स्पंदन , सम्मोहन दे ,
न दूर कहीं जाना
प्रतीक्षारत प्रश्नों के सावन
उत्तर बन के बरस जाना ---
मधुरस गीतों का देकर ,
मधुप , कुसुम की डार नहीं,
प्रेम के आँगन नैन न उलझे ,
रार नहीं , तकरार नहीं -
बन जाये राग कुछ तो बोलो ,
मौन -व्रती मत बन जाना--
उष्मित होती धाराएँ कितनी ,
तेरे स्नेह का संबल है
तम का यम का हिम का शंशय,
प्रलय भी कितना निर्बल है -
सुबह गयी दिन भी बीते
पर शाम ढले घर आ जाना --
कंगन की खनक पायल की झनक ,
मृदुल संगीत की उपमा है ,
मद - वसंत निशिवासर वसता ,
आँगन , अंक विहँसता है -
फीके देव , गन्धर्व नगर,
हृदय प्रीत के बस जाना-
रश्मि - पुंज , अरुणोदय सम
वलय मलय की कर सृजना,
आवृत हो तन - मन सारा ,
साकार बने देखा सपना -
विस्थापित दुरी हो जाये ,
आँखें हो दर्पण अपना --
उदय वीर सिंह .
20 -02 -2012
न दूर कहीं जाना
प्रतीक्षारत प्रश्नों के सावन
उत्तर बन के बरस जाना ---
मधुरस गीतों का देकर ,
मधुप , कुसुम की डार नहीं,
प्रेम के आँगन नैन न उलझे ,
रार नहीं , तकरार नहीं -
बन जाये राग कुछ तो बोलो ,
मौन -व्रती मत बन जाना--
उष्मित होती धाराएँ कितनी ,
तेरे स्नेह का संबल है
तम का यम का हिम का शंशय,
प्रलय भी कितना निर्बल है -
सुबह गयी दिन भी बीते
पर शाम ढले घर आ जाना --
कंगन की खनक पायल की झनक ,
मृदुल संगीत की उपमा है ,
मद - वसंत निशिवासर वसता ,
आँगन , अंक विहँसता है -
फीके देव , गन्धर्व नगर,
हृदय प्रीत के बस जाना-
रश्मि - पुंज , अरुणोदय सम
वलय मलय की कर सृजना,
आवृत हो तन - मन सारा ,
साकार बने देखा सपना -
विस्थापित दुरी हो जाये ,
आँखें हो दर्पण अपना --
उदय वीर सिंह .
20 -02 -2012
15 टिप्पणियां:
स्पंदन , सम्मोहन दे ,
न दूर कहीं जाना
प्रतीक्षारत प्रश्नों के सावन
उत्तर बन के बरस जाना ---
गागर में सागर. आपका चिंतन बेजोड़ और अतल-वितल कि गहराइयों तक है. संवेदनाओं और चिंतन को प्रणाम. इसे उचित गति और दिशा मिले, यश और कीर्ति फैले.यह भोले नाथ से प्रार्थना है.
आज कविता और पाठक के बीच दूरी बढ़ गई है। संवादहीनता के इस माहौल में आपकी यह कविता इस दूरी को पाटने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा सकता है।
आदरणीय
डॉ. मनोज कुमार जी /
डॉ, जे पी.तिवारी जी !
सदर वंदन /
आभारी हूँ ,आपके टिपण्णी व चिंतन सरोकार का ,आप जैसे ख्यातिलब्ध ,पुरोधाओं का स्नेह मुझे मिलता है .ख़ुशी होती है अंतस में समाहित कर /
मंगल महा शिवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामना .....
मधुरस गीतों का देकर ,मधुप,कुसुम की डार नहीं,प्रेम के आँगन नैन न उलझे , रार नहीं ,तकरार नहीं -
सुन्दर रचना ....
सुन्दर कामना! महाशिवरात्रि पर्व पर हार्दिक बधाई!
सुन्दर रचना .
महाशिवरात्रि पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
मधुरस गीतों का देकर ,
मधुप , कुसुम की डार नहीं,
प्रेम के आँगन नैन न उलझे ,
रार नहीं , तकरार नहीं -
बन जाये राग कुछ तो बोलो ,
मौन -व्रती मत बन जाना--
अद्भुत अभिव्यक्ति..
सुन्दर पंक्तियों के साथ ही बेहतरीन रचना ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
ओम् नमः शिवाय!
महाशिवरात्रि की शुभकामनाएँ!
उष्मित होती धाराएँ कितनी ,
तेरे स्नेह का संबल है
तम का यम का हिम का शंशय,
प्रलय भी कितना निर्बल है -..
Awesome creation..
.
जिंदगी इम्तहान लगती हैं
सख्त मुश्किल में जान लगती हैं
दर्द ने कैद कर लिया मुझको
साँस भी बदगुमान लगती हैं |......अनु
स्पंदन , सम्मोहन दे ,
न दूर कहीं जाना
प्रतीक्षारत प्रश्नों के सावन
उत्तर बन के बरस जाना --
बहुत खूब! बहुत सुंदर ...भावों का प्रवाह अपने साथ बहा ले जाता है...
अद्भुत!!!
वाह,उदय जी, बहुत बढ़िया,बेहतरीन अनुपम प्रस्तुति,
पोस्ट पर आने के लिए आभार इसी तरह स्नेह बनाए रखे..
MY NEW POST...काव्यान्जलि...आज के नेता...
मनोरम आमंत्रण गीत!
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