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करके तेरी उज्वल,
ज्योति का उपहास भी
मैं ,अँधेरे
में हूँ ...
अपशब्दों का विन्यास
अपशब्दों का विन्यास
विकृतियों की उपमा,
दे सास्तियों के खंभ
मैं अँधेरे,
में हूँ ......
देकर परिधि ,प्राचीर
खींचकर लक्षमण रेखा,
देकर दैन्यता भी ,
मैं अँधेरे
में हूँ ....
देकर बेबसी,
शून्यता,छीनकर संगीत -मीत ,
रचनाशीलता ,
मैं अँधेरे,
में हूँ .......
देकर मझधार ,
तोड़कर किश्ती , पतवार
सेतु .किनार
मैं अँधेरे
में हूँ ....
मिटा करके हस्ती ,
जला करके दामन,
दे सास्तियों के खंभ
मैं अँधेरे,
में हूँ ......
देकर परिधि ,प्राचीर
खींचकर लक्षमण रेखा,
देकर दैन्यता भी ,
मैं अँधेरे
में हूँ ....
देकर बेबसी,
शून्यता,छीनकर संगीत -मीत ,
रचनाशीलता ,
मैं अँधेरे,
में हूँ .......
देकर मझधार ,
तोड़कर किश्ती , पतवार
सेतु .किनार
मैं अँधेरे
में हूँ ....
मिटा करके हस्ती ,
जला करके दामन,
उठा करके पर्दा हया का ,
मैं अँधेरे
में हूँ ....
न उठा सका खुद को ,
न छू सका ऊँचाईयाँ नभ की
झुकाने का प्रयास नभ को ,
निष्फल
मैं अँधेरे
में हूँ .........../
उदय वीर सिंह .
मैं अँधेरे
में हूँ ....
न उठा सका खुद को ,
न छू सका ऊँचाईयाँ नभ की
झुकाने का प्रयास नभ को ,
निष्फल
मैं अँधेरे
में हूँ .........../
उदय वीर सिंह .
10 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर वाह!
लाजवाब रचना के प्रस्तुतीकरण पर ...बधाई स्वीकारें
नीरज
आपके पोस्ट पर आना बहुत ही अच्छा लगा । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
बहुत खूब ...
शक्तिशाली अभिव्यक्ति ..
शुभकामनायें आपको !
♥
आदरणीय उदय वीर सिंह जी
सादर अभिवादन !
करके तेरी उज्वल,ज्योति का उपहास भी मैं ,अंधेरे में हूं
अच्छी रचना है,लेकिन इस अंधेरे से निकलने की अपेक्षा थी कविता के समापन में…
कहीं कुछ पंक्तियां कंपोज होने से रह तो नहीं गई ?
मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
bahut achchi prastuti...lajabaab.
मित्र ! वस्तुतः यह कविता पूर्ण है ,परन्तु इसे विस्तार दिया जा सकता है ....../सदाचारी व्यक्ति सदैव शुभ चाहता है ..... /परन्तु ऐसा होता नहीं है / संदर्भित सृजन आत्म -मंथन का विन्यास लिए है ,जब व्यक्ति खो चुका होता है सारे ,प्रभाव ,शक्तियां , ढलता है पराभव की तरफ ,तो उसे कुछ याद ,आता है ,जो वह नहीं कर सका या नहीं करना चाहिए था सोचता है ...... /
अच्छा लगा आपका लगाव ..... बहुत -2 धन्यवाद
करके तेरी उज्वल,
ज्योति का उपहास
भी मैं ,
अंधेरे में हूं
सुन्दर कविता...
सादर...
अपशब्दों का विन्यास
विकृतियों की उपमा,
दे सास्तियों के खंभ
मैं अँधेरे,
में हूँ ......
अद्भुत शब्द चयन. सुंदर भावपूर्ण अभिव्यक्ति सुंदर रचना के रूप में.
बधाई.
सुंदर अभिव्यक्ति!
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