हजारों जनम हों, फिर भी ये कम हैं ,
जब भी जनम लें ,वतन पर फ़िदा हों ---
इश्क -ए - आजादी , मुकद्दर में आये ,
युगों तक सलामत , कभी न जुदा हों --
कदम रहबरी के , शहीदों तुम्हारे ,
मेरे हमसफ़र मेरे दिल में सदा हों --
सेल्युलर की गोंद और जलियाँ का आंगन ,
चुन लेंगे हम चाहे ,रब भी खफा हों --
सदमें में गम है , सितम खौफ में है ,
वजूद - ए- क़ज़ा क्या , रजा -ए- खुदा हों --
काफिला-ए-दीवाने ,कफ़न सिर पर बांधे,
प्रीत सरहद से लागी,हंसकर अलविदा हों --
शहीदी मुकद्दर में , मिलती न सबको ,
इल्तजा है उदय , राह -ए माये फ़ना हों --
उदय वीर सिंह .
०४/०८/२०११.
काफिला-ए-दीवाने ,कफ़न सिर पर बांधे,
प्रीत सरहद से लागी,हंसकर अलविदा हों --
शहीदी मुकद्दर में , मिलती न सबको ,
इल्तजा है उदय , राह -ए माये फ़ना हों --
उदय वीर सिंह .
०४/०८/२०११.
9 टिप्पणियां:
काफिला-ए-दीवाने ,कफ़न सिर पर बांधे,
प्रीत सरहद से लागी,हंसकर अलविदा हों --
kaafi badhiya
हजारों जनम हों, फिर भी ये कम हैं ,
जब भी जनम लें ,वतन पर फ़िदा हों ---
Udaya Ji.. "Jai Hind, Jai Bharat"
ऐ वतन,
मेरी हर तमन्ना में तू, तुझसे प्यार करता हूं..
ये जनम काफ़ी नही, हर जनम तुझपे वार करता हूं..
बहुत सुन्दर भाव ।
हजारों जनम हों, फिर भी ये कम हैं ,
जब भी जनम लें ,वतन पर फ़िदा हों ---
बेहद खूबसूरत लाइनें ...शुभकामनायें भाई जी !
deshbhakti ke prem se paripurn....
देशप्रेम से औत-प्रोत सुन्दर रचना!
इश्क -ए - आजादी , मुकद्दर में आये ,
युगों तक सलामत , कभी न जुदा हों --
भावों का सहज सम्प्रेषण .....ओज गुण प्रधान रचना ....आपका आभार
काफिला-ए-दीवाने ,कफ़न सिर पर बांधे,
प्रीत सरहद से लागी,हंसकर अलविदा हों--
बहुत बढ़िया...
kya baat kahi hai,vaah.
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