देना प्यास होठों को अगर ,
तो शराब मत देना ,
पद्मिनी रूप जब मांगे ,
नकाब मत देना--
कर सकें तामीर
एक आशियाने को,
ताजमहल बनाने का,
ख्वाब मत देना ,
जमाना संगदिल हो ,
तंगदिली मांगी नहीं ,
खुद से रूठ जाने का,
जज्ज्बात मत देना--
हर एक बूंद ,
शैलाब का हिस्सा है ,
नीरवता लिए बह जाये ,
आघात मत देना ---
टूटे आईना ,संवेदना
व संचेतना का जब ,
मौन ही अभिलेख है ,
जबाब क्या देना ---
न मिल सकें गले
ओ ऊँचाई भी क्या मांगनी,
न कर सकें साँझा ,
ओ सबाब मत देना --
*
दे सको तो स्नेह देना,
ओ गुलो - गुलशन ,
काँटों में भी, निष्ठा है ,
खुशबु की खैरात मत देना---
उदय वीर सिंह
२०/०८/२०११
शैलाब का हिस्सा है ,
नीरवता लिए बह जाये ,
आघात मत देना ---
टूटे आईना ,संवेदना
व संचेतना का जब ,
मौन ही अभिलेख है ,
जबाब क्या देना ---
न मिल सकें गले
ओ ऊँचाई भी क्या मांगनी,
न कर सकें साँझा ,
ओ सबाब मत देना --
*
दे सको तो स्नेह देना,
ओ गुलो - गुलशन ,
काँटों में भी, निष्ठा है ,
खुशबु की खैरात मत देना---
उदय वीर सिंह
२०/०८/२०११
11 टिप्पणियां:
बेहद असरदार रचना.....
अपना अमिट प्रभाव छोड़ने में कामयाब है !
बधाई आपको !
टूटे आईना ,संवेदना
व संचेतना का जब ,
मौन ही अभिलेख है ,
जबाब क्या देना ---
शब्द-शब्द संवेदनाओं से भरी संदेशपरक रचना.....
दे सको तो स्नेह देना,
ओ गुलो - गुलशन ,
काँटों में भी, निष्ठा है ,
खुशबु की खैरात मत देना---
वाह क्या बात है मज़ा आ गया दोस्त जी |
बहुत ही खूबसूरत |
टूटे आईना ,संवेदना
व संचेतना का जब ,
मौन ही अभिलेख है ,
जबाब क्या देना ---
आपके हृदय से खूबसूरत भाव 'उदय'
होकर जब पोस्ट के माध्यम से प्रकट होतें हैं
तो दिल को चुरा ही लेतें हैं.अब चोरी की रपट
कहाँ लिखायें उदय जी ? चोरी भी तो आप
बहुत सफाई से कर लेते हैं.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.
देना प्यास होठों को अगर ,
तो शराब मत देना ,
पद्मिनी रूप जब मांगे ,
नकाब मत देना--
...बहुत खूब ! दिल को छूने वाली एक लाज़वाब प्रस्तुति..बधाई !
bhaut hi sundar... dil k chu gayi rachna....
आपकी प्रस्तुति हमेशा ही लाजवाब होती है.बेहतरीन शब्द संयोजन और संवेदना में पगे शब्द हमेशा ही दिल को छू जाते हैं
Bahut bhavpurna prastuti.. Aabharrrr...
संदेशपरक रचना.
जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें.
टूटे आईना ,संवेदना
व संचेतना का जब ,
मौन ही अभिलेख है ,
जबाब क्या देना ---
mai to yahi kahunga bhaii -
शब्दों से, अ-शब्द हो जाना,
निः शब्दता, मौन धारण करना.
प्रगति है; साधना की, आराधना की.
चेतना-दिव्यता की, ज्ञान- प्रज्ञान की.
जिसमे गति है, ऊर्जा है.
अनेकत्व तक से, एकत्व तक की.
अंततः, अलिंगी एकत्व का भी लोप.
निःशब्दता में, दिव्यता में शून्यता में.
यह तो रूपांतरण है,
गतिज ऊर्जा की, स्थितिज ऊर्जा में.
इस शून्यता में है, पतझड़ - बसंत.
जहां एक नहीं, सहस्रों अनंत.
शब्दों से, अ-शब्द हो जाना,
निः शब्दता, मौन धारण करना.
प्रगति है; साधना की, आराधना की.
चेतना-दिव्यता की, ज्ञान- प्रज्ञान की.
जिसमे गति है, ऊर्जा है.
अनेकत्व तक से, एकत्व तक की.
अंततः, अलिंगी एकत्व का भी लोप.
निःशब्दता में, दिव्यता में शून्यता में.
यह तो रूपांतरण है,
गतिज ऊर्जा की, स्थितिज ऊर्जा में.
इस शून्यता में है, पतझड़ - बसंत.
जहां एक नहीं, सहस्रों अनंत.
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