सुना है शाम को , अब सपने नहीं आते ,
दौर -ए- इंतजार में ,अब अपने नहीं आते --
खौफ का मंज़र समाया,हर -कदम हर - पल ,
लग जायेगा नश्तर , कब , कहाँ खंजर ,
जो छोड़ चले तन्हां ,मिलने नहीं आते ---
इबादत में मिटाया दिन का हर लम्हां ,
छुपाया हर गुनाहों को , अपनी पनाहों में ,
तेरे अहसान का सदका,वो अल्फाज नहीं आते ---
उसने चाँद पर इतना ऐतबार कर लिया ,
लिख दी शिनाख्त उसने शाम-ए -मुहब्बत की ,
गिला अश्कों से क्या करना ,बरसने नहीं आते --
हर शाम की आँखें उनींदी ,कभी शाम तो आये ,
उदय शाम के घर में कभी ,दिनमान नहीं आते ----
उदय वीर सिंह .
10 टिप्पणियां:
बहुत खूबसूरती से लिखे जज़्बात
इबादत में मिटाया दिन का हर लम्हां ,
छुपाया हर गुनाहों को , अपनी पनाहों में ,
तेरे अहसान का सदका,वो अल्फाज नहीं आते ---
ye man apne hi gunaha se shramsaar.....bahut khub...bhavpurn abhivyakti
सुना है शाम को , अब सपने नहीं आते ,
दौर -ए- इंतजार में ,अब अपने नहीं आते --
behad achhi rachna
हर शाम की आँखें उनींदी ,कभी शाम तो आये ,
उदय शाम के घर में कभी ,दिनमान नहीं आते ----
बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
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सुना है शाम को , अब सपने नहीं आते
दौर -ए- इंतजार में ,अब अपने नहीं आते --
बहुत खूब.....
सुंदर भाव...
बहुत उम्दा!
हर शाम की आँखें उनींदी ,कभी शाम तो आये ,
उदय शाम के घर में कभी ,दिनमान नहीं आते ----
बहुत खुबसूरत ख़यालात . वाह !!!!!!!!!!!!!!!!!!
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सुना है शाम को , अब सपने नहीं आते ,
दौर -ए- इंतजार में ,अब अपने नहीं आते --
आपकी लेखनी के कायल हैं हम , दिल से निकलती हैं आपकी रचनायें। आपके ब्लौग पर तिरंगा लहराता देखकर मन अति हर्षित है।
ये तिरंगा यूँ ही ऊँचाइयों पर लहराता रहे और आपका लेखन सतत जारी रहे।
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सुना है शाम को , अब सपने नहीं आते , दौर -ए- इंतजार में ,अब अपने नहीं आते
..
लाजवाब!
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