मूल्य
गिरता
महंगाई का ,
उपलब्ध रोटी -दाल उसको भी ,
जो अक्सर ख्वाब
देखा करता है..
चाहत है बनाने को,
एक आशियाना ,
सर्द रातों में रजाई ,
बापू की दवाई ,
नौनिहालों को विस्वास ,
जीवन का ..../
चहरे पर मुस्कान ,
जो कहीं ,चलते -चलते,
खो गयी ,
पाए लुगाई .../
काश ! गिर जाता ,गिरता ही जाता......./
आशमान छूने, शिखर पाने तक
मूल्य -
बोध का,ज्ञानका ,सम्मान का,
नैतिकता का,सदासयता का,
आचार का,मनुष्यता का,
विनय का,विवेक का,
वचन का,......../
नाउम्मीद न होते ,
श्वप्न- द्रष्टा ,
जो देखे थे ....
समर्थ भारत
का...../ ,
का...../ ,
13 टिप्पणियां:
नाउम्मीद न होते ,
श्वप्न- द्रष्टा ,
जो देखे थे ....
समर्थ भारत
का...../ ,
स्वप्न तो देख रहे हैं पर अक्सर सपने टूट जाते हैं
गुस्ताखी माफ़ मैडम , अब हम लोगों को सपने नहीं देखने हैं ,जो देखे जा चुके हैं ,उन्हें पूरा करने का दायित्वलेनाहै,वचन देना ही निहितार्थ है मूल्यों का , निभाना ही होगा ..../ शुक्रिया जी /
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति..
वस्तुओं का अवमूल्यन।
मुद्रा की लगातार छपाई,
बढ़ रही है मँहगाई।
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स्वप्न का हकीकत से
नहीं है कुछ भी सम्बन्घ।
इसीलिए तो मिट रहे हैं अनुबन्ध।
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
अफ़सोस कि रचना में देश की वास्तविकता का नज़ारा है। मूलभूत सुविधाओं पर सबका हक़ है और वे सबको मिलनी ही चाहिये।
इस नये दौर की अब नई हर कहानी है .....सपनो में जी लेने दो ....
ना कहो हमहे उठ जाने को ....नींद के भुलावे में कम से कम सपने तो अपने ही है
anu
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति..धन्यवाद..
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@--अब हम लोगों को सपने नहीं देखने हैं ,जो देखे जा चुके हैं ,उन्हें पूरा करने का दायित्वलेनाहै,वचन देना ही निहितार्थ है मूल्यों का , निभाना ही होगा ....
वचन देना ही निहितार्थ है , मूल्यों का....बहुत ऊंची बात कही उदय जी।
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भाई उदयवीर जी बेहतरीन कविता बधाई
भाई उदयवीर जी बेहतरीन कविता बधाई
ना उम्मीद ना होते स्वप्न द्रष्टा
जो देखे थे समर्थ भारत का स्वप्न ।
यह स्वप्न साकार करने की जिम्मेदारी हर भारतवासी की है ।
सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति..
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