बाबा या व्यापार ,
आस्था का हथियार ,धर्म के ठेकेदार !
प्रेम की बौछार ,धन-धान्य,अमृत
कृपा वर्षा रहे हैं ..
कोलाहल है, बाजार में नित
नए बाबा आ रहे हैं ..
आधिपत्य था,जिनका सदियों से
घबरा रहे हैं ...
धर्म ग्रंथों के अनुसार
बाबा नहीं आ रहे हैं .....
अकूत दौलत आती रही है ,
दसवंध के रथ चढ़ ,
कृपा मिलती रही , अर्थ के बल /
जनता लुटती रही
धर्म-सेवक ,धर्म- स्थान
कुबेर बनते रहे ....
कोई प्रतिवाद नहीं,
व्यवस्थानुसार था /
परिवेश बदला है ,
कृपा खरीदी- बेचीं जा रही हैआज भी /
पीठ- पीठाधीश्वरबदल गए हैं ....
निवेस जारी है ,
प्रतिवाद सिर्फ इसलिए कि-
बैंक बदल गए हैं ,
सरोकार वही ,
बाबा बदल गए हैं .... /
उदय वीर सिंह .
09-05-2012
9 टिप्पणियां:
कृपा खरीदी- बेचीं जा रही हैआज भी /
पीठ- पीठाधीश्वर
बदल गए हैं ....
निवेस जारी है ,
प्रतिवाद सिर्फ इसलिए कि-
बैंक बदल गए हैं ,
सरोकार वही ,
बाबा बदल गए हैं .... /
कृपा खरीदने और बेचने वाले बाबाओं पर सटीक व्यंग,...बेहतरीन
आधुनिक ढोंगी बाबाओं ने
हमारी आस्था से खिलवाड़
करने का पाप किया है |
बाबों का बाज़ार गर्म है, और व्यवस्था नर्म है।
लोग जो गहरे नहीं जाना चाहते हैं, अन्ततः ठगे जाते हैं।
reality revealed..
सरोकार वही ,
बाबा बदल गए हैं .... /
सही है, जब तक हम नहीं सुधरेंगे, इन बाबाओं का कारोबार यूँ ही फलता-फूलता रहेगा... सटीक अभिव्यक्ति
हर दिन जैसा है सजा, सजा-मजा भरपूर |
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ham sab kuch jaante hain phir bhi in lutero ke chakkar me fas jaate hain.
bahut accha....
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