उसकी छैनियों में
इतना पैनापन है ,
तोड़ कर शिला ,तराश देता
पत्थर ,
सृजित हो जाती हैं ,गगन चुम्बी
अट्टालिकाएं
आकार लेती हैं,
लालित्य कला की सजीव सी लगती मूर्तियाँ
खजुराहो की ,
दीवारें भी दूरियों के निहितार्थ /
बाजुओं में इतना बल है
समां जाती है धारा
सिहर उठता है प्रवाह
दरिया का /
छाती में इतना साहस है ,
तिरोहित कर लेने को
तड़ित
सहनशीलता का आकार इतना,
बौनी होती ऊँचाई
गगन की
स्वेद बिन्दुओं,रुधिर से सींचता ,
लहलहा उठती फसल
भर जाते हैं भंडार
विडम्बना है कैसी !
ता -उम्र लगा रहा सृजन,उत्पादन में ,
बचपन से बुढ़ापा
का मुकाम
आज भी कितनी दुरी है
और कितने दूर होंगे ,
रोटी ,कपड़ा और ,
मकान ....
उदय वीर सिंह
04 -02 -2012
14 टिप्पणियां:
बहुत संवेदनशील रचना .. अट्टालिकाएं निर्मित करता है पर अपने लिए उसकी झोपड़ी ही होती है ..
वह अपने जीवन से तराशता रहा जगत को, उसका अपना जगत ही अधूरा रह गया...
बहुत सुन्दर लिखा है आपने
आज के दौर में ऐसा होता है ... ये तीनों चीजें भी कितनी दुष्कर हो जाती हैं ... अच्छा लिखा है बहुत ही ...
इस देश की सच्ची तस्वीर यही है उदय जी.... इससे मुह नहीं मोड़ा जा सकता.....यथार्थ-चित्रण.
पुरवईया : आपन देश के बयार- कलेंडर
यही नियति है, शिल्पकार एवं मजदूर की
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 06-02-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
सहनशीलता का आकार इतना,
बौनी होती ऊँचाई.very nice.
!!!!!बहुत सुंदर प्रस्तुति ,अच्छी रचना
NEW POST....
...काव्यान्जलि ...: बोतल का दूध...
यह भी विरोधाभास ही है हमारे परिवेश के लिए , विचारणीय पंक्तियाँ
विडम्बना है कैसी !
ता -उम्र लगा रहा सृजन,उत्पादन में ,
बचपन से बुढ़ापा
का मुकाम
आज भी कितनी दुरी है
और कितने दूर होंगे ,
रोटी ,कपड़ा और ,
मकान ....
baehad khoob soorat prastuti ....bahut bahut abhar.
विडम्बना है कैसी !
ता -उम्र लगा रहा सृजन,उत्पादन में ,
बचपन से बुढ़ापा
का मुकाम
आज भी कितनी दुरी है
और कितने दूर होंगे ,
रोटी ,कपड़ा और ,
मकान ....
baehad khoob soorat prastuti ....bahut bahut abhar.
विडम्बना है कैसी !
ता -उम्र लगा रहा सृजन,उत्पादन में ,
बचपन से बुढ़ापा
का मुकाम
आज भी कितनी दुरी है
और कितने दूर होंगे ,
रोटी ,कपड़ा और ,
मकान ....
विडम्बना है कैसी !
ता -उम्र लगा रहा सृजन,उत्पादन में ,
बचपन से बुढ़ापा
का मुकाम
आज भी कितनी दुरी है
और कितने दूर होंगे ,
रोटी ,कपड़ा और ,
मकान ....
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