माई के गाँव में पीपल की छांव में
गोरी के पाँव में ,झांझर के बोल अब
सुनाई न देते हैं -
मक्के दियाँ रोटियाँ ,मख्खन चे मलाइयाँ,
लस्सी भरी कोलियाँ ,सरसों के साग अब
दिखाई न देते हैं -
गीतों में बोलियाँ ,हथ गन्ने की पोरियाँ
गिद्दे की टोलियाँ बापू के गाँव अब
दिखाई न देते हैं -
गुत से परान्दे,सिर पल्लू का बिछोड़ा है
शब्द सुहेले भावें, नितनेम आँगन में
सुनाई न देते हैं -
सताई गई है प्रीत ,रुलाई गई है प्रीत
मिटाई गई है प्रीत, कोख आई बेटी को
बधाई न देते हैं -
उदय वीर सिंह
गोरी के पाँव में ,झांझर के बोल अब
सुनाई न देते हैं -
मक्के दियाँ रोटियाँ ,मख्खन चे मलाइयाँ,
लस्सी भरी कोलियाँ ,सरसों के साग अब
दिखाई न देते हैं -
गीतों में बोलियाँ ,हथ गन्ने की पोरियाँ
गिद्दे की टोलियाँ बापू के गाँव अब
दिखाई न देते हैं -
गुत से परान्दे,सिर पल्लू का बिछोड़ा है
शब्द सुहेले भावें, नितनेम आँगन में
सुनाई न देते हैं -
सताई गई है प्रीत ,रुलाई गई है प्रीत
मिटाई गई है प्रीत, कोख आई बेटी को
बधाई न देते हैं -
उदय वीर सिंह
1 टिप्पणी:
भावपूर्ण प्रस्तुति.बहुत शानदार
कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
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