सुख शांति के आंगन में , बस प्यार मांगती है ,
मात्री-भूमि अपने आंचल का अधिकार मांगती है /
प्यार पल्वित हो उपवन में ,
रस भरे ,मृदुल मकरंदों का /
सौरभ से भर जाये जगत ,
चिर मलय बहे आनंदों का /
मानवतावादी मधुपों का गुंजार मांगती है /-----
एक बनाया , एक ही समझा ,
एक सूत्र में पाला /
मातृत्व -निधि ,वैभव को देकर ,
सबको गले लगाया /
वैभवशाली ,प्रीतमयी ,संसार मांगती है -------
ज्योतिर्मय ,जगमग दीप जला ,
कण -कण से नेह लगायी /
मानव - धर्म का स्फुर्लिंग कर ,
निः ,सारों की होली जलाई /
आदर्शों के मूल्य सलिल ,रस-धार मांगती है /-------
अपना और पराया कैसा ?
एक जया के भ्राता /
दिग -भ्रमित क्यों होते बंधू ?
हो ! देश -प्रेम से नाता /
भरा प्रेम हृदय हर्षित,अंकवार मांगती है /------
उदय वीर सिंह
०३/१२/२०१०
2 टिप्पणियां:
ाति सुन्दर्…………………॥बधाई
बहुत सुन्दर शब्दों में भावों को लिखा है ...अच्छी रचना .
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