किसकी शाख किसके फल लगने लगे
केशर की क्यारियों में जहर उगने लगे -
हर खुशी हर गम में शरीक थे कुनबे
अब रोटी भी हिन्दू मुसलमान की कहने लगे -
जो हाथ उठते थे मोहब्बत से दुआओं के
उस हाथ से बेमुरौअत पत्थर चलने लगे-
कश्मीर आतंक का नहीं मोहब्बत का घर था
आज घर आतंकी दड़बों में बदलने लगे -
उदय वीर सिंह
केशर की क्यारियों में जहर उगने लगे -
हर खुशी हर गम में शरीक थे कुनबे
अब रोटी भी हिन्दू मुसलमान की कहने लगे -
जो हाथ उठते थे मोहब्बत से दुआओं के
उस हाथ से बेमुरौअत पत्थर चलने लगे-
कश्मीर आतंक का नहीं मोहब्बत का घर था
आज घर आतंकी दड़बों में बदलने लगे -
उदय वीर सिंह
1 टिप्पणी:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (18-04-2017) को
"चलो कविता बनाएँ" (चर्चा अंक-2620)
पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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