संवारी राह आँचल से ,
प्रतीक्षा भी करो वैसे -
तिमिर विलीन हो जाये ,
चन्द्रिका बन के उगो जैसे
शीतल छाँव समीर बन जाये ,
मरू - भूमि की गलियां ,
हर पात रसीला हो मकरंद लिए
प्रसून सजी डालियाँ -
जब निभाई शूलों से हंसके ,
समीक्षा भी करो वैसे-
मखमली अनुभूतियों की जब ,
डगर निर्मित हुयी -
खिल उठे सत -कोष भावों के ,
वेदना विस्मृत हुयी-
मिले पानी से जब पानी ,
प्रतिष्ठा भी करो वैसे-
श्रृंगार सूना है ,नैन सुने से,
प्रीतम की उदासी में -
प्रतिध्वनित होती ध्वनि मेरी
निरुत्तर है , आभासी है-
क्षितिज आँचल में समाये तो,
प्रशंसा भी करो वैसे-
--------- उदय वीर सिंह
शीतल छाँव समीर बन जाये ,
मरू - भूमि की गलियां ,
हर पात रसीला हो मकरंद लिए
प्रसून सजी डालियाँ -
जब निभाई शूलों से हंसके ,
समीक्षा भी करो वैसे-
मखमली अनुभूतियों की जब ,
डगर निर्मित हुयी -
खिल उठे सत -कोष भावों के ,
वेदना विस्मृत हुयी-
मिले पानी से जब पानी ,
प्रतिष्ठा भी करो वैसे-
श्रृंगार सूना है ,नैन सुने से,
प्रीतम की उदासी में -
प्रतिध्वनित होती ध्वनि मेरी
निरुत्तर है , आभासी है-
क्षितिज आँचल में समाये तो,
प्रशंसा भी करो वैसे-
--------- उदय वीर सिंह
8 टिप्पणियां:
श्रृंगार सूना है ,नैन सुने से,
प्रीतम की उदासी में -
प्रतिध्वनित होती ध्वनि मेरी
निरुत्तर है , आभासी है-
lovely lines ...
.
हर भाव निराला हो,
शब्दों में उजाला हो।
आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा आज दिनांक 19-12-2011 को सोमवारीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ
जब निभाई शूलों से हंसके ,
समीक्षा भी करो वैसे-
बहुत सुन्दर भाव
बहुत बढ़िया लिखा.
नाजुक भावों व मखमली शब्दों ने काव्य-सौंदर्य करा दिया.
कमाल की रचना ...बधाई स्वीकार करें भाई जी !
BAHUT SUNDER RACHNA
AABHAR
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