बुधवार, 31 जनवरी 2024

गमलों में बरगद...


 








गमलों में बरगद..✍️

घर उजाला तब हुआ जब दीपक जलाया मैंने।

रोशनी तब देखी जब पलकों को उठाया मैंने।

इफरात  थीं खुशियां ख्वाबो नींद के सफ़र में,

मंजिल तब पाया जब कदमों को चलाया मैंने।

खून - पसीने की रोटी कोई कहानी लगती  थी

मोल  तब  जाना जब अपनी रोटी कमाया मैंने।

बरगद  गमलों  में उगा  देख  हंसा था हाकिम

फटी रह गयी आंखें जब बगीचे में लगाया मैंने।

उदय वीर सिंह।

सोमवार, 29 जनवरी 2024

रोड़े बिछते चले गए...


 








रोड़े बिछते चले गए..✍️

घर अपने- अपने कमरों में बंटते चले गए।

वृक्ष सीधे सपाट सरलता से कटते चले गए।

मोहाजीर मजरे भी बेरुखी से अनछुए न रहे,

छोटे,बड़े उम्मत,फिरकों में बिखरते चले गए।

रोटी,कपड़ा घर से बड़ी दीनी तंगदिली हुई,

मानवता के स्वर नीचे पैरों के दबते चले गए।

तर्कों  विज्ञान  की मसखरी सरे बाजार देखी,

पाखंड झूठ अन्याय के तारे उभरते चले गए।

सत्य सुनने समझने में स्व लिप्सा आड़े आयी

समतल क्षितिज  पर रोड़े  बिछते चले गए।

उदय वीर सिंह।

गुरुवार, 25 जनवरी 2024

हमारी जमीन पर ...









हमारी जमीं पर...✍️

हमारे  मुँह  से  अपना पैग़ाम  चाहता है।

हमारी जमीं पर अपना मकान चाहता है।

लिखूं खून या स्याही से अधिकार लिखूंगा,

लश्कर  रहजनों का  गुलाम  चाहता है।

मौसम के  तेवर कुछ  अच्छे नहीं लगते,

जरूरत शीतल पवन की तूफ़ान चाहता है।

बड़ी मुशकिलों से सहेजे थे परों को अपने

अब परिंदों से छीनना आसमान चाहता है

उदय वीर सिंह।

शनिवार, 20 जनवरी 2024

रहजनों के हवाले सफर ..


 








रहजनों के हवाले...✍️

जानवर  से हुए आदमी धीरे- धीरे।

आदमी हो गया जानवर धीरे- धीरे।

ख़बर थी मोहब्बत से दुनियां भरेगी,

नफ़रत  के  बादर  घिरे  धीरे -धीरे।

वसीयत में थी सच्च की बादशाहत,

झूठ की आग में वो जली धीरे-धीरे।

सफ़र की निजामत सदर के हवाले,

रहजनों के हवाले सफ़र धीरे- धीरे।

उदय वीर सिंह।

गुरुवार, 18 जनवरी 2024

तोड़ो वो अनुवंध


 








.तोड़ो वो अनुवंध.......✍️

तोड़ो वोअनुवंध समस्त जो षडयंत्रों से कारित हैं

मदिरालय की अनुशंसा हित साकी के पारित हैं।

प्रारव्ध हमारा शोक नहीं उत्सव के अधिकारी हैं,

पथ वही अवशेष रहें जो मूल्यों पर आधारित हैं।

भाष्य नहीं पथ-पंथों का भोजन गेह वसन ऊपर

शिक्षा की हो पवन मुक्त जो बाड़ों में बाधित हैं।

उदय वीर सिंह।

मंगलवार, 16 जनवरी 2024

काल कैसा होगा..






 

कल कैसा होगा....✍️

टूटी परंपरा टूटते मिथकों का
का कल कैसा होगा।
जब हवा घुली विष तत्वों संग
तत परिमल कैसा होगा।
पाखंड दम्भ छल ईंटों की जो
रंगशाला निर्मित होगी,
पग सांकल मर्यादा संस्कारों के,
फिर उत्सव कैसा होगा।
मृग मरीचिका को मीठा जल
कब तक माना जायेगा,
सागर से लौटी सरिता का वीर
बोलो जल कैसा होगा।
पंचों की आंखों को जब दिखते
अपने और पराए हों,
हरिया और हरनाम  के मसलों
का हल कैसा होगा।
उदय वीर सिंह।

सोमवार, 8 जनवरी 2024

मेरी जबान ले गया..


 





मेरी जबान ले गया.....✍️

झूठ  बोला और सच का इनाम ले गया।

देकर थाली में भात मेरा मकान ले गया।

दिखाकर  मंजर  मेरी बर्बादियों का वीर,

सील  कर  मेरे होंठ मेरी जुबान ले गया।

रहजनों का इतना खौफ़ रस्ता सहम गया,

गुनाह  किसी और का ,मेरा नाम ले गया।

सुन कर कथा फरेब  की मुतमईन हो गए,

मेरे पैरों की जमीन,मेरा आसमान ले गया।

उदय वीर सिंह।

शुक्रवार, 5 जनवरी 2024

मशहूर तो है .....✍️


 






....मशहूर तो है...✍️

फरेब  से लबरेज़ गुरुर तो है।

मैकशी से ईश्क, सुरूर तो है।

पाया विपदा में मौके का हुनर

मजबूरों के बीच मगरूर तो है

खाप मंसूख हुई बाद फैसले के

कसूरवार, एक बे-कसूर तो है।

नहीं  है  पीने  को  साफ  पानी,

पीने  को  शराब  भरपूर तो है।

 ये जमीं जानती है,आसमां भी,

बदनाम है तो क्या मशहूर तो है।

सिर कलम करते हैं बड़ी अदा से

सिजदे  का  खासा दस्तूर तो है।

उदय वीर सिंह।

सोमवार, 1 जनवरी 2024

स्वागतम- 2024





 🌹मंगलमय हो नूतन वर्ष-24..🌹

अमन ,चैन से  जग न खाली  रहे।
हर दामन में उल्फत ख़ुशहाली रहे।
इल्म का नूर आंखों में कायम रहे,
न  सवालों  में  उलझा सवाली रहे।
हसरतों की जमीं को सहारा मिले
सुबह होली संझा को दिवाली रहे।
उदय वीर सिंह।

हे!नूतन वर्ष प्रणाम हमारा..✍️


 



हे!नूतन वर्ष प्रणाम हमारा...🙏

जाने  वाला  जाएगा ही 

आने वाला कहाँ रुकेगा।

काल चक्र का चलता पहिया

सतह  नहीं  कहां टिकेगा।

इसके खांचों  में  ढलना है

प्रदत्त  पथों  पर  चलना है।

अमन , चैन  के गीत लिखेंगे

कहेंगे  अपनी , पीर  सुनेंगे।

मनुष्यता की छांव भली हो

प्रीत  हृदय  में  भरी पड़ी हो।

क्यों कर वैर मनस में रखना

सदाचार की जोत जली हो।

दो कर जोड़ अरदास है रब से

जुड़ा बंधुत्व का तार हो सबसे

भूख ,अबल, निर्धनता  जाए

सकल  नैन  खुशहाली आये।

मानुष की जाति पछानो एकै,

सकल धर्म सम भाव सहजता

रहे  प्रीत  मिट  जाए  कटुता।

राष्ट्र - प्रेम  के गीत अधर  हों,

सुघर सृजन के बिम्ब नगर हों

मर्म संवेदन कीआधारशिला हो।

परहित जीवन सत्यार्थ मिला हो।

एका , प्रेम का पयाम हमारा।

हे ! नूतन  वर्ष  प्रणाम हमारा।

उदय वीर सिंह।