अभिव्यक्तियों
की
मचान पर गूंगे बैठ जाएँ
समझो दिन बहुरे
बहरों की बस्तियों में अजान हो जाए
समझो दिन बहुरे
भगवनों के बाजार में कहीं भक्त मिल जाए
समझो दिन बहुरे
गौड़ हो गया है मजहबों में इंसान मिल जाए
समझो दिन बहुरे -
उदय वीर सिंह
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