गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

संवाद

सपने  तो  सपने हैं, हकीकत  नहीं  होते ,
होते  हैं  भुलने  को , वसीयत  नहीं होते -


इंसानों  की बस्ती है, तमासा तो  होना है ,
सपने भी  इतने की, मुकम्मल नहीं होते -


सपनों  में  कस्रे - ख्वाब, बनते  हजार हैं ,
आईना-ए- जिंदगी में, शामिल नहीं होते -


ख्वाबों की सरजमीं पर न टिकती है जिंदगी ,
कैसे  वो  देंगे  घर , जिनके  घर नहीं होते -


पानी  पर  कब  इबारत, लिखी  कहाँ गयी ,
परवाज  कहाँ  उड़ते, जिनके पर नहीं होते -


                                                      उदय वीर सिंह .
                                                       19/04 /2012 .

9 टिप्‍पणियां:

Anupama Tripathi ने कहा…

सपने तो सपने हैं हकीकत नहीं होते ,
होते हैं भुलने को ,वसीयत नहीं होते -
गहन बात ....सुंदर रचना .....शुभकामनायें ...!

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत सुंदर.................
अच्छे भाव समेटे.
सादर.

RITU BANSAL ने कहा…

सराहनीय ..

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

सपनों में कस्रे - ख्वाब, बनते हजार हैं ,
आईना-ए- जिंदगी में, शामिल नहीं होते -

बहुत बढ़िया प्रस्तुति,सुंदर अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,...

MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

स्वप्नों को साकार करने में श्रम और समय चला जाता है।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

खूबसूरत गजल

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

सपने तो सपने हैं हकीकत नहीं होते ,
होते हैं भुलने को ,वसीयत नहीं होते -

सुंदर अभिव्यक्ति,...उदय वीर जी,..बधाई

MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) ने कहा…

आखरी दोनों शेर गहराइयों तक उतर गये.वाह !!!!!

संध्या शर्मा ने कहा…

सपने सपने हैं हकीक़त नहीं होते...
लाज़वाब रचना... गहन भाव