तू हमसफ़र है , मैं तेरा साया हूँ
जब भी आया हूँ साथ आया हूँ -
वक्त ने जब भी छोड़ा है तेरा दामन
यक़ीनन मैं वक्त छोड़ आया हूँ -
ज़माने की फितरत है ,भूल जाने की
मैं ज़माने को भूल आया हूँ -
आई मुश्किल रिश्तों ने साथ छोड़ा है,
हाथ पकड़ा है ,मैं निभाया हूँ -
तेरी जाति धर्म फिरका पूछा कभी नहीं
तू मेरा सरमाया मैं तेरा साया हूँ
- उदय वीर सिंह .
जब भी आया हूँ साथ आया हूँ -
वक्त ने जब भी छोड़ा है तेरा दामन
यक़ीनन मैं वक्त छोड़ आया हूँ -
ज़माने की फितरत है ,भूल जाने की
मैं ज़माने को भूल आया हूँ -
आई मुश्किल रिश्तों ने साथ छोड़ा है,
हाथ पकड़ा है ,मैं निभाया हूँ -
तेरी जाति धर्म फिरका पूछा कभी नहीं
तू मेरा सरमाया मैं तेरा साया हूँ
- उदय वीर सिंह .
10 टिप्पणियां:
गहन ...सुन्दर सकारात्मक भाव ...!!
साया ही साथ दिखता है, रहता है।
आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति शुक्रवारीय चर्चा मंच पर ।।
चरखा चर्चा चक्र चल, सूत्र कात उत्कृष्ट ।
पट झटपट तैयार कर, पलटे नित-प्रति पृष्ट ।
पलटे नित-प्रति पृष्ट, आज पलटे फिर रविकर ।
डालें शुभ शुभ दृष्ट, अनुग्रह करिए गुरुवर ।
अंतराल दो मास, गाँव में रहकर परखा ।
अतिशय कठिन प्रवास, पेश है चर्चा-चरखा ।
आपकी यह सुन्दर रचना शनिवार 08.06.2013 को निर्झर टाइम्स (http://nirjhar-times.blogspot.in) पर लिंक की गयी है! कृपया इसे देखें और अपने सुझाव दें।
सुन्दर रचना..।
साझा करने के लिए आभार...!
उत्कृष्ट रचना ...!!
बहुत सुन्दर रचना !
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achchi gajal hai
achchi gajal hai
achchi gajal hai
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