाइशों पर

सवाल उनकी हाजिरी पर तकरार भी मुमकिन। 

बे-वक्त है माजी के पन्नों का,सरे-आम हो जाना

कागजी कारवां है कागजी सालार भी मुमकिन।

उदय वीर सिंह।

रविवार, 12 फ़रवरी 2023

रखें तो कहां रखें....


 






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तेरी कागज की बागवानी रखें तो कहां रखें।

बे-मतलब की  मेहरबानी  रखें  तो कहां रखें।संवेदी शब्दों की कमीं नहीं बोल कर तो देखो,

मुझे नापसंद है बद्दजुबानी रखें तो कहां रखें।

कुछ जमीरो जमीन की बात होतो गौर भी करें

तेरी बे-सिरपैर की कहानी रखें तो कहां रखें।

जमीं पर फैली आग आसमान भी कितना दूर,

दुश्वार दो दिन की जिंदगानी रखें तो कहां रखें।

उदय वीर सिंह।

रविवार, 5 फ़रवरी 2023

कम पानी क्यों है..






 
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इंसानियत से इतनी  परेशानी क्यों है।

कांटों की चारो तरफ बागवानी क्यों है।

जुल्म तो  आख़िर  जुल्म ही ठहरा जी,

सितमगरों पर इतनी मेहरबानी क्यों है।

अमन  की  किताबों  का हवाला देकर,

अमन  से  ही  इतनी  बेईमानी  क्यों है।

जो आपको अच्छा नहीं दूसरों को कैसे,

प्रीत की दरिया इतना कम पानी क्यों है।

अंगारों  को फूल कहने  का शौक देखा,

मसर्रती जमीं पे दर्द की कहानी क्यों है।

उदय वीर सिंह।

कमाल के धंधे...


 





🙏🏼नमस्कार सुधि मित्रों!

अर्थ के नाम पर  कमाल के धंधे।

धर्म के  नाम  पर कमाल  के बंदे।

एक बहाना चाहिए लूटने के लिए,

सहारा के नाम पर कमाल के कंधे।

देखते हैं सब कुछ परहेज बोलने से,

दीद  के  नाम  पर कमाल के अंधे।

बेख़ौफ घूमते कत्लेआम के मुल्जिम,

डर  के  नाम  पर ये कमाल  के डंडे।

कायम कई दीवार  दिखाई नहीं देतीं,

दहशत के नाम पर कमाल  के फंदे।

उदय वीर सिंह।

5।2।23