नैन उनके, शहर में खबर बन गये,
बहके पलकों से निकले , वो स्वर बन गये -------
हम तो हंसते रहे दर्द के दरम्यां ,.
इतना पाए की , जख्मों के घर बन गये -----
हसरतें , एक घरौदा बनायगे हम ,
ख्याल बनने से पहले खंडहर बन गये -----
उल्फतों का मुकद्दर , इरामत नहीं ,
ये तो कहता ज़माने का दरवेश भी !
इस डगर इतनी होती क्यों लाचारियाँ ?
खाए ठोकर इतना की पथ्यर बन गये --------
उनके आहट से आहों की सरगोसियाँ ,
मेरी आहें हंसी के सबब बन गये ---------
प्रीत जाओ , इन आँखों में अब ना बसों ,
अब बसेरा नहीं , ये सहर बन गये -------------
अब पथरायी आँखें प्रतीक्षा नहीं ,
सूनी राहों के हम , हमसफ़र बन गये -------
उदय वीर सिंह
22!01!2011
बहके पलकों से निकले , वो स्वर बन गये -------
हम तो हंसते रहे दर्द के दरम्यां ,.
इतना पाए की , जख्मों के घर बन गये -----
हसरतें , एक घरौदा बनायगे हम ,
ख्याल बनने से पहले खंडहर बन गये -----
उल्फतों का मुकद्दर , इरामत नहीं ,
ये तो कहता ज़माने का दरवेश भी !
इस डगर इतनी होती क्यों लाचारियाँ ?
खाए ठोकर इतना की पथ्यर बन गये --------
उनके आहट से आहों की सरगोसियाँ ,
मेरी आहें हंसी के सबब बन गये ---------
प्रीत जाओ , इन आँखों में अब ना बसों ,
अब बसेरा नहीं , ये सहर बन गये -------------
अब पथरायी आँखें प्रतीक्षा नहीं ,
सूनी राहों के हम , हमसफ़र बन गये -------
उदय वीर सिंह
22!01!2011
1 टिप्पणी:
खूबसूरत गज़ल ..
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