सोमवार, 31 जुलाई 2023

मुंशी प्रेमचंद


 








....🌹शत शत नमन🙏🏻

अभिव्यक्ति का एक कामिल युग..✍️

महज कुछ साल लगते हैं अक्लमंद होने में।

कई सदियां लगती हैं मुंशी प्रेम चंद होने में।

आंसू क्रंदन वेदना भेद षडयंत्रों  की मेखला,

कमर टूट जाती है समाज का फरजंद होने में।

उदय वीर सिंह।

शनिवार, 29 जुलाई 2023

प्रेम-गीत भी लिखूंगा...


 






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प्रेम-गीत भी लिखूंगा जब 

मौसम  अनुकूल  मिलेगा।

पीड़ा व  अवसाद भरे मन

कोई   कैसे  फूल खिलेगा।

आंसू  क्रंदन  खून  के छींटे

रिसते   घावों   के    मंजर,

नीलाम  आबरू के  बाजार

साया भी प्रतिकूल मिलेगा।

सत्य  चुना  जाए दीवारों में

जब हास्य मिले चीत्कारों में

निर्वस्त्र  सुता हो  सड़कों पर

हर  साखों  पर शूल मिलेगा।

लिपटा  झूठ  हर  जर्रा जर्रा

निर्लज्ज  मनस  कामी  बहरा

पाखंड   ऊंचाई   को   आतुर

सच  बेबस  हो  धूल  मिलेगा।

विष  को परिमल  नाम मिला

आडंबर  को   परिधान  मिला,

अहंकार की  शमशीरों  से वीर

क्या जन- पथ निर्मूल  मिलेगा।

माया व  मायावी अंधड़ जाएंगे

दया  प्रेम सत्य  ही  रह  जाएंगे

खल- पवन विषैली  गह्वर होगी,

सत्य    अटल   स्थूल   मिलेगा।

उदय वीर सिंह।

बुधवार, 26 जुलाई 2023

अस्पताल कैसे मिलता








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मांगा मंदिर मस्जिद तो अस्पताल कैसे मिलता।
मांगा होता कल-कारखाने फटेहाल कैसे मिलता
चले  हो  जिस  राह सफर में फैसला तुम्हारा था
धूलो गुब्बार में सम्वेदना का गुलाल कैसे मिलता
जुआ व शराब  के चाहिए थे आलीशान शोरूम,
तो रोटी ,कपड़ा,मकान का ख्याल कैसे मिलता।
काश  किताबों  से थोड़ी  भी मोहब्बत हई होती,
ह्वाट्सएप विश्वविद्यालय से पामाल कैसे मिलता
उदय वीर सिंह।

रविवार, 23 जुलाई 2023

जमाना उसका अवसाद कहता है..







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जब  लाचार अपनी बात करता है।
जमाना उसका अवसाद  कहता है।
रोकता है घावों पर नमक डालने से,
जमाना  उसका  उन्माद   कहता है।
जीना चाहे आबरू व हक  के साथ,
जमानाआस्था पर आघात कहता है।
नहीं चाहे पीना तेजाब को पेशाब को,
जमाना  उसका आतंकवाद कहता है।
बेघर, यतिमी,भूख  गर्दीशी  ही दौलत
जमाना   उसका  अर्थवाद  कहता  है।
उदय वीर सिंह।

शुक्रवार, 21 जुलाई 2023

तुम्हारा पाप तुम्हारी पहचान...


 






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तुम्हारा पाप ही तुम्हारी पहचान बन जायेगा।

दौर वाकिफ़ होगा भले तूअनजान हो जाएगा।

लगे  खून  के  दाग  दामन  पर  बूटे नहीं होंगे,

मजार पर दीये न होंगे भले सुल्तान हो जाएगा।

ये  आंसू  खारे  ही  रहेंगे गंगा जल  नहीं  होंगे,

नफ़रत जुल्म की बद्दुआ में तमाम हो जाएगा।

इंसानियत पहचानती है हर दीवारो दहलीज को

बेवजूद करदेगी चाहे कितना बेईमान हो जाएगा

उदय वीर सिंह।

मंगलवार, 18 जुलाई 2023

गुंजाइश नहीं है...





 


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ले जा अपना अमृत पीने की 

अब  ख्वाहिश  नहीं  है।

ले जा अपने ख़्वाब आंखों में,

अब  गुंजाइश  नहीं  है।

इन काग़जी फूलों का रुतबा

एक  बरसात  बता  देगी,

फूटेंगे  कल्ले  जड़ों  से  बाग,

गमलों की पैदाइश नहीं है।

हमने  दिया  भीख नहीं मांगा 

सिवा अपने दातार के,

सीते हैं जख़्मों को अपने हाथ

हौसला है नुमाईश नहीं है।

उदय वीर सिंह।

सोमवार, 17 जुलाई 2023

ये सच बोलने वाले..


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ये सच बोलने वाले झूठों के सरदार निकले।
ये काग़जी फूल गमलों में सदाबहार निकले।
कांच को हीरा बता ,बाजार की हलचल बने,
जो देखते दाग दूसरों के वो दागदार निकले।
सरपरस्ती रही  साहिबे सनद की गुमनाम थे
एलान हुआ इनाम का हजारों हजार निकले।
लगाकरआग आशियाने में पहले निकल लिए
वफ़ादारी की चादरों में क़ातिल गद्दार निकले।
मिठाईयां बांटीं गईं खुशी में मनाया गया जश्न 
यकीन था जिन पर वो झूठा समाचार निकले।
नींद आ गयी या पंच बा-खबर थे सुनाते वक्त
सजा हुई जिसआधार पर वो निराधार निकले।
उदय वीर सिंह।

रविवार, 16 जुलाई 2023

अमर शहीद भाई तारू सिंह जी


 





🙏🏻कोटि-कोटि प्रणाम अमर शहीद भाई तारू सिंह जी को। जिन्हें आतततायियों द्वारा नवाब जकारिया खान की निजामत में उनकी खोपड़ी उतार कर 1जुलाई 1745 लाहौर में इस्लाम कबूल न करने पर 25 वर्ष की आयु में  निर्ममता पूर्वक शहीद किया गया। 

  उनके शहीदी दिवस पर विनम्र श्रद्धांजलि🙏🏻

उदय वीर सिंह।

गुरुवार, 13 जुलाई 2023

वहशियों के दिन...








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वहशियों के दिन वहशियों की ही शाम होगी।

कब तलक  बेगुनाहों  को  सजा ईनाम होगी।

सिले  हैं होंठ हमनवाजों के कोई वजह होगी,

बोलेंगे एक दिन पत्थरों  की भी जुबान होगी।

ये सैलाबी  मंजर  बेहिसाब यूं  ही  नहीं आया,

कहीं आंसुओं से भरी नदी कोई परेशान होगी।

शिफत है हवाओं की बावस्ता होना हर दर से,

मंदा कौन चंगा पहचान उनकी सरेआम होगी।

उदय वीर सिंह।

रविवार, 9 जुलाई 2023

आजाद मुल्क के गुलाम


 





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संस्कृति संस्कार छिपे हुए थेअब 

बाहर आने लगे हैं।

मनचाहा सावन मनभावन मौसम

के बादल छाने लगे हैं।

शौचालयों की कितनी कमीं हुई

लगती है शहरियों को ,

इंसान,इंसानियत के सिर मल-मूत्र 

बेख़ौफ़ गिराने लगे हैं।

ये इक्कीसवीं सदी का उच्च भारत 

चला आदिम अंधता की ओर,

सुना  है  मुक्ति  के लिए  गुलाम भी

अपना सिर उठाने लगे हैं।

रह गए हैं हम आजाद मुल्क के

गुलाम तमाशबीन होकर,

हम  तरक्कीपसंदों  की लानतों पर 

तालियां बजाने लगे है।

उदय वीर सिंह।

बुधवार, 5 जुलाई 2023

आजाद दहशतगर्दों..








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आजाद दहशतगर्दों  को गुलाम  लिखने दो।अनाम हैं कुछ सूरज चांनआसमान लिखने दो।मिटने न दिए इंसानियत की इबारतों के हर्फ़

उन फ़रिश्तों के नाम हजारों सलाम लिखने दो।

गिरवी  रखे हुए हैं जिनके जमीरो ईमान सारे
अभी कुछ बाकी हैं वीर इम्तिहान लिखने दो।
ताजदार  हो  गए  बिना रीढ़ के कुछ  शीशधर
जिन्होंने  रखे हथेली पे जान महान लिखने दो।
उदय वीर सिंह।