तेरी आँखों में घर हो ,शहर हो सफ़र हो ,
वन्दगी का शिवाला तुम सारी उमर हो -
होंठ मुसकाये तो ,कोपलें खिल उठे ,
नैन तिरछे हुए ,दामिनी तब गिरे ,
देख शर्माए मोती ,दांतों की लड़ी ,
गुलालों की गरिमा गालों से गिरे ,
सिर का आंचल , हया का नमूना लगे ,
पाक -गलियों में जाती हुयी वो डगर हो ---
ग्रीवा ,हंसिनी को ,बे -दखल कर रहा ,
बाहें वल्लरी , चूमती अप्सरा ,
दिव्य- वैभव , उरोजों के पहलू में है ,
केश काली घटाओं को दीक्षित करें ,
हर उपमा से आगे तेरा ऊँचा शिखर हो--
गज - गामिनी का निरंतर गमन बन ,
रही नृत्य कर ,हर कुसुम- पद की डाली ,
फूल -वर्षाते हर्षित हो गलियों से गुजरे ,
स्वागतम कर रहा पथ ,ले कुम -कुम की थाली
प्रीत नयनों से इतनी, छलक जाती है ,
मैं तेरा ,तू मेरा सच्चे हमसफ़र हो ---
याद तेरी परिमल सी, मेरे उपवन में है ,
संग तेरा , मुकद्दर का नजराना है ,
ऐ अनमोल हीरे , कुदरत - ए - मुक्तसर ,
राह, पाक-ए- मुहब्बत गुजर जाना है ,
तेरे पायल से पूछे है ,सरगम की गलियां ,
उदय अब बता दो , बसे तुम किधर हो --
उदय वीर सिंह
नैन तिरछे हुए ,दामिनी तब गिरे ,
देख शर्माए मोती ,दांतों की लड़ी ,
गुलालों की गरिमा गालों से गिरे ,
सिर का आंचल , हया का नमूना लगे ,
पाक -गलियों में जाती हुयी वो डगर हो ---
ग्रीवा ,हंसिनी को ,बे -दखल कर रहा ,
बाहें वल्लरी , चूमती अप्सरा ,
दिव्य- वैभव , उरोजों के पहलू में है ,
कटि - प्रदेशों का सौंदर्य है मद -भरा ,
केश काली घटाओं को दीक्षित करें ,
हर उपमा से आगे तेरा ऊँचा शिखर हो--
गज - गामिनी का निरंतर गमन बन ,
रही नृत्य कर ,हर कुसुम- पद की डाली ,
फूल -वर्षाते हर्षित हो गलियों से गुजरे ,
स्वागतम कर रहा पथ ,ले कुम -कुम की थाली
प्रीत नयनों से इतनी, छलक जाती है ,
मैं तेरा ,तू मेरा सच्चे हमसफ़र हो ---
याद तेरी परिमल सी, मेरे उपवन में है ,
संग तेरा , मुकद्दर का नजराना है ,
ऐ अनमोल हीरे , कुदरत - ए - मुक्तसर ,
राह, पाक-ए- मुहब्बत गुजर जाना है ,
तेरे पायल से पूछे है ,सरगम की गलियां ,
उदय अब बता दो , बसे तुम किधर हो --
उदय वीर सिंह
11 टिप्पणियां:
nice creation...thanks.
आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा दिनांक 26-09-2011 को सोमवासरीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ
याद तेरी परिमल सी, मेरे उपवन में है ,
संग तेरा , मुकद्दर का नजराना है ,
ऐ अनमोल हीरे ,कुदरत -ए- मुक्तसर ,
राह, पाक-ए- मुहब्बत गुजर जाना है ,
सरिता के प्रवाह की तरह कल-कल करती सुन्दर रचना....
वाह! वाह! वाह!
बहुत खूब.
तेरे पायल से पूछे है ,सरगम की गलियां ,
उदय अब बता दो , बसे तुम किधर हो --
उदय जी,आप तो कमाल ही कर देते है.
आभार ||
आपकी इस प्रस्तुति पर
बहुत-बहुत बधाई ||
वाह ………बहुत सुन्दर प्रेम भरी पाती।
प्यार की लेखनी से शब्द शब्द डूबा हुआ .....बहुत खूब
आनंदित करता गीत....
सादर...
याद तेरी परिमल सी, मेरे उपवन में है ,
संग तेरा , मुकद्दर का नजराना है ,
ऐ अनमोल हीरे ,कुदरत -ए- मुक्तसर ,
राह, पाक-ए- मुहब्बत गुजर जाना है ,
वाह ...बहुत ही बढि़या ।
एक बार फिर आपके शब्द कौशल ने मन्त्र मुग्ध कर दिया...नमन है आपकी लेखनी को...अद्भुत
नीरज
अत्यंत भावमयी, कोमल स्निग्द्ध और प्रेम पाग में डूबा प्रेम गीत, जो केवल गीत नहीं मन की मधर कल्पनाएँ भी है. एक उच्च कोटि का हृदयग्राही काव्य जो बार-बार पढने को ललचाता है. चिंतन के लिए भी भरपूर अवकाश है इसमें. बधाई आपको, आभार लेखनी का.
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