साया
उनको मालूम है हुश्न तेरी मासूमियत
रहो नकाब में चाहे ,
परछाईयाँ साथ चलती हैं -
जमाल से परछाईयों का वास्ता न कोई
उनकी फितरत है निभाने की
चाहो दूर होना वो साथ होती हैं -
न पूछती हैं तेरा मजहब फिरका,
वास्ता न कोई जमातो इल्म से ,
यक़ीनन पैरोकार तेरे वजूद की तेरा ऐतबार करती हैं -
-उदय वीर सिंह
2 टिप्पणियां:
वाह, बहुत खूब..
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