शुक्रवार, 10 नवंबर 2023

....जिंदगी सामान तो न थी.✍️


 






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जिंदगी अपनी थी मेहमान तो न थी।

दुआ थी अपनों की सामान तो न थी।

भरी थी गमों खुशियों की तकरीर से,

ज़मीं पर थी खालीआसमान तो न थी।

सजी थी  ईमानो इश्क के बेल बूटों से,

दौलत से भरा खाली मकान तो न थी।

जुनूनी रफ्तगी  है  दौड़ में हमीं-हम के, 

मोहब्बत के सफ़र में परेशान तो न थी।

दस्तक  दहलीजों पर तौहीद की आयी,

कभी जबान हिन्दू मुसलमान तो न थी।

उदय वीर सिंह।

3 टिप्‍पणियां:

udaya veer singh ने कहा…

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान होना ही व्हहिये।

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

हजूर कहाँ है अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता ? हम भी आपके ब्लॉग पर आ कर कुछ कहते हैं |