जहाँ आवाम न हो , अब शहर कहते हैं ,
बंद कमरों में आन्दोलन हो रहे हवा की कमी है ,
अभिनेत्री को बेटा हुआ ,अब खबर कहते हैं -
पद-यात्राओं का अनुशीलन ,जोड़ना था दिल ,
जो बांटता हो दिल ,उसे अब रहबर कहते हैं
जज्बात थे तामीर की एक शहर-ए-जमाल की ,
कुफ्र में, ख़ाक है , अब खँडहर कहते हैं
इन्सान की शक्ल में , इन्सान ढलता कहाँ ,
बढ़ते फासलों को अब मुक्तसर कहते हैं -
मुफ़लिशी के गाँव में अखबार मुखातिब है ,
३२/- कमाने वाले को अब अमीर कहते हैं -
हो रही नीलाम बा - वास्ता, सरे- आम जिंदगी ,
जो चला न एक कदम साथ ,हमसफ़र कहते हैं -
उदय वीर सिंह
बंद कमरों में आन्दोलन हो रहे हवा की कमी है ,
अभिनेत्री को बेटा हुआ ,अब खबर कहते हैं -
पद-यात्राओं का अनुशीलन ,जोड़ना था दिल ,
जो बांटता हो दिल ,उसे अब रहबर कहते हैं
जज्बात थे तामीर की एक शहर-ए-जमाल की ,
कुफ्र में, ख़ाक है , अब खँडहर कहते हैं
इन्सान की शक्ल में , इन्सान ढलता कहाँ ,
बढ़ते फासलों को अब मुक्तसर कहते हैं -
मुफ़लिशी के गाँव में अखबार मुखातिब है ,
३२/- कमाने वाले को अब अमीर कहते हैं -
हो रही नीलाम बा - वास्ता, सरे- आम जिंदगी ,
जो चला न एक कदम साथ ,हमसफ़र कहते हैं -
उदय वीर सिंह
14 टिप्पणियां:
bahut umda sateek vyagatmak sher.
कहते तो बहुत कुछ हैं - कहने का क्या है - कुछ भी कह दो ....
अर्थपूर्ण जो कहा जाए - उसे ही "सत" कहते हैं |
बढ़िया प्रस्तुति |
निराला अंदाज |
बधाई ||
इन्सान की शक्ल में , इन्सान ढलता कहाँ ,
बढ़ते फासलों को अब मुक्तसर कहते हैं -
क्या बात है...वाह...आज के हालात पर तल्ख़ टिप्पणी है आप की ये रचना
बधाई
नीरज
पद-यात्राओं का अनुशीलन ,जोड़ना था दिल ,
जो बांटता हो दिल ,उसे अब रहबर कहते हैं
...बहुत खूब! बहुत सटीक और प्रभावी अभिव्यक्ति..
गज़ब की प्रस्तुति …………बहुत ही साफ़गोई से कहा गया है।
वाह!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
बहुत सुन्दर बहुत सटीक और प्रभावी रचना..बधाई
आपकी यह रचना सच्चाई से रुबुरु करवाती हैं और अनेकों प्रश्नों के उत्तर मांगती हैं ..
आपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा दिनांक 05-12-2011 को सोमवारीय चर्चा मंच पर भी होगी। सूचनार्थ
हो रही नीलाम बा - वास्ता, सरे- आम जिंदगी ,
जो चला न एक कदम साथ ,हमसफ़र कहते हैं -
वाह!
बहुत सटीक अभिव्यक्ति
जो बांटता हो दिल ,उसे अब रहबर कहते हैं
बहुत खूब....
सादर..
samyik wa wastwadi kavita....badhiya
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