हम तुम्हारे नहीं , तुम हमारे नहीं ,
आग ,पतझड़ में खिलती, बहारें नहीं ,--
*
तेरा सूरज सा बनने की शुभकामना ,
ऋतू ऐसी नहीं की , अन्हारे नहीं --
*
पथ गमन कर रहा ,बन के परछाईयाँ ,
दूर मंजिल भले , फिर भी हारे नहीं ---
* छीन सकता है कोई ,चमन वो कली ,
कौन कहता ,गगन में सितारे नहीं ---
*
डूब जाने का डर , मेरे दिल में नहीं ,
ऐसी दरिया नहीं, जो किनारे नहीं ---
*
पत्थरों की तरह टूट बिखरेंगे क्यों ,
ऐसी दुनियां नहीं की , सहारे नहीं ---
* उदय वीर सिंह .
14 टिप्पणियां:
भाई उदय वीर जी सत् श्री अकाल बहुत सुन्दर गज़ल बधाई
पथ गमन कर रहा ,बन के परछाईयाँ ,
दूर मंजिल भले , फिर भी हारे नहीं ---
ग़ज़ल के हरेक शे’र मेम एक ताज़गी और जोश भरा है।
खूबसूरत रचना
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वाह क्या बात है ! बहुत सुन्दर !
पूरी ग़ज़ल उम्दा है !
आपके पोस्ट पर पहली बार आया हूं । पोस्ट अच्छा लगा । .धन्यवाद ।
बहुत सुन्दर प्तथा सार्थक रचना , आभार
बहुत सुन्दर ग़ज़ल लिखी है आपने!
--
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और यशस्वी प्रधानमंत्री रहे स्व. लालबहादुर शास्त्री के जन्मदिवस पर उन्हें स्मरण करते हुए मेरी भावपूर्ण श्रद्धांजलि!
इन महामना महापुरुषों के जन्मदिन दो अक्टूबर की आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
♥
* सतश्री अकाल जी ! *
आदरणीय उदय वीर सिंह जी
सादर नमस्कार !
वदिया रचना है जी -
पथ गमन कर रहा ,बन के परछाइयां
दूर मंजिल भले , फिर भी हारे नहीं
ख़ूबसूरत रचना के लिए मुबारकबाद !
नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाओं सहित
-राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत सुन्दर गजल... ! बधाई
डूब जाने का डर , मेरे दिल में नहीं ,
ऐसी दरिया नहीं, जो किनारे नहीं ---
ज़िन्दगी में आस उजास की आस सकारात्मक विचार निश्चिंतता की रचना .
वाह ...बहुत बढि़या कहा है ।
पथ गमन कर रहा ,बन के परछाईयाँ ,
दूर मंजिल भले , फिर भी हारे नहीं !
प्रेरक ज़ज्बा !
डूब जाने का डर , मेरे दिल में नहीं ,
ऐसी दरिया नहीं, जो किनारे नहीं
बहुत खूब
उम्दा ग़ज़ल...
सादर...
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