फाग आया की कुड़ते में फूल आ गए ,
धानी कुडती भी फूलों का घर हो गयी -
पोरी गन्ने सी रस में लचक माधुरी
देह मतवारी डारी सुघर हो गयी-
रस - मदन वस गया अंग प्रत्यंग में,
प्रीत फूलों की डोरी पतंग हो गयी -
मैल धुल जाये दिल की रंग बर्साईये
रात काली गयी , अब सहर हो गयी-
अब तो रंगों के हम ,रंग मेरे हुए
उदय होरी - गोरी मलंग हो गयी-
- उदय वीर सिंह
10 टिप्पणियां:
अब तो रंगों के हम ,रंग मेरे हुए
उदय होरी - गोरी मलंग हो गयी-
बहुत उम्दा सराहनीय रचना, उदय जी ,
होली की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाए,,,
Recent post : होली में.
बेहतरीन रचना,होली की हार्दिक शुभकामनाएँ.
बहुत ख़ूबसूरत रचना...होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
होली की हार्दिक शुभकामनाएं
आपकी यह पोस्ट कल चर्चा मंच पर है
सुन्दर रचना ... होली की बहुत-बहुत बधाई और ढेर सारी शुभकामनायें ....
एक प्यारी रचना... मुबारक.
हृदयस्पर्शी भावपूर्ण प्रस्तुति.बहुत शानदार भावसंयोजन .आपको बधाई.होली की हार्दिक शुभ कामना .
ना शिकबा अब रहे कोई ,ना ही दुश्मनी पनपे
गले अब मिल भी जाओं सब, कि आयी आज होली है
प्रियतम क्या प्रिय क्या अब सभी रंगने को आतुर हैं
हम भी बोले होली है तुम भी बोलो होली है .
वाह उदय जी ... लाजवाब कलाम है ... होली की सुंदरता उसके अंग प्रत्यंगों से हो तो है ..
आपको होली की मंगल कामनाएं ..
बहुत सुन्दर।। होली की हार्दिक शुभकामनाएं
पधारें कैसे खेलूं तुम बिन होली पिया...
अहा, रंगमय होली..
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