क्या थे वादे , क्या निभाया
क्या निभाना शेष है
स्मृतियों का लोप होना ,
विध्वंश का सन्देश है -
प्रदत्त थे अधिकार सारे
चिंतन के , निर्माण के
धुल - धूसरित हो गए ,
स्वप्न , स्वाभिमान के -
मसल गया है जूतियों से,
उत्सवों का देश है
शक्तिहीन , बाजुओं में ,
शमशीर कब शोभित हुई,
दुर्बल इच्छा -शक्ति से ,
रणभूमि कब विजित हुई-
रण छोड़ कर भागे हुए का,
कब हुआ अभिषेक है -
भूख बस गयी गाँव में ,
भय शहर में शालता,
बल गया , आत्म - बल नहीं ,
उर में बसी है दैन्यता ,
इक्कीसवीं सदी के राष्ट्र का ,
क्या यही उद्दघोष है -
राशन , पानी, औषधि नहीं ,
बिजली नहीं अभिशप्त दंश,
विपन्नता स्वीकार क्यों,
स्रोत आय के यहाँ अनन्य-
जनित हुआ क्यों द्रोह भाव ,
क्या मां - भारती से द्वेष है -
भ्रम व वैराग्य के घन
उन्माद में छाये हुए,
विक्षिप्त सा परिदृश्य कायम
अनिश्चितता समाये हुए-
दुर्दिन , कराह पीड़ा ही क्या
राष्ट्र का आदेश है-
उदय वीर सिंह ,
29 /09 /2012
8 टिप्पणियां:
पहली टिपण्णी हटा दें कृपया ||
सुन्दर गीत पर बधाई सरदार जी -
स्वाभिमान अभिमान अब, दया दृष्टि में खोट |
अपने ही पहुंचा रहे, भरता माँ को चोट ||
उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।।
स्वाभिमान अभिमान अब, दया दृष्टि में खोट |
अपने ही पहुंचा रहे, भारत माँ को चोट ||
क्या थे वादे,क्या निभाया
क्या निभाना शेष है
स्मृतियों का लोप होना ,
विध्वंश का सन्देश है -
देश की दिशा और दशा देखकर कष्ट होता है
बढ़िया अभिव्यक्ति,,,,उदय वीर जी,,,बधाई,,,
RECENT POST : गीत,
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (30-09-2012) के चर्चा मंच पर भी की गई है!
सूचनार्थ!
बहुत सुंदर रचना !
बौट ही सुंदर प्रस्तुति |
इस समूहिक ब्लॉग में पधारें और इस से जुड़ें |
काव्य का संसार
देश बनेगा,
गढ्ढे भरना काम हमारा,
भावी पीढ़ी सरपट भागे।
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