[प्रकृति के रहस्यों से अंजान कुछ ज्ञांत हुआ तो इश्वर बनने का दर्प आज मौत के मुहाने पर ले आया है / हम सोच बैठे की परमाणु-शक्ति से शत्रु का संघार करेंगे ,जबकि विकिरण की अदृश्य आग .जो सरहद -बिहीन है फैलेगी ,तो जलाने वाले व जलने वाले दोनों ही खाक हो जांएगे . आओ सोचें क्यों तुले हैं अनमोल कृति के विनाश पर ..... . ]
मुक्त नहीं हो खुदा नहीं हो ,
ज्वालामुखी उगाते क्यों ?
सृष्टि अनमोल मिटाने को ,
एटम - बम बनाते क्यों ?
नादान अभिमान में क्यों भूला,
परमाणु - अग्नि ना चेरी है ,
दबे पांव , अदृश्य मौत ,
देने से पहले तेरी है /
परी सी धरती , क्षितिज रुपहला ,
खाक में इसे मिलाते क्यों ?
फुक्कुसिमा चेर्नोबायिल,
सीने के जख्म नमूना हैं
हर महाद्वीप में धधक रही लौ ,
हर- पल सदमें में सफीना है /
वर्चश्व धर्म का ,मद का ,निज का ,
जीवन को झुठलाते क्यों ?
कुंद चेतना जडवत होती ,
मरुधर बन गया विचार सृजन ,
क्या द्रवित हुआ न देख हृदय ,
नागासाकी , हिरोशिमा का मंचन ?,
हे सृष्टि के अनमोल देव !
शोणित से प्यास बुझाते क्यों ?
पुस्तें उबर नहीं पाई ,
प्रारब्ध ,वैधव्य , विकलांग मिला ,
नदियाँ क्या ,पयोधि भी निष्फल है,
समन-हीन विकिरण का अभिशाप मिला /
न पहचान पराये अपने की,
उस पनाह में जाते क्यों ?
संधि न कोई रोक सके ,
न रोक सके सरहद कोई ,
वाशिंगटन ,दिल्ली ,बीजिंग, माश्को
मिट जायेंगे हर कोई /
मसले तो तेरे - मेरे हैं
सृष्टि को बाँझ बनाते क्यों ?
न मरा " मैं " व दर्प अगर
मर जायेगा इन्सान यंहां ,
जिस वैभव ,सामर्थ्य पर इतराते ,
बन जायेगा शमशान यहाँ /
बसुधा का आँगन सबका है ,
विष - बेल उदय लगाते क्यों ?
उदय वीर सिंह .
फुक्कुसिमा चेर्नोबायिल,
सीने के जख्म नमूना हैं
हर महाद्वीप में धधक रही लौ ,
हर- पल सदमें में सफीना है /
वर्चश्व धर्म का ,मद का ,निज का ,
जीवन को झुठलाते क्यों ?
कुंद चेतना जडवत होती ,
मरुधर बन गया विचार सृजन ,
क्या द्रवित हुआ न देख हृदय ,
नागासाकी , हिरोशिमा का मंचन ?,
हे सृष्टि के अनमोल देव !
शोणित से प्यास बुझाते क्यों ?
पुस्तें उबर नहीं पाई ,
प्रारब्ध ,वैधव्य , विकलांग मिला ,
नदियाँ क्या ,पयोधि भी निष्फल है,
समन-हीन विकिरण का अभिशाप मिला /
न पहचान पराये अपने की,
उस पनाह में जाते क्यों ?
संधि न कोई रोक सके ,
न रोक सके सरहद कोई ,
वाशिंगटन ,दिल्ली ,बीजिंग, माश्को
मिट जायेंगे हर कोई /
मसले तो तेरे - मेरे हैं
सृष्टि को बाँझ बनाते क्यों ?
न मरा " मैं " व दर्प अगर
मर जायेगा इन्सान यंहां ,
जिस वैभव ,सामर्थ्य पर इतराते ,
बन जायेगा शमशान यहाँ /
बसुधा का आँगन सबका है ,
विष - बेल उदय लगाते क्यों ?
उदय वीर सिंह .
8 टिप्पणियां:
मुक्त नहीं तुम खुदा नहीं हो ,
ज्वालामुखी उगाते क्यों ?
सृष्टि अमोल मिटाने को ,
तुम एटमबम बनाते क्यों ?
मूर्ख गर्व में भूल गया तू
शक्ति अपरिमित नहीं रुके
दवे पाँव, अद्रश्य मौत
हो, सबसे पहले तेरी है !
अरे मूर्खो जागो घर में
अपने आग लगाते क्यों
सुंदर धरती,क्षितिज रुपहला
ख़ाक में इसे मिलाते क्यों ?
यह गीत बहुत अच्छा लगा सो अपनी भाषा में आपके भाव कहे हैं आशा है नाराज़ नहीं होंगे ! शुभकामनायें भाई जी !
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (30.04.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
beautiful thoughtful poem
every line says something
नादान अभिमान में क्यों भूला,
परमाणु - अग्नि ना चेरी है ,
दबे पांव , अदृश्य मौत ,
देने से पहले तेरी
सृष्टि अनमोल मिटाने को ,
एटम - बम बनाते क्यों ?
बहुत ही सार्थक प्रश्न । इन बमों का निर्माण ही एक व्यक्ति की destructive mentality को ज़ाहिर करता है।
.
You have raised valid questions.
न तू मरेगा , न मैं मरूँगा
मर जायेगा इन्सान यंहां ,
जिस वैभव ,सामर्थ्य पर इतराते ,
बन जायेगा शमशान यहाँ ..
Sach kaha hai .. agar tarakki ki ye raftaar rahi to jaldi hi aisa hone waala hai ...
परी सी धरती , क्षितिज रुपहला ,
खाक में इसे मिलते मिलाते क्यों ?
Wonderful post ....... Beautiful expression.
कविता में बहुत सार्थक प्रश्न उठाए हैं आपने।
शुभकामनाएं।
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