प्रिय मित्रों ,सुधिजनो ,इस रचना को अन्यथा न ले ,हृदय की गहराईयों से आत्मसात करेंगे तो उपकार होगा, ख़ुशी होगी ,मैं अकिंचन खुद नहीं जनता क्या ? कैसे ?लिख गया ......अनुभूतियों को जीते हुये ........आभार जी .
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हम चले जाते हैं ,पग कहाँ जाते हैं,
हम किधर जा रहे हैं, नहीं जानते --
हम तलबगार किसके ,क्यों हो गए,
हमको पाना है क्या ? हम नहीं जानते --
मधुशाला से मद का प्याला मिला ,
मंदिरों से मिला क्या? नहीं जानते--
धर्म से,पंथ से,मिलती जन्नत सुना ,
क्या वतन सेमिला, हम नहीं जानते ---
गोंद में नाज़नी की खुशी हर मिले ,
क्या मिला हमको माँ से नहीं जानते--
जिंदगी खूबसूरत हरम बन मिली ,
मौत से क्या मिले,हम नहीं जानते --
आरजू है उदय ,खुद को पहचानिए ,
वक्त कितना मिले हम नहीं जानते--
उदय वीर सिंह .
९/०८/२०११
आरजू है उदय ,खुद को पहचानिए ,
वक्त कितना मिले हम नहीं जानते--
उदय वीर सिंह .
९/०८/२०११
20 टिप्पणियां:
आरजू है उदय ,खुद को पहचानिए ,
वक्त कितना मिले हम नहीं जानते--
sunder ..abhivyakti.
जिंदगी खूबसूरत हरम बन मिली ,
मौत से क्या मिले,हम नहीं जानते --
बहुत ही गहरे भावों से परिपूर्ण रचना..आभार
जिंदगी खूबसूरत हरम बन मिली ,
मौत से क्या मिले,हम नहीं जानते --
आरजू है उदय ,खुद को पहचानिए ,
वक्त कितना मिले हम नहीं जानते--
वाह !! भाई मान गए. नहीं जानते . नहीं जानते कहकर इतना कुछ बतला गए जो बहुत जानते - बहुत जानते, कहने और प्रवचन देने वाले भी वास्तव में नहीं जानते.
हमें याद आ रही है मूंदक उपनिशस की पंक्तियाँ जिसमे कहा गया है की जो यह कहता है की मै परम तत्वा को नहीं जानता, वास्तव में वही जनता है और जो यह दवा कर की मैं उब तत्वा को अच्छी तरह जानता हूँ वास्तव में वह कुछ नहीं जनता है. इस लिए उपनिषद का निर्णय हैं भाई आप मर्मग्य्य है, भीत ही गोद बातों को जानने वाले चिन्तक हैं. हम लोगों के साथ निचले स्तर पर आकार वैसा ही खेल खेल रहें हैं जैसे एक कोच खेलता है खिलाडिओं के साथ ..
बधाई और प्यार भरा सलाम जी आपको.. सत श्रीअकाल जी...
वाह !! भाई मान गए. नहीं जानते . नहीं जानते कहकर इतना कुछ बतला गए जो बहुत जानते - बहुत जानते, कहने और प्रवचन देने वाले भी वास्तव में नहीं जानते.
हमें याद आ रही है मूंदक उपनिशस की पंक्तियाँ जिसमे कहा गया है की जो यह कहता है की मै परम तत्वा को नहीं जानता, वास्तव में वही जनता है और जो यह दवा कर की मैं उब तत्वा को अच्छी तरह जानता हूँ वास्तव में वह कुछ नहीं जनता है. इस लिए उपनिषद का निर्णय हैं भाई आप मर्मग्य्य है, भीत ही गोद बातों को जानने वाले चिन्तक हैं. हम लोगों के साथ निचले स्तर पर आकार वैसा ही खेल खेल रहें हैं जैसे एक कोच खेलता है खिलाडिओं के साथ ..
बधाई और प्यार भरा सलाम जी आपको.. सत श्रीअकाल जी...
हम तलबगार किसके ,क्यों हो गए,
हमको पाना है क्या ? हम नहीं जानते --
बहुत सुंदर ...
बहुत सुन्दर...सही फरमाया
bhaut hi sundar panktiya...
आरजू है उदय ,खुद को पहचानिए ,
वक्त कितना मिले हम नहीं जानते--
सारी गज़ल का सार अंतिम शेर मे कह दिया…………शानदार्।
गोंद में नाज़नी की खुशी हर मिले ,
क्या मिला हमको माँ से नहीं जानते--
पर इन दो पक्तियों के लिए जरुर कहूगी कि .....माँ से ही तो सब कुछ मिला हमको इस जहान में
बाकि पूरी लेखनी बहुत खूबसूरत
भाई उदयवीर सिंह जी!
गज़ल रचने में भी आपका जवाब नहीं है!
सभी अशआर बहुत खूबसूरत हैं!
प्रिय अनु जी ,
सादर प्रणाम ,
बिनती करते हुए मेरा निवेदन--- पूर्वार्ध में मैंने संकेत दिया था,फिर भी चाहूँगा भावनाओं को बांटना ,इस रचना में एक उद्वेग है ,बेचैनी है ,मर्माहट है ,क्यों की हम जागते हुए भी सोने का स्वांग कर रहे हैं ,भला माँ से भी बड़ी कोई नेमत है , हजारों स्वर्ग , हजारों-हज़ार सुख कुर्बान हैं माँ पर ,यही तो मेरे कहने का आशय था ,हम भुलाये जा रहे हैं ,आशा करता हूँ मेरा मंतव्य ग्राह्य होगा.--- अकिंचन .
बहुत गहरी बातें याद दिला रहे हैं आप, आभार!
हम तलबगार किसके ,क्यों हो गए,
हमको पाना है क्या ? हम नहीं जानते --
जिंदगी खूबसूरत हरम बन मिली ,
मौत से क्या मिले,हम नहीं जानते --
bahut badhiya
जिंदगी खूबसूरत हरम बन मिली ,
मौत से क्या मिले,हम नहीं जानते --गहन भाव लिए सुन्दर प्रस्तुति....
खूबसूरत ग़ज़ल...
हम चले जाते हैं ,पग कहाँ जाते हैं,
हम किधर जा रहे हैं, नहीं जानते --
..waah! bahut badiya!
भाई उदय जी बहुत खूबसूरत गज़ल कही है आपने बधाई
भाई उदय जी बहुत खूबसूरत गज़ल कही है आपने बधाई
हम तलबगार किसके ,क्यों हो गए,
हमको पाना है क्या ? हम नहीं जानते --
A question which crosses everyone's mind, every now and then .
Your creations are matchless !
Very fascinating indeed .
.
धर्म से,पंथ से,मिलती जन्नत सुना ,
क्या वतन सेमिला, हम नहीं जानते ---
गहन भावों की बहुत सशक्त और सटीक अभिव्यक्ति..लाज़वाब प्रस्तुति..आभार
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