अनुशासन के अनुशीलन
क्यों शांति ढूढने मानस की
च्युत मधुशाला को जाता है -
असफलताओं को ढकने खातिर
कितने ढोंग रचाते वीर
जीवन से भागा कायर कामी
होकर मधुशाला से आता है -
तोड़ प्राचीर प्रबंध प्रलेखों की
उन्मत्त उन्माद का संयोजक
संस्कारशाला कारा सी लगती है
गिरता मधुशाला को जाता है -
अंतहीन व्यथा की चौखट पर
सर्वस्व लूटाने को तत्पर है
मायावी स्वप्निल पात्रों में मद
भरने मधुशाला जाता है -
- उदय वीर सिंह
1 टिप्पणी:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (01-09-2016) को "अनुशासन के अनुशीलन" (चर्चा अंक-2452) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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