पीता है जिसका दूध
उसे खूंटे से बांध रखा है
जो काट खाता है बे-शर्त
भय-मुक्त पाल रखा है -
बड़ा उदास लौटा है रोजगार
दफ्तर से , बे- रोजगार
बड़ी उम्मीद ले मंगल व्रत
का उपवास रखा है-
हर रोज बांध आती है
पीपल से रक्षासूत्र के धागे
हादसों के शहर में उसका
बेटा प्रवास करता है-
कितना नामाकूल है खुदगर्ज
शाजिसों का आलिम
एक स्त्री के लिए आग खंजर
तेजाब सम्भाल रखा है -
लिखा तो है दुकान पर
अनमोल हीरों का व्यापारी,
धतूरे की टोकरी पर
रेशमी रुमाल डाल रखा है -
- उदय वीर सिंह
उसे खूंटे से बांध रखा है
जो काट खाता है बे-शर्त
भय-मुक्त पाल रखा है -
बड़ा उदास लौटा है रोजगार
दफ्तर से , बे- रोजगार
बड़ी उम्मीद ले मंगल व्रत
का उपवास रखा है-
हर रोज बांध आती है
पीपल से रक्षासूत्र के धागे
हादसों के शहर में उसका
बेटा प्रवास करता है-
कितना नामाकूल है खुदगर्ज
शाजिसों का आलिम
एक स्त्री के लिए आग खंजर
तेजाब सम्भाल रखा है -
लिखा तो है दुकान पर
अनमोल हीरों का व्यापारी,
धतूरे की टोकरी पर
रेशमी रुमाल डाल रखा है -
- उदय वीर सिंह
5 टिप्पणियां:
क्या बात है :)
सम सामयिक रचना...आज के हालात का सटीक
चित्रण .....होली की शुभ कामनाएं.....
दोहरे चेहरे के लिए धतूरे की टोकरी पर रुमाल का बिम्ब कमाल है !
सचमुच में, बड़ी अजब दुनिया बना रखी है हमने।
waah ,बहुत खूब
unlimited-potential
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