नस्तर से कट गयी ,किस्तों में जिंदगी ,
जख्म गहरे, हरे हो गए हैं -
कैद- ए - महंगाई में , गमजदा हो
अपना जीवन बसर कर रहे हैं -
देखा , रोटी तो हंसकर के कहने लगी ,
अब तुमसे परायी हुयी-
अमीरों का पहलू मिला है मुझे
दौलत से मेरी सगाई हुई -
पेट से कह रहा हूँ मुझे छोड़ दो ,
हम तुमसे मुख्तलिफ हो रहे हैं -
आग जलनी थी चूल्हे में ,दिल में लगी ,
मुफलिसी का शहर ,आग ही आग है ,
क्या खाए ,बिछाए,ओढें क्या तन पर,
महगाई का दामन , दाग ही दाग है -
शैतानों की साजिश, इनसान रो रहा है,
रिजवान रहबर, मसखरी कर रहे हैं-
लुटेरों के हाथों , तख़्त तंजीम है ,
उनकी महफ़िल में सूरज अनेकों उगे,
जलते हैं दीये जब दिल को जलाये ,
जहर मुफलिसी में कितने पीने लगे-
हसरतें , ख्वाब के दरमियाँ रह गयीं,
साज़िशों के अंधेरों में गुम हो रहे हैं-
उदय वीर सिंह .
जख्म गहरे, हरे हो गए हैं -
कैद- ए - महंगाई में , गमजदा हो
अपना जीवन बसर कर रहे हैं -
देखा , रोटी तो हंसकर के कहने लगी ,
अब तुमसे परायी हुयी-
अमीरों का पहलू मिला है मुझे
दौलत से मेरी सगाई हुई -
पेट से कह रहा हूँ मुझे छोड़ दो ,
हम तुमसे मुख्तलिफ हो रहे हैं -
आग जलनी थी चूल्हे में ,दिल में लगी ,
मुफलिसी का शहर ,आग ही आग है ,
क्या खाए ,बिछाए,ओढें क्या तन पर,
महगाई का दामन , दाग ही दाग है -
शैतानों की साजिश, इनसान रो रहा है,
रिजवान रहबर, मसखरी कर रहे हैं-
लुटेरों के हाथों , तख़्त तंजीम है ,
उनकी महफ़िल में सूरज अनेकों उगे,
जलते हैं दीये जब दिल को जलाये ,
जहर मुफलिसी में कितने पीने लगे-
हसरतें , ख्वाब के दरमियाँ रह गयीं,
साज़िशों के अंधेरों में गुम हो रहे हैं-
उदय वीर सिंह .
5 टिप्पणियां:
किश्तों में बीतती ज़िन्दगी , बँटा सा अस्तित्व लगता है।
मँहगाई के कारण ही बट गई जिंदगी किश्तों में
दूरी बढ़ जाती आपस में,दरार पड रही रिश्तों में,,,,,
RECENT P0ST फिर मिलने का
देखा , रोटी तो हंसकर के कहने लगी ,
अब तुमसे परायी हुयी-
अमीरों का पहलू मिला है मुझे
दौलत से मेरी सगाई हुई
सच कहा गया है- जहाँ न पहुँचे रवि, पहुँचे वहाँ कवि
मन को छू गई ये पंक्तियाँ....आभार
वाह ... बेहतरीन
हसरतें , ख्वाब के दरमियाँ रह गयीं,
साज़िशों के अंधेरों में गुम हो रहे हैं-
कैसे लिख लेते हो मेरे यार ,
इतने पीने अशआर ?
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