दरख़्त की
सूखती डाल,
कह रही है .....
पगली मत बना नीड़
मेरी छाँव में
कल आएगा लक्कड़हारा
कर कुल्हाड़े का प्रहार
काट ले जायेगा ,
साथ में तुम्हें ,तेरे कवक
जला मुझे ,भुन खायेगा l
काट चुका है पहले ही जड़ों को ,
मेरे बृक्ष की ...
जा बना कहीं पत्थर के पेड़ पर नीड़,
जहाँ कुल्हाड़े
टूट जाते हैं .....
- उदय वीर सिंह .
5 टिप्पणियां:
पत्थर के पेड । वाह क्या रचना है
वाह....
बेहद गहन अभिव्यक्ति...
सादर
अनु
जा बना कहीं पत्थर के पेड़ पर नीड़,
जहाँ कुल्हाड़े
टूट जाते हैं .....
...बहुत खूब!
पेड़ कटने के पहले तक आशियाना बना के जीना सीख लें हम।
जा बना कहीं पत्थर के पेड़ पर नीड़,
जहाँ कुल्हाड़े
टूट जाते हैं .....
क्या बात कह डाली. बहुत खूब बहुत सुंदर.
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