जन्म लेना उसके बस में नहीं
एक बेरोजगार कई बार मरता है -
चिता तो जलाती है मात्र शरीर
वह पूरे जीवन काल जलता है-
आगे सपनों का बुना संसार
पीछे दायित्वों का अम्बार
सहानुभूतियों
का
दिव्यांग दर्शन
दरकते विस्वास का घना गुब्बार
अंतहीन सवालों का क्रम निरंतर चलता है -
आशंकाओ दुविधाओं विफलताओं का
एकल प्रवक्ता दैन्यता कुंठा अवसादों का
भुगतना होता है दंड अपराध विहीनता का
अपराधबोध जीवन की मृगमरीचिका का -
उगता है हर सुबह हर शाम ढलता है -
उदय वीर सिंह
3 टिप्पणियां:
जय मां हाटेशवरी...
अनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 18/12/2018
को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
बहुत मार्मिक और सटीक अभिव्यक्ति..
सही कहा है !!!
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