मूल्य
गिरता है,
महंगाई का
उपलब्ध रोटी उसको भी ,
जो अक्सर ख्वाब
देखा करता है..
बनाने को आशियाना ,
सर्द रातों में रजाई ,
बापू की दवाई ,
नौनिहालों को विस्वास ,
जीवन का ,
चहरे पर मुस्कान ,
जो कहीं ,चलते -चलते,
खो गयी ,पाए लुगाई .../
काश ! गिर जाता ,गिरता ही जाता.......
आशमान छूता ,शिखर पाता......
मूल्य !
बोध का,ज्ञानका ,सम्मान का,
नैतिकता का,सदासयता का,
आचार का,मनुष्यता का,
विनय का,विवेक का,
वचन का,......../
नाउम्मीद न होते ,
श्वप्न- द्रष्टा ,
जो देखे थे ....
समर्थ भारत ,
एक भारत,
जन समूह-
भारतीयता का
एक स्वर ,
जय-हिंद .
अफशोश !
हालत स्थिर है,
न गिरा पा रहे हैं
न उठा पा रहे हैं........./
उदय वीर सिंह .
1 टिप्पणी:
अतिसुन्दर रचना..."मूल्य" का मूल्य बहुत सुन्दर भावों से व्यक्त किया है आपने...आभार
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