लिखता गया समय ....
रचते गए इतिहास वो ,
लिखता गया समय ,
हम रहे उन्माद में
सब भूलते गए -
घास की रोटी मिली
पर हौसला न कम हुआ ,
रक्षार्थ मातृभूमि अपनी ,
गर्दन कटा लिया-
गंतव्य ही संकल्प था ,
पथ - गमन करते रहे -
भिक्षाटन किया परमार्थ में ,
जब देश ने कहा
नदियाँ बहा दी खून की ,
स्वाभिमान जब जगा -
आह न निकली कभी ,
अंगार पर चलते हुए-
कुर्बानिया कबूल थीं ,
परतंत्रता नहीं,
मिटता रहें , हर जन्म ,
पर स्वतंत्रता नहीं-
फांसियों के बंद
वो कबूलते रहे -
आर्या, वीरांगना ,
भरत - भूमि की मेरे ,
देख कटता जिगर ,लाल
का 'विचलित नहीं हुयीं
झुकाया न अपना सिर कभी ,
आन में कटते रहे-
आखों में मां के आंसुओं की ,
जब लगी झड़ी ,
कह उठे जज्बात में ,
तू माँ नहीं मेरी-
इनकलाब की आवाज को ,
बिखेरते रहे -
आतंक के , तूफान से
वो जूझते रहे-
हम रहे उन्माद में
सब भूलते गए -
उदय वीर सिंह .
8 टिप्पणियां:
बीता हुआ समय ही इतिहास बन जाता है,,,,,
shahidon ke balidan nai pindhi ne sach bhula diya hai..... sunder prastui
इस समय के बारे में क्या लिखेगा आने वाला इतिहास।
वाह!
आपके इस उत्कृष्ट प्रवृष्टि का लिंक कल दिनांक 10-09-2012 के सोमवारीय चर्चामंच-998 पर भी है। सादर सूचनार्थ
बहुत खूब !
समय से भी तेज जा रहे हैं
उन्मादी दिन पर दिन संख्या
अपनी बढा़ते चले जा रहे हैं !!
समय का बनता इतिहास..सुन्दर..
आखों में मां के आंसुओं की ,
जब लगी झड़ी ,
कह उठे जज्बात में ,
तू माँ नहीं मेरी-
इनकलाब की आवाज को ,
बिखेरते रहे -
आतंक के , तूफान से
वो जूझते रहे-
हम रहे उन्माद में
सब भूलते गए -
उदय वीर सिंह .
करुणा से भिगो गया ये चित्र ,आदर से संसिक्त कर गया उनकी कुर्बानियों के प्रति .
सोमवार, 10 सितम्बर 2012
आलमी हो गई है रहीमा शेख की तपेदिक व्यथा -कथा (आखिरी से पहली किस्त
इतिहास ...इतिहास ही बन के रह जाता हैं
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