श्रद्धेया-
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कभी कुंआरी थी अब पेट से है कलम
ठहराव आ गया है ,रफ़्तार कम है -
प्रवाह था रोशनाई में अब जम गयी है
चलती है नफा -नुकसान का मायना लेकर -
रहता आईना साथ था अब हिजाब रहता है
देखती कुछ और लिखती कुछ और है -
खौफ था ईमान का,अब ईमान खौफ में है
जारी हो जाते हैं बयान जो दिए नहीं गए -
दहशतजदा हो जाएगी इतनी सोचा नहीं कभी
छिपने लगी है जेब में शमशीरे आवाम थी -
---- उदय वीर सिंह
4 टिप्पणियां:
सुन्दर प्रस्तुति!
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आपकी इस पोस्ट का लिंक आज के चर्चा मंच पर भी है!
सादर ...सूचनार्थ!
http://charchamanch.blogspot.in/2013/03/1188.html
कलम को भी अपनी सृजनता पर गर्व होगा..
बहुत उम्दा ,,,जबाब नही आपकी लेखनी का,,,बधाई
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वाह,क्या सार्थक पंक्तियाँ हैं,आभार.
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