अफसाने न रहे तुम्हें सुनाने के लिए
बेगाने ही रहे दर्द मेरे ज़माने के लिए -
जख्म रिसते रहे, मिलती रही ठोकर
न मिला नकाब इन्हें छिपाने के लिए -
मुक्तसर न हुई उल्फत अपनों के लिए
जिया भी अगर हूँ तो बेगानों के लिए -
कहना नहीं माकूल बेवफा मैं हूँ
पूछो मैखाने पड़े हैं , बताने के लिए -
तोलेगी ये दुनियां तेरा वजन कितना
ये हमदर्दी का आलम है दिखाने के लिए -
संगमरमरी पांव हैं ,बेदिल है कूंचे में
दो कदम भी मुश्किल साथ आने के लिए-
- उदय वीर सिंह
15 टिप्पणियां:
तोलेगी ये दुनियां तेरा वजन कितना
ये हमदर्दी का आलम है दिखाने के लिए -
ये हमदर्दी का चोला भी तो दिखावटी है
सच कहा और स्पष्ट कहा..काश सम्बन्धों के शब्द उतने ही स्पष्ट होते।
बहुत बढ़िया -
सटीक-
शुभकामनायें आदरणीय ||
स्पष्ट,,शानदार सटीक प्रस्तुति,,,बधाई ,,,,
recent post : बस्तर-बाला,,,
मुक्तसर न हुई उल्फत अपनों के लिए
जिया भी अगर हूँ तो बेगानों के लिए -
बहुत खूब,,, सुन्दर .
बेहतरीन रचना बेहतरीन रचना ****तोलेगी ये दुनियां तेरा वजन कितना
ये हमदर्दी का आलम है दिखाने के लिए -
संगमरमरी पांव हैं ,बेदिल है कूंचे में
दो कदम भी मुश्किल साथ आने के लिए-
मुक्तसर या मुख्तसर ?
लेखन अच्छा लगा ..बड़ी सादगी से सच बयाँ किया है ..
वाह।।
बहुत ही बढ़िया रचना सर जी।
:-)
बहुत खूब लिखा है ....loved it...thanks for sharing with us....:)
सार्थक और उपयोगी रचना!
फसाने और अफसाने स्वार्थी हो गये हैं!
तोलेगी ये दुनियां तेरा वजन कितना
ये हमदर्दी का आलम है दिखाने के लिए
बहुत ही सुन्दर
कल 13/01/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद !
BEHTREEN SHERO SE LABREJ UTTAM GAZAL
बहुत प्रभावशाली रचना !
एक टिप्पणी भेजें